28 लाख की नौकरी छोड़ शुरू किया एग्रीटेक स्टार्टअप, अब सालाना टर्नओवर पहुंचा 10 करोड़ के पार
लखनऊ के रहने वाले प्रतीक रस्तोगी ने एक ऐसा स्टार्टअप शुरू किया है, जिसने सभी को पोषण देने का जिम्मा उठा लिया है. वह पैदावार आधारित खेती को गुणवत्ता और न्यूट्रिशन आधारित खेती से रिप्लेस कर रहे हैं.
लखनऊ के रहने वाले प्रतीक रस्तोगी ने एक ऐसा स्टार्टअप शुरू किया है, जिसने सभी को पोषण देने का जिम्मा उठा लिया है. वह पैदावार आधारित खेती को गुणवत्ता और न्यूट्रिशन आधारित खेती से रिप्लेस कर रहे हैं. आज के वक्त में हर किसान पैदावार बढ़ाने पर जोर दे रहा है. तमाम कंपनियां भी पैदावार को ही ध्यान में रखते हुए काम कर रही हैं. लेकिन आज के वक्त में जरूरत है ऐसी फसल की, जो गुणवत्ता वाली हो. इस परेशानी को समझा है एक स्टार्टअप ग्रीनडे (
) ने, जो किसानों की फसल की पैदावार बढ़ाने के बजाय फसल की गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. इस कंपनी की शुरुआत तो मार्च 2017 में ही हो गई थी, लेकिन 3 साल तक कंपनी पायलट प्रोजेक्ट के तहत मार्केट को समझती रही. जनवरी 2020 में कंपनी ने कमर्शियल तरीके से बिजनेस शुरू किया और 'किसान की दुकान' कॉन्सेप्ट पर काम करने लगी28 लाख का पैकेज छोड़ा, एग्रिकल्चर को चुना
ग्रीनडे की शुरुआत की प्रतीक रस्तोगी ने, जो यूपी के लखनऊ के रहने वाले हैं. इस स्टार्टअप के दो और को-फाउंडर भी हैं. पहली हैं ऐश्वर्या भटनागर, जो मार्केटिंग की हेड हैं और दूसरे हैं अंकुर श्रीवास्तव, जो ऑपरेशन्स को हेड करते हैं.प्रतीक अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद दिल्ली चले गए, जहां श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से उन्होंने इकनॉमिक ऑनर्स की पढ़ाई की. लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से भी उन्हें पढ़ाई करने का मौका मिला. इतना ही नहीं, उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया और बिजनेस के गुर सीखे.
प्लेसमेंट शुरू होने के पहले ही दिन उन्हें एक बड़ा ऑफर भी मिल गया. एक कंसल्टिंग फर्म में करीब 28 लाख के पैकेज पर 2016 में ही उनका प्लेसमेंट हो गया था. हालांकि, साल भर नौकरी करने के बाद उन्होंने अपना खुद का बिजनेस करने की ठानीऔर 2017 में ग्रीनडे की शुरुआत की. प्रतीक बताते हैं आईआईएम में उन्हें यही सीखने को मिला कि नौकरी देने वाला बनना है. भारत कि उन तमाम समस्याओं को हल करने की कोशिश करनी है जो एक आम आदमी नहीं कर पा रहा है. वहीं उनके परिवार में पहले से ही लोग बिजनेस करते थे, तो इससे भी उन्हें बिजनेस करने की प्रेरणा मिली.
एग्रिकल्चर सेक्टर को ही क्यों चुना?
प्रतीक रस्तोगी ने देखा कि एग्रिकल्चर सेक्टर में एक बड़ा गैप है. हर किसान सिर्फ पैदावार आधारित खेती पर ध्यान दे रहा है. ऐसे में पैदा हुए अनाज की गुणवत्ता पोषण देने वाली नहीं थी. तब उन्होंने सोचा कि क्यों ना ऐसे मॉडल पर काम किया जाए, जिसके तहत गुणवत्ता वाली फसल पैदा की जा सके और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सके.
