इनक्रेडिबल इंडिया: ऐसा भाईचारा तो सिर्फ हमारे देश में ही मुमकिन!
कहते हैं न कि 'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।' हमारे देश की गंगा-जमुनी साझा संस्कृति से जुड़ीं ये मिसालें कुछ इसी तरह की हैं। कहीं हिंदू-मुस्लिमों ने हाइवे के आड़े आ रहे धर्मस्थलों को एकजुट होकर स्वयं अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया तो कहीं मुस्लिमों ने पैसे इकट्ठे कर अर्द्धनिर्मित मंदिर का निर्माण पूरा कराया है।
समिति के अध्यक्ष इरशाद हुसैन बताते हैं कि गणेश उत्सव में मुस्लिमों ने भी सुंदरकांड का पाठ किया। पूजा अनुष्ठानों में मुस्लिम महिलाओं की भी बराबर की भागीदारी रही।
हर दौर में समाज के दो रंग दिखते रहे हैं। नफरत फैलाने वाले अपनी करतूतों से विचलित करते रहते हैं और समाज को मनुष्यता का संदेश देने वाले अपना काम करते रहते हैं। 'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।' ये मिसालें कुछ इसी तरह की हैं। पहली मिसाल उत्तर प्रदेश के जिला जालौन की। देश में मंदिर और मस्जिद को लेकर जारी बहस के बीच इस जिले में दोनों समुदायों के लोगों ने समझदारी की मिसाल पेश करते हुए एक कानपुर-झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कालपी खंड के बीच एक पुल के निर्माण के लिए अपनी-अपनी इबादतगाहों को दूसरे स्थान पर ले जाने पर रजामंदी दे दी।
करीब 14 साल से लंबित एक पुल के निर्माण के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिलजुल कर क्षेत्रीय विकास की खातिर दो मंदिरों, सात मजारों और एक मस्जिद को दूसरे स्थान पर ले जाने का फैसला किया। इतना ही नहीं, उन्होंने एकमत होकर फ्लाईओवर के निर्माण के लिए रास्ते में पड़ रही दरगाह की एक दीवार को भी ढहा दिया। ये धार्मिक स्थल भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के डेढ़ किलोमीटर लम्बा उपरिगामी सेतु बनाने की राह में सबसे बड़ी अड़चन बने हुए थे। रास्ते में पड़ रहा एक शिव मंदिर हटाया जा चुका है, जबकि एक दुर्गा मंदिर के गर्भगृह को नया मंदिर बनते ही प्रतिमाओं के साथ वहां प्राण-प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा। जिस जगह नया मंदिर बनेगा, उसे चिह्नित भी कर लिया गया है। इसके साथ ही सातों मजारों को भी स्थानांतरित कर दिया गया है। इसके लिए पहले ताबूत मंगवाए गए। फिर एक मस्जिद को दूसरे स्थान पर ले जाया गया। इस साझा संस्कृति के प्रयास को ‘ऑपरेशन सहयोग' नाम दिया गया।
हमारी साझा संस्कृति की एक और ऐसी ही सांप्रदायिक सौहार्द्र मिसाल अतिसंवेदनशील फैजाबाद (उ.प्र.) की। इस बार नगर के मुकेरी टोला में पिछले दिनो हिंदू-मुस्लिम, दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर गणेश उत्सव मनाया। इससे पहले दोनों कौमों के लोगों ने मिलकर हिंदू-मुस्लिम गणेश पूजा समिति का गठन किया। समिति के अध्यक्ष इरशाद हुसैन बताते हैं कि गणेश उत्सव में मुस्लिमों ने भी सुंदरकांड का पाठ किया। पूजा अनुष्ठानों में मुस्लिम महिलाओं की भी बराबर की भागीदारी रही। इस मोहल्ले के लोग होली, दीपावली और ईद के त्योहार भी एकसाथ मनाते हैं। यहां 11 मुस्लिम परिवारों के बीच केवल एक हिंदू परिवार है, लेकिन दोनों के रिश्तों में गहरा भाईचारा है।
