आप भी जानें, कैसे कभी पैसे के लिए झाड़ु-पोछा लगाने वाली आज बना रही हैं दूसरी महिलाओं को आत्मनिर्भर
अकसर लोग अपनी पीड़ा और समस्या से पार पाने के बाद वैसी ही मुश्किलों से जूझ रहे किसी दूसरे व्यक्ति को उससे निकलने का रास्ता दिखाने के बजाए उसे नजरअंदाज कर अपनी आंखें फेर लेते हैं। लेकिन समाज में ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी तलाशते हैं और दूसरों के गम में अपना गम। दूसरों की दिक्कतों को महसूस कर उसे दूर करने की कोशिश करते हैं। ये कहानी है उस इंदुमति ताई की जिन्होंने अपनी जिंदगी में मुफलिसी और आर्थिक तंगी का दौर देखा है, लेकिन इससे उबरने के बाद वह अपने गुजरे हुए कल को भूलने के बजाए हमेशा उसे जिंदा रखा है। वह अपने इलाके के ऐसी तमाम महिलाओं की सहारा हैं जिन्हें किसी आर्थिक मदद की जरूरत हो। वह उन महिलाओं को न सिर्फ घरेलु काम-काज दिलाने में मदद करती हैं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें उन्हें छोटे-मोटे उद्यम करने के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनके प्रयासों से आज सैंकड़ों महिलाओं का जीवन सुखमय और सरल बन गया है।
भोपाल के दशहरा मैदान के पास वाणगंगा इलाके में 65 वर्षीय इंदुमति ताई का निवास है। उनके आसपास कई झुग्गी बस्तियां है, जहां हजारों के संख्या में दिहाड़ी मजदूरों का परिवार रहता है। यहां के पुरूष मजदूरी करते हैं और महिलाएं आसपास के इलाके के घरों में साफ-सफाई का काम। घर के पुरुषों को जब कई-कई दिन तक काम नहीं मिलता है, तो ऐसे समय में महिलाएं ही घर चलाती है। पैसों की तंगी के वजह से इनका जीवन काफी कठिन हो जाता है। घर में किसी बड़े काम के लिए इन्हें न तो बैंकों से लोन मिल पाता है और न ही साहुकारों से कर्ज। साहुकारों से अगर ब्याज पर इन्हें कर्ज मिल भी जाता है, तो उसे चुकता करना उनके लिए काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसे हालात में झुग्गीवासियों की हमदर्द सिर्फ इंदुमति ताई बनती है।
माइक्रो फिनांस से मिलता है बयाज रहित कर्ज
इंदुमति ताई माइक्रो फिनांस स्वयं सहायता समूह चलाती हैं। उनके समूह में लगभग 200 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। महिलाएं अपनी छोटी-छोटी बचत ताई के पास जमा करती हैं। इस जमा पूंजी से उनमें से जरूरतमंद महिलाओं को बिना किसी ब्याज के कर्ज दिया जाता है। कर्ज लेने के बाद महिलाएं इसे किश्तों में अदा करती हैं। इस पैसे से घर में बड़े कामों के अलावा महिलाएं छोटा-मोटा व्यवसाय भी चलाती है। भोपाल में हॉस्टलों में रहकर पढ़ाई करने वाले और कामकाजी लोगों के लिए कई महिलाएं टिफिन सर्विस चला रही है। माईक्रो फिनांस से कर्ज लेकर कई महिलाएं अबतक आत्मनिर्भर बन चुकी है। उनके घरों की हालत सुधर गई है। उनके बच्चे भी अब स्कूल में पढने लगे हैं। घरों में पैसे की तंगी को लेकर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होता है। उनका जीवन खुशहाल हो गया है।
जरूरतमंदों को दिलाती हैं काम
महानगरों में जहां घरेलू सहायकों की सेवा उपलब्ध कराने के लिए बड़ी-बड़ी प्लेसमेंट एजेंसियां कमिशन लेकर काम करती है, वहीं इंदुमति ताई ये काम सिर्फ दो जरूरतमंदों की जरूरतें पूरी करने के गरज से करती हैं। उनके पास उस इलाके की वैसे तमाम महिला घरेलू सहायकों की जानकारी रहती है जिसे काम की तलाश हो। इलाके की कोठियों और फ्लेटों में रहने वाले लोग भी इंदुमति ताई की सलाह पर रखी गई घरेलू सहायकों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इसके अलावा शादी-ब्याह या अन्य आयोजनों में घरेलू सहायकों की जरूरत पर भी इंदुमति ताई घरेलू महिला सहायकों की सेवा उपलब्ध कराकर महिलाओं को काम का अवसर मुहैया कराती हैं।
