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पुराने कपड़ों को रीसाइकिल कर पर्यावरण बचाने वाली दो डिजाइनरों की दास्तान

पुराने कपड़ों को रीसाइकिल कर पर्यावरण बचाने वाली दो डिजाइनरों की दास्तान

Friday November 23, 2018 , 8 min Read

मौजूदा समय में जब फैशन उद्योग ऐसे उत्पादों से भरा पड़ा है जो पर्यावरण और समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, तब खालूम अपने रीसाइकिल्ड कपड़ों के माध्यम से सर्कुलर फैशन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में बिल्कुल अलग ही मुकाम हासिल कर रहा है।

नंदिता और शोभा

नंदिता और शोभा


'खालूम की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य हथकरघा बुनकरों के लिये रोजगार के नए अवसर पैदा करने और रीसाइकिल्ड कपड़े के उपयोग को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्य के साथ की गई थी।'

दो बच्चों की अकेली माँ शोभा के लिये गुजारा करना और अपना और अपने बच्चों का पालन-पोषण काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा था। इसके बाद वह आजीविका की तलाश में कर्नाटक के रामनर स्थित कुडूर नामक गांव से बेंगलुरु चली आई। सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने के चलते वे नौकरी मिलने की संभावनाओं को लेकर काफी पशोपेश में थीं। हालांकि बेंगलुरु स्थित एक स्टार्टअप खालूम टेक्सटाइल्स इंडिया उनके लिये राहत की राहत की खबर लेकर आया जिसने उन्हें बुनकर के रूप में काम देते हुए अपने हुनर को तराशने का मौका दिया। आज वे सालाना 2 लाख रुपया कमा रही हैं।

खालूम की सह-संस्थापक नंदिता सुलूर कहती हैं, 'खालूम की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य हथकरघा बुनकरों के लिये रोजगार के नए अवसर पैदा करने और रीसाइकिल्ड कपड़े के उपयोग को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्य के साथ की गई थी।'

वर्ष 2016 में स्थापित इस स्टार्टअप का मुख्य उद्देश्य रीसाइकिल्ड कपड़े के उपयोग को बढ़ावा देने और कूड़े के ढेर के रूप में जमा हो रहे रुई की बढ़ती हुई मात्रा को नियंत्रण में करना है। इसके अलावा यह स्टार्टअप लोगों के पहने हुए पुराने कपड़ों को मुख्यधारा के फैशन में वापस लाकर फैशन उद्योग द्वारा फैलाये जा रहे समग्र वाटर फुटप्रिंट और प्रदूषण को कम करने में मदद कर रहा है।

पूरी दुनिया में एक तरफ जहां रीसाइक्लिंग के माध्यम से कपड़े के जीवनचक्र को बढ़ाने के ठोस प्रयास किये जा रहे हैं, वहीं हाल ही में दीर्घकालिक और 'सर्कुलर फैशन' की बढ़ती हुई संभावनाओं को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की गरज से, मेडिकल केयर के डच मंत्री ब्रुनो ब्रून्स ने फैब्रिक स्टार्टअप्स अपसेट और सूट सप्लाई के साथ खालूम द्वारा हाथ से तैयार किया गया एक सूट पहना। नए कपड़े से बने सूट की तुलना में रीसाइकिल्ड कपड़े के जरिये अनुमानित रूप से करीब पांच किलो कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन, कीटनाशकों का 300 ग्राम उपयोग कम होता है और इसके अलावा करीब 6,500 लीटर पानी भी बचाया जाता है।

