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लोगों की रोज़ी रोटी का जुगाड़ कराता, 'Helper4U'

इंटरनेट और मोबाइल के माध्यम से आया, बाई, कुक और ड्राइवर उपलब्ध करवाने का है अनोखा प्रयासदिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से लिंग्विस्टिक में एम.फिल करने के बाद किया अध्यापन कार्यसबसे पहले सभी क्षेत्रों के प्रशिक्षकों की जानकारी अपने आप में समेटे एक आॅनलाइन डायरेक्ट्री ClickForCoach तैयार कीहेल्पर4यू को कुशल और अकुशल प्रवासियों के लिये नौकरीडाॅटकाॅम के रूप में विकसित करना चाहती हैं

लोगों की रोज़ी रोटी का जुगाड़ कराता, 'Helper4U'

Saturday July 18, 2015 , 8 min Read

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।

श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक मीनाक्षी गुप्ता जैन की सफलता का मूलमंत्र है और वे इस श्लोक में निहित ज्ञान का बखूबी पालन करती हैं।

उन्होंने हमेशा रास्ते में आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना किया है और आगे बढ़ने में कामयाब रही हैं।

अबसे पांच वर्ष पूर्व जब उनका परिवार दिल्ली छोड़कर मुंबई आया तो उन्होंने पहली बार उद्यमिता के क्षेत्र में हाथ आजमाने का फैसला किया। ‘‘दिल्ली में रहने के दौरान मेरा छोटा भाई कीबोर्ड बजाना सीख रहा था और मेरे पति तबला। जब हम मुंबई आये तो हम एक बिल्कुल अनजान शहर में थे और किसी को नहीं जानते थे। ऐसे में इन दोनों के लिये प्रशिक्षक को खोजना एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम था।’’ और यही चुनौती समाधान भी लेकर आई - सभी क्षेत्रों के प्रशिक्षकों की जानकारी अपने आप में समेटे एक आॅनलाइन डायरेक्ट्री जिसमें शैक्षणिक और खेल के साथ-साथ हाॅबी क्लासेज़ के लिये भी प्रशिक्षक शामिल हैं। इसमें उपयोगकर्ता को सिर्फ लाॅगिन करके अपने इलाके, समय, फीस और अन्य मापदंडों के आधार पर तलाश सकते हैं। और इस तरह से करीब ढाई वर्ष पूर्व ClickForCoach (क्लिकफाॅरकोच) का जन्म हुआ।

आज उन्होंने अपनी समस्त ऊर्जा अपने ताजा और नवीनतम कार्य Helper4U (हेल्पर4यू) में केंद्रित कर रखी है।

मीनाक्षी गुप्ता

मीनाक्षी गुप्ता


यह एक ऐसा मंच है जो नियोक्ताओं को अपने घरों और कार्यालयों के लिये सहायकों को तलाशने में मदद करता है। वे बताती हैं, ‘‘विशेषकर एबीसीडी यानि आया, बाई, कुक और ड्राइवर और वह भी सिर्फ इंटरनेट और मोबाइल के माध्यम से। इसके अलावा यह समाज के सबसे निचले तबके से आने वाले लोगों को इसी तकनीक के माध्यम से बिना किसी मध्यस्थ के नौकरी पाने में भी सहायक साबित होती है।’’

दूसरे शब्दों में कहें तो यह स्पेक्ट्रम के दोनों सिरों के बीच एक नलिका का रोल निभाता है।


प्रारब्द्ध

मुंबई में स्थित पवई हमेशा से ही ऊंची-ऊंची इमारातों से घिरे एक ऐसे इलाके के रूप में मशहूर रहा है जहां के निवासी हमेशा से ही अपने घरों के लिये सहायिकाओं की तलाश में रहती हैं। नौकरी की तलाश में भटकती महिलाएं पूरी तरह से बिचैलियों निर्भर थीं और इस मामले में भी वे अपने संभावित नियोक्ताओं की तलाश में सुरक्षा गार्डों पर निर्भर थीं। यही वह एक मुख्य मुद्दा था जो मीनाक्षी को परेशान करता था और वे महिलाओं को संभावित नियोक्ताओं तक बिना किसी ऐसे बिचैलिये तक पहुंचने में सहायता करना चाहती थीं।

इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए उन्होंने Maid4U (मेड4यू) को शुरू किया और नौकरी की इच्छुक महिलाओं का पंजीकरण करना प्रारंभ कर दिया लेकिन कुछ समय के बाद ही उनके पास पंजीकरण के लिये महिलाओं के स्थान पर पुरुषों के अनुरोध आने लगे। और तरह से इन्होंने शुभारंभ से पहले ही मेड4यू की परिकल्पना को थोड़ा बदलकर उसे हेल्पर4यू का रूप दे दिया।


अपने अनुभवों से सीखना

उनके पिता सशस्त्र बलों के साथ एक इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे और अधिकतर उनकी तैनाती ऐसे स्थानों पर रहती थी जहं परिवार को साथ नहीं ले जाया सकता और ऐसे में उनकी माँ नें ही उन्हें और उनके भाई-बहनों की देखभाल और परवरिश की। वे कहती हैं, ‘‘इसका सीधा मतलब यह था कि काफी छोटी उम्र से ही हमें घर का ख्याल रखने में उनका हाथ बंटाना पड़ा और इसकी वजह से हम स्वतंत्र हुए और हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनने में कामयाब रहे। हमें कभी भी यह नहीं लगा कि कोई काम ऐसा है जो हम नहीं कर सकते।’’

इसके अलावा लगातार होने वाले स्थानांतरणों के चलते वे नए-नए स्थानों और लोगों से मिलने और उनके साथ सामंजस्य बैठाना सीखने में सफल रहीं। उनकी अधिकतर शिक्षा केंद्रीय विद्यालयों में हुई और उन्होंनेे पहली बार एक निजी स्कूल का सामना तब किया जब वे आठवीं कक्षा में थीं।

मीनाक्षी का दाखिला एक अंग्रेजी माध्यम के लडकियों के स्कूल में करवा दिया गया जहां अधिकतर छात्र अमीर परिवारों से आते थे। ‘‘मुझे अभी भी अपना वह अपमान याद आता है जिससे मुझे प्रारंभिक दिनों में दो-चार होना पड़ा था क्योंकि मुझे धाराप्रवाह अंगेजी बोलना नहीं आता था। उस स्कूल में कोई मेरा कोई दोस्त नहीं था।’’

उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और खेलकूद, पढ़ाई और अतिरिक्त गतिविधियों जैसी कई चीजों की अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी। वे स्कूल के दिनों में एक शीर्ष खिलाड़ी साबित हुईं और बास्केटबाॅल टीम में जगह बनाने में कामयाब रहीं। अचानक ही वह लोकप्रियता की पायदानों पर चढ़ती गईं और अब स्कूल में हर कोई उनसे दोस्ती करना चाहता था।

‘‘मैं स्कूल में पढ़ाई के मामले में अव्वल छात्रों में से थी और अपने समर्पण और ध्यान के चलते अधिकतर शिक्षकों की पसंदीदा छात्र थी। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि अपने काम को बेहतरीन तरीके से करते रहो और आप अधिकतर लोगों का सम्मान हासिल करने में कामयाब रहोगे। आज भी यही जज्बा और दर्शन हर कार्य में मेरा मार्गदर्शन करता है।’’


अधिक मेहनत करना

वे सिर्फ 3 अंकों से दिल्ली के एक मेडिकल काॅलेज में दाखिले से महरूम रह गईं और इसी के बाद इन्हें अहसास हुआ कि आप जो कुछ प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिये थोड़ा सा अतिरिक्त प्रयास करना कितना महत्वपूर्ण होता है।

स्नातक करने के बाद उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक) में एम.फिल किया और उसके बाद कई वर्षों तक दिल्ली के स्कूल में अध्यापन का काम करने के बाद उन्होंने एक काॅर्पोरेट ट्रेनर के तौर पर काम करना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने समय के साथ खुद को विकसित किया और एक प्रशिक्षण संस्थान के साथ बिजनस डवलपमेंट मैनेजर के रूप में काम करने लगीं। इसके बाद वे एनआईआईटी के साथ प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में कार्यरत हो गईं जहां उनका काम प्रशिक्षण से संबधित परियोजनाओं का प्रबंधन करना था। उन्होंने अंतिम पूर्णकालिक नौकरी टाटा इंटरैक्टिव सिस्टम्स के साथ लीड इंस्ट्रैशनल डिजाइनर के रूप में की। बाद में उन्होंने अपना काम करने के लिये नौकरी छोड़ दी।