इस गैप को खत्म करने के लिए किसानों को बायोफोर्टिफाइड वैरायएटी के बीज दिए जाते हैं, जिससे उनकी फसल में न्यूट्रिशन अधिक हो. कई रिपोर्ट्स से सामने आया है कि भारत में बहुत सारे लोगों में जिंक और आयरन की कमी है, फसल में इनका न्यूट्रिशन बढ़ाकर लोगों की इस कमी को दूर किया जा सकता है. ग्रीनडे के तहत सबसे पहले तो किसान का बीज बदल दिया जाता है, जिससे उसकी फसल की गुणवत्ता बढ़ती है. वहीं साथ ही किसान को जीवाणु आधारित फर्टिलाइजर दिया जाता है और कैमिकल आधारित फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कम करने की कोशिश होती है. इस तरह मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है.
किसानों और आम लोगों को क्या फायदा?
इस मॉडल की खेती से किसानों को ये फायदा होता है कि उनकी फसल अधिक गुणवत्ता वाली होने की वजह से ऊंची कीमत पर बिकती है. जीवाणु आधारित फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है, जिससे भविष्य में किसान को काफी फायदा होता है. अगर किसान पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती की ओर मुड़ते हैं तो शुरु के एक-दो साल में पैदावार में बहुत बड़ा नुकसान देखने को मिलता है. वहीं ग्रीनडे के मॉडल में पैदावार का नुकसान काफी कम होता है, जिसकी भरपाई आसानी से ऊंची कीमत मिलने की वजह से हो जाती है. ग्रीनडे जीवाणु आधारित फर्टिलाइजर का प्रयोग खेत में चार चरण प्रक्रिया में करवाता है, पहले साल 25 फीसदी, दूसरे साल 50 फीसदी, तीसरे साल 75 फीसदी और चौथे साल 100 फीसदी खेत में इस मॉडल को लागू किया जाता है. ऐसे में पैदावार पर बड़ा नुकसान नहीं होता है.
जीरो फ्रेंचाइजी फीस में फ्रेंचाइजी दे रहा है ग्रीनडे
ग्रीनडे अभी 'किसान की दुकान' सेंटर की फ्रेंचाइजी ‘जीरो फ्रेंचाइजी फीस’ में दे रहा है, जिसके तहत किसानों के नजदीकी इलाकों में दुकान खोली जाती है. इसमें बीज, फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड सेलेकर किसानों के जरूरत की तमाम चीजें मुहैया कराई जाती हैं. इसकी फ्रेंचाइजी एग्रिकल्चर से बीएसई या एमएसई किए हुए स्टूडेंट्स को दी जाती है. अगर आपके पास डिग्री नहीं है और आप फिर भी फ्रेंचाइजी लेना चाहते हैं तो सरकार की तरफ से चलाए जा रहे कृषि प्रोग्राम के तहत 6 महीने की ट्रेनिंग या डिप्लोमा लेकर भी अप्लाई कर सकते हैं. ग्रीनडे की तरफ से भी हर संचालक को ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वह किसान की समस्या को समझकर उसे सही दवा-खाद या बीज दे सके.
क्या है स्टार्टअप का बिजनेस मॉडल?
स्टार्टअप की कमाई मुख्य रूप से 2 तरीकों से होती है. पहली कमाई तो होती है तमाम प्रोडक्ट्स के बिकने से और दूसरी कमाईहोती है सेवाओं के जरिए. ग्रीनडे के तहत किसानों को मिट्टी की जांच और फसल के बीमा जैसी सेवाएं दी जाती हैं. कंपनी की तरफ से फ्रेंचाइजी तो ‘जीरो फ्रेंचाइजी फीस’ में दी जाती है, लेकिन संचालक को सिक्योरिटी डिपॉजिट के तौर पर 3 लाख रुपये जमा करने होते हैं. अगर आप भविष्य में कभी ग्रीनडे से अलग होना चाहें तो आपके 3 लाख रुपये आपको वापस दे दिए जाते हैं.