मोहर्रम पर पूरे देश में मातमी जुलूस में शिया समुदाय द्वारा रक्त बहाया जाता है, लेकिन देहरादून (उत्तराखंड) के विकासनगर-अंबाड़ी क्षेत्र में इस बार शिया समुदाय ने मातमी जुलूस में लहू बहाने की बजाय रक्तदान कर एक नई मिसाल कायम की। अंबाड़ी में मोहर्रम पर अंजुमने हैदरी अंबाड़ी, बल्ती यूथ फेडरेशन, सोफिया नूर बक्शिया यूथ फेडेशन की ओर से रक्तदान शिविर लगाया गया। शिविर में डेढ़ सौ से अधिक युवाओं ने रक्तदान किया। उन युवाओं का कहना था कि दान किए गए रक्त से लोगों जिंदगी बचायी जा सकती है। हजरत इमाम हुसैन अलेहस्लाम ने मानवता को बचाने को कुर्बानी दी, हम उनकी याद में रक्तदान कर मानवता को बचाने की छोटी सी कोशिश कर रहे हैं।
भारत की साझा संस्कृति की एक और मिसाल बिहार के बांकेबाजार (गया) से। यहां के हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों ने मिल कर मंदिर और मस्जिद का निर्माण कराया है। दोनों धर्मों के लोग एक-दूसरे के धर्म में आस्था-विश्वास रखते हैं। बांकेबाजार प्रखंड का एक गांव है खपरौंध। यहां की एक बात लगभग बीस साल पुरानी है, लेकिन उससे आज भी यहां की साझी विरासत को प्रेरणा मिलती रहती है। उस समय सड़क निर्माण के लिए जमीन की खुदाई के दौरान नक्कासीयुक्त एक पत्थर तथा गणेश-काली की मूर्तियां मिलीं। खबर फैलते ही मौके पर पूजा-अर्चना, भजन कीर्तन प्रारंभ हो गया। उसके पांच साल बाद जब वहां शिक्षिका सावित्री देवी ने मंदिर निर्माण कराया तो पैसा कम पड़ जाने से उसमें कुछ काम बाकी रह गया।
अभी पिछले ही सप्ताह खपरौंध के मुसलिमों ने निर्णय लिया कि मंदिर के बाकी निर्माण और सुंदरीकरण पर जो भी खर्च होगा, उसे वे वहन करेंगे। निर्माण कार्य के लिए पूंजी जुटाने में अजमत खां, लडन खां, बेहजाद खां, मति खां, आसिफ अली आदि ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस प्रखंड में एक तरफ पहाड़ी पर अवस्थित सूर्य एवं शिव मंदिर है तो दूसरी तरफ डुमरावां में बाबा मुराद साह का मजार, जहां दोनों समुदायों के लोग श्रद्धा से सिर नवाते हैं।
मनुष्यता की एक ताजा मिसाल और मथुरा (उ.प्र.) से। वैसे तो पुलिस अक्सर अपने खराब बर्तावों के लिए चर्चाओं में रहती है, लेकिन यहां उसकी एक मानवीय कोशिश ने खुशी से लोगों की आंखें नम कर दीं। एसओ हाथरस सिटी सोनू कुमार इलाहाबाद कोर्ट में तारीख से लौटते हुए मथुरा रेलवे जंक्शन पर उतरे, तभी उनकी नजर एक महिला पर पड़ी, जो बुरी तरह दर्द से तड़प रही थी। एसओ ने तुरंत 102, 108 नंबर, जो एंबुलेंस के लिए अधिकृत हैं उन पर फोन लगाया, पर किसी कारण एक भी एंबुलेंस नहीं मिली। सोनू कुमार समय न गंवाते हुए तुरंत एक कार से महिला को लेकर अस्पताल पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं। अस्पताल में स्ट्रेचर उपलब्ध नहीं था। इसके बाद उन्होंने महिला को गोद में उठाकर जिला महिला चिकित्सालय पहुंचाया। वहां महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया। एसओ की ये ऑफबीट दरियादिली क्षेत्र के लोगों को वाकई तारीफ के काबिल लगी।
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