ऐसे हुई काम की शुरूआत
ये बात लगभग दस साल पुरानी है। पास के झुग्गी बस्ती की दो महिलाएं इंदुमति से रुपए उधार मांगने आयी थी। एक महिला को पापड़ बनाने का काम शुरू करने के लिए पैसों की जरूरत थी, तो दूसरी को अपने बच्चे के स्कूल की फीस भरनी थी। उन दोनों महिलाओं को उनके परिचितों ने पैसे देने से इंकार कर दिया था। इंदुमति ताई ने तात्कालिक तौर पर उन दोनों महिलाओं को उधार देकर उनकी जरूरतें तो पूरी कर दी, लेकिन तभी से इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने में वह लग गईं। पहले तो महिलाओं ने अपनी बचत के पैसे उनके पास जमा करने से इंकार कर दिया। काफी समझाने के बाद कुछ महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया। कई बार ताई ने महिलाओं की तरफ से खुद पैसा जमा किया। बाद में महिलाएं इसमें अपना पैसा जमा करने लगीं। जब उन्हें इसका फायदा मिला तो स्वयं मोहल्ले की दूसरी महिलाएं इससे जुड़ती गई और ये समूह बढ़ता चला गया। आज इस समूह में लगभग दौ सौ महिलाएं है और समूह का सालाना लाखों रुपये का टर्नओवर है।
समूह की महिलाओं से है दर्द का रिश्ता
इंदुमति ताई आज अपने इलाके की कुछ महिलाओं के लिए ताई तो किसी की बड़ी बहन बन गई हैं। ऐसा उनके दूसरों के प्रति करूणामयी व्यवहार के कारण है। वह हर किसी का गम अपना बना लेती हैं, क्योंकि उन्होंने खुद की जिंदगी में भी बहुत संघर्ष किया है। वह कहती हैं,
"इन महिलाओं से मेरा दर्द का रिश्ता है। जिस परेशानी और अभाव से वह आज गुजर रही हैं, मैनें भी कभी उसे भोगा है। इसलिए उनकी परेशानियों को मैं समझती हूं। उनकी समस्याएं मुझे अपनी समस्याएं लगती है।"
खुद के हालात से मिली दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा
इंदुमति की शादी महज 13 वर्ष की अवस्था में हो गई थी। वह घर की सबसे बड़ी बहु थीं। पति सुरेश पटेल के पास कोई ढंग का रोजगार नहीं था। अपने बच्चों को पालने के साथ उनके सिर पर चार छोटे-छोटे देवरों की परवशि की भी जिम्मेदारी थी। हालात से हारने के बजाए इंदुमति ने घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने और खाना बनाने तक का काम किया। देवरों और बच्चों को पढ़ा लिखाकर उन्हें अपने कदमों पर खड़ा कराया। आज उनके घर के सभी लोग सम्मानजनक नौकरी और पेशे में हैं। लेकिन वर्ष 2005 में उनके जीवन में एक बार फिर टर्निंग प्वाईंट आया था। वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई। डॉक्टरों ने इलाज के लिए लाखों रुपए का खर्च बताया। इतने पैसे एक साथ जमा करना उनके बस से बाहर हो गया। उन्होंने अपने कई रिश्तेदारों से कर्ज मांगा, लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिए। मजबूरन उन्हें अपने खून पसीने की कमाई से खरीदा हुआ छोटा सा फ्लैट बेचना पड़ा। लेकिन इस घटना ने इंदुमति को एक सामान्य महिला से विशेष बना दिया था।
जिंदगी और शिद्दत ने जीना सीखा दिया। विपरीत परिस्थितियों में हालात से लडना और लड़कर आगे बढना सीखा दिया। दूसरों के प्रति उनकी सहानुभूति समानुभूति में बद गई। अब उनके सोचने-समझने का नजरिया पहले से कहीं ज्यादा बदल गया था। वह अब मान चुकी थीं कि इंसान सबसे कमजोर और लाचार तब होता है जब उसके पास पैसे नहीं होते हैं। इसी के बाद उन्होंने अपने साथ ही दूसरों को भी आर्थिक संकट से उबारने का संकल्प ले लिया, जिसका नतीजा आज पूरे समाज के सामने है।