प्रारंभ

वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर सामाजिक उद्यमों में निवेश करने वाली नीदरलैंड की कंपनी एनव्यू भारत में एक ऐसी पर्यावरण-अनुकूल उद्यम स्थापित करने का इच्छुक था जो अपशिष्ट उत्पाद से प्राप्त टेक्सटाइल फाइबर से हाथ से कते हुए और बुने कपड़े तैयार करे। इस परियोजना को अमली जामा पहनाने और रीसाइकिल्ड सूती धागे से कते हुए कपड़े को बुनने की संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से बेंगलुरु में 38 वर्षीय नंदिता और 32 वर्षीय राम सेलालु ने एक पायलट प्रोजेक्ट की स्थापना की। राम सेलालु के पास फैबइंडिया के साथ वरिष्ठ डिजाइनर के रूप में काम करने का पूर्व अनुभव था जहां रीसाइकिल्ड कपड़े और धागे की मदद से हाथ से काता और बुना हुआ कपड़ा तैयार किया जाता था। इसके नतीजे के रूप में सामने आया कपड़ा नीदरलैंड स्थित कपड़ा रीसाइक्लिंग कंपनी सिंपनी को भी काफी पसंद आया और दक्षिंण बेंगलुरु के गोट्टीगेर वीवर कॉलोनी में खालूम टेक्सटाइल्स इंडिया की नींव रखी गई।

महिला बुनकरों की टीम

महिला बुनकरों की टीम


नंदिता बताती हैं, 'चूंकि बुनाई और कताई इस क्षेत्र का प्रमुख व्यवसाय है इसलिये यहां पर स्थानीय बाजार के लिये सिल्क/पॉलिस्टर की बुनाई करने वाले पावरलूम और बुनकरों की बहुत बड़ी संख्या मौजूद थी। इस क्षेत्र में बेंगलुरु के कबनपेट, तुमकुर के कल्लूरख् तिपतुर और हालेपालया जैसे जनदीकी क्षेत्रों के बुनकरों के समुदाय से आने वाले कई बुनकर मौजूद हैं। बुनकरों, काश्तकारों, धागा कातने वालों, बढ़ई, धातु का काम करने वालों, कार्ड पंच करने वालों, ताना करने वालों, रेशम को रंगने वालों, ल्यूरेक्स भांजनेवालों की मिली-जुली आबादी और बड़ी संख्या के चलते यह स्थान खालूम के लिये रीसइकिल्ड कपड़े के क्षेत्र में संभावनाओं को तलाशने के लिये एक उपयुक्त साबित हुई।'

इसके अलावा इस जोड़ी ने रीसाइकिल बिजनेस को नए मुकाम को पूरा करने के क्रम में चार पुराने हथकरघे भी खरीदे। इनका प्रमुख उद्देश्य कपड़ों के बाजार में उच्च गुणवत्ता वाले रीसाइकिल्ड कपड़ों को पेश करने के साथ नए-जमाने का एक ऐसा कार्यस्थल विकसित करने का था जहां हथकरघा बुनकरों और कारीगरों को अपने काम का पूरा सम्मान मिल सके और वे एक प्रतिष्ठित जीवन जी सकने में सक्षम हों।

खालूम के साथ काम करने वाले बुनकर प्रतिमाह 13,500 रुपये से लेकर 15,000 रुपये के बीच कमाते हैं जबकि उद्योग के मानक 8,000 से 13,000 रुपये के मध्य हैं। इसके अलावा यहां काम करने वाले सहायक भी प्रतिमाह 12,000 रुपये पाते हैं। इसके अलावा नंदिता और राम सेलालु उच्च गुणवत्ता वाला एक ऐसा कपड़ा तैयार करना चाहते थे जिसे देखकर उपभोक्ता भी जान न पाए कि यह बिल्कुल नया है या फिर रीसाइकिल्ड। वर्तमान समय में इनकी टीम में 10 बुनकर, आठ सहायक और एक सुपरवाइजर शामिल हैं।

पर्यावरण के लिये कताई

नंदिता बताती हैं, 'आज के समय में बदलते फैशन के दौर में जहां कपड़े को उसका जीवन समाप्त होने से पहले ही त्याग दिया जाता है, पर्यावरण पर बहुत बड़ा असर पड़ता है- चाहे वह कपास की खेती में इस्तेमाल किये जाने वाले पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की भारी मात्रा हो या फिर कपड़ा कारखाने से निकलने वाला कपास का कचरा हो।'

खालूम की उत्पादन प्रक्रिया में केवन मानवशक्ति की जरूरत होती है जबकि मशीन लूम के लिये करीब 126 किलोवाॅट पावर की आवश्यकता होती है जो 93 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर होती है।