संचालक को ना सिर्फ फ्रेंचाइजी ‘जीरो फ्रेंचाइजी फीस’ में मिलती है, बल्कि उसे जीएसटी, लाइसेंसिंग, टैक्स आदि के बारे में भी सोचने की कोई जरूरत नहीं होती है. ग्रीनडे का मॉडल दरअसल एक रेवेन्यू स्प्लिट मॉडल है. इसके तहत जितना भी रेवेन्यू होताहै, उसका 12-15 फीसदी हर महीने की 5 तारीख को संचालक के खाते में पहुंच जाता है.
कितनी मिली है फंडिंग और क्या है रेवेन्यू?
ग्रीनडे को अभी तक निवेशकों से तो फंडिंग मिली ही है, सरकार से भी ग्रांट मिल चुकी है. अभी तक ग्रीनडे को करीब 20 लाख रुपये का ग्रांट सरकार की तरफ से मिल चुका है. वहीं इस स्टार्टअप ने लगभग 3.15 करोड़ रुपये की फंडिंग पहले ली है. साल 2023 में ग्रीनडे लगभग 100 करोड़ रुपय की फंडिंग उठाने के प्रयास में लगा हुआ है. मौजूदा वक्त में इस स्टार्टअप की वैल्युएशन लगभग 26 ($ 3.1 million) करोड़ रुपये है. पिछले साल उनका 'टर्नओवर' 3.4 करोड़ था और कंपनी को प्रतिष्ठित निवेशकों से 3.1 करोड़ का फंड मिला था. इस साल कंपनी 5X ग्रोथ की ओर अग्रसर है और आगे विस्तार के लिए जल्द ही नए निवेश प्राप्त करने की योजना बना रही है. 2022-23 में अब तक करीब 9 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हो चुका है और साल खत्म होते-होते कंपनी 10 करोड़ रुपये से भी अधिक का रेवेन्यू हासिल कर लेगी.
इस राह में चुनौतियां भी कम नहीं
ग्रीनडे की राह में चुनौतियां भी खूब हैं. सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि तमाम गांवों में परंपरागत तरीके से लोग खेती करते आ रहे हैं. वह हमेशा से ही पास वाली दुकान से बीज और खाद खरीद रहे हैं. ऐसे में सबसे पहले तो उनका भरोसा जीतकर उन्हें अपना सामान बेचना ही बड़ी चुनौती है. अधिकतर किसान कम पढ़े-लिखे हैं, जिसके चलते उन्हें समझाना आसान नहीं. सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आती हैं कैमिकल फर्टिलाइजर वाली कंपनियां जो तुरंत असर दिखने की बात करती हैं और किसान उनकी तरफ मुड़ जाते हैं.
मौजूदा समय में ग्रीनडे के करीब 50 स्टोर हैं. आने वाले साल भर में कंपनी ऐसे 200-250 स्टोर खोलना चाहती है. वहीं अगले 5 साल में 5 हजार नए स्टोर खोलने की योजना है. कंपनी का टारगेट है कि 5 साल में किसान की दुकान के जरिए करीब 5 हजार युवाओं को रोजगार दिया जा सके. ग्रीनडे के तहत करीब 5-10 लाख नए किसानों को आधुनिक खेती में लाने की योजना पर काम किया जा रहा है. साथ ही किसानों से जुड़े हुए रिटेलर्स को भी मोटिवेट करना चाहते हैं कि पैदावार आधारित खेती के बजाय गुणवत्ता आधारित खेती की जाए. इतना ही नहीं, कंपनी खुद भी एफएमसीजी में घुसना चाहती है. आने वाले वक्त में कंपनी अपने खुद के ब्रांड का आटा, चावल दालें आदि लाने की भी सोच रही है.
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