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हेल्पर4यू

हेल्पर4यू पर कुत्ता घुमाने वालों से लेकर पार्ट टाइम नौकरी की तलाश में लगी सहायिकाओं के लिये और कोरियर बाॅय, इलेक्ट्रीशियन से लेकर मरीजों की देखभाल करने वालों के अलावा अन्य कई श्रेणियों की नौकरियों की भरमार है।

आज हम हर उस व्यक्ति का पंजीकरण करने को तैयार हैं जो अनपढ़ है या फिर स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया है। हम सिर्फ स्नातक या उससे अधिक पढ़े-लिखे लोगों का पंजीकरण करके अपना ध्यान भटकाना नहीं चाहते हैं।

संभावित नियोक्ता इनकी वेबसाइट पर जाकर नौकरी चाहने वालों की प्रोफाइल से रूबरू हो सकते हैं और अगर उन्हें कोई पसंद आता है तो वे एक निर्धारित शुल्क का भुगतान करके उसका मोबाइल नंबर प्राप्त करके उसके साथ सीधे संपर्क कर सकते हैं। ये शुल्क एक ही बार लिये जाते हैं और एक सीमित अवधि के लिये होते हैं।

नौकरी तलाश रहे लोगों के पंजीकरण के लिये इन्होंने पूरे शहर में बैनर लगवाए हैं और इसके अलावा स्थानीय युवाओं को अपने साथ जोड़कर उनतक पहुंचने का प्रयास किया है। मीनाक्षी उत्पाद की अवधारणा के अलावा संचालन, मार्केटिंग और प्रमोशन का काम संभालती हैं और उनके पति जो एक आईआईटी-आईआईएक स्नातक हैं टीम की रणनीति और दिग्दर्शन का काम करते हैं। इनकी बाकी की टीम फ्रीलांसरों के भरोसे संचालित होती है जो नौकरी की चाहत में लगे लोगों के लिये काॅल सेंटर को संभालने का काम करते हैं।

मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘इसके अलावा हम छोटे और मझोले उद्योगों के लिये भी उनकी आवश्यकताओं के अनुसार इन कर्मचारियों का चयन करते हैं और बदले में नियोक्ताओं से ही एक मामूली शुल्क वसूलते हैं।’’


प्रेरणा

एक उद्यमी के तौर पर उन्हें उन्हें विकास को प्रभावित किये बिना कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिये वित्त का प्रबंध करने से लेकर अपने काम के लिये लोगों को तलाशने तक की चुनौतियों से रूबरू होना पड़ता है।

मीनाक्षी मूलतः अकुशल कहे जाने वाले कर्मचारियों को बेहतर और सम्मानजनक रोजगार के अवसरों से रूबरू करवाना चाहती हैं।

जो उन्हें लगातार प्रेरित करता है वह है,

‘‘नौकरी मिलने पर होने वाली खुशी और आभार और खासकर ऐसे में जब उस व्यक्ति ऐसा होने की बहुत कम उम्मीद हो। हमारे पास सफलता की कई ऐसी कहानियां हैं जो हमें यह विश्वास दिलाती हैं कि हम सही दिशा में काम कर रहे हैं।’’


भविष्य की योजनाएं

मीनाक्षी अपने इस पोर्टल को समाज में हाशिये पर रहने वाले लोगों के अलावा नौकरी के लिये भटक रहे कुशल और अकुशल प्रवासियों के लिये नौकरीडाॅटकाॅम का रूप देना चाहती हैं।

जैसे-जैसे इनकी इस वेबसाइट के चर्चे फैल रहे हैं मीनाक्षी और उनकी टीम से मुंबई और पुणे के लोग तो इनसे लगातार संपर्क कर रहे हैं इसके अलावा दिल्ली और बैंगलोर तक के लोग इन्हें फोन करके सहायिकाएं उपलब करवाने के लिये कह रहे हैं। वे कहती हैं, ‘‘अब हम मुंबई और पुणे में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और जल्द ही हम हैदराबाद में भी संचालन प्रारंभ करने वाले हैं।’’