अब जब किसी भी उद्यम की ईको-फ्रेंडली प्रकृति को 'कार्बन फुटप्रिंट' और 'वाटर फुटप्रिंट' के आधार पर मापा जाता है ऐसे में ब्रांड, डिजाइनर और उपभोक्ता अपने सामने मौजूद विकल्पों को लेकर काफी सजग हो चले हैं। कई लोग अब अनैतिक तरीकों से तैयार किये गए कपड़े और पर्यावरणीय या सामाजिक और शॉर्टकट से रंगे वस्त्रों से खुद को दूर कर रहे हैं।

रीसाइकिल्ड धागा अधिक मजबूत नहीं होता और भारत में इसका उपयोग अधिकतर बुनाई में किया जाता है। पॉलिस्टर के रीसाइकिल्ड धागे की थोड़ी मात्रा पावर लूम्स पर भी तैयार की जाती है लेकिन चूंकि इससे बना कपड़ा शत-प्रतिशत पॉलिस्टर का होता है इसलिये यह वस्त्रों के लिये अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि यह नमी सोखने के लिये बेहतर नहीं होता।

नंदिता याद करते हुए कहती हैं, 'रीसाइकिल्ड धागे की बुनाई क्षमता बहुत कम हेाती थी। इसके चलते हमारे सामने कई चुनौतियां आईं जिनमें धागे का कम मजबूत होना, बार-बार गांठ बन जाना, गुच्छी का न खुलना और बार-बार बीच से टूटना शामिल था।'

विभिन्न प्रकार के करघों के इस्तेमाल से इन्हें बुनाई की कई पद्धतियों के बारे में जानने में काफी मदद मिली और आखिरकार कई महीनों की कवायद के बाद वे रीसाइकिल्ड धागे से लिये सबसे बेहतर तरीके तक पहुंचने में सफल रहे। इस दौरान बुनकरों ने रीसाइकिल्ड धागे की कई श्रेणियां तैयार करने के प्रयास किये जिसके नतीजतन वे कई प्रकार के कपड़ों के सभी संभावित संयोजनों का एक संग्रह बनाने में सक्षम हुए। मौजूदा 10 हथकरघों की मदद से खालूम की वर्तमान उत्पादन क्षमता 1,500 से 2,000 मीटर प्रतिमाह है।

आगवानी

एक तरफ जहां खादी पुराने समय से ही भारतीयों की पहली पसंद रही है वहीं पावरलूम और मशीनों से बने उत्पादों के मुकाबले हाथ से काते और हथकरघे से बने कपड़े का पारगमन बहुत धीमा रहा है।

इसके अलावा उपभोक्ता रीसाइकिल्ड हथकरघे के उत्पादों की बिक्री को मिश्रित प्रतिक्रिया देते रहे हैं क्योंकि वे इसकी प्रमाणिकता, जानकारी की कमी और कपड़े की गुणवत्ता को लेकर सशंकित रहते हैं। हालांकि देश में अभी भी रीसाइकिल्ड हैंडलूम कपड़े को लेकर कोई मानक निर्धारित नहीं हैं, खालूम जांच के लिये अपने तैयार किये कपड़े की पुलना वर्तमान पावरलूम के नये कपड़े से करते हैं।

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फिलहाल खालूम के लिये विस्तार करना सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि यह स्टार्टअप स्थिरता में रुचि रखने वाले ब्रांड की कपड़े की मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसी के चलते ये रिटेल और होलसेल, दोनों तरह से काम कर रहे हैं।

अंत में नंदिता कहती हैं, 'बहुत अधिक मात्रा में रीसाइकिल्ड कपड़ा बेचते हुए विस्तार करना, मान्यताओं को तोड़ना, लाभ में आना और अधिक लोगों को अपने साथ जोड़ने के इच्छुक हैं। हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य है एक ऐसे कपड़े को तैयार करना जो हर मायने में बिल्कुल नए कपड़े जैसा ही अच्छा हो।' नंदिता और राम को उम्मीद है कि उनका यह प्रयास कपड़ा उद्योग से जुड़े दूसरे लोगों को प्रेरित करेगा और रीसाइकिल्ड कपड़े के उद्योग को और आधुनिक बनाने में मदद करेगा।

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