चुनावी चंदे के धंधे पर एलेक्टॉरल बॉन्ड की धमक
कमाई का एक बड़ा जरिया चुनवी चंदा बन चुका है। इस पर रोक लगाने के लिए पहली मार्च से जारी होने जा रहे हैं एलेक्टॉरल बॉन्ड...
यह आम फहम शिकायतें रही हैं यानी जगजाहिर हकीकत की हमारे देश में राजनीति बिना किसी लागत के सबसे मुनाफे का धंधा हो चुकी है। राजनीतिक दलों में जनता की सेवा की भावना कितनी रह गई है, हर किसी को पता है। राजनीति करने वाले सब काम-धंधा छोड़कर यह बाना ओढ़ते ही इसलिए है कि इसकी आड़ में दिन दूनी, रात चौगुनी कमाई होने लगेगी। कमाई का एक बड़ा जरिया चुनवी चंदा बन चुका है। इस पर रोक लगाने के लिए पहली मार्च से एलेक्टॉरल बॉन्ड जारी होने जा रहे हैं। इस पर सरकार पारदर्शिता के दावे कर रही है तो विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।
रिप्रेजेंटशन ऑफ पीपुल एक्ट 1951 का सेक्शन 29सी राजनीतिक दलों को चंदे में मिलने वाली रकम पर सिर्फ मामूली पाबंदी लगाता है। उसी वक्त चुनाव आयोग ने यह भी मांग की थी कि सरकार किसी भी राजनीतिक दल को दो हजार रुपये से अधिक गुमनाम चंदा लेने की इजाजत न दे।
बैंकिंग सेक्टर के भ्रष्टाचार से तो इस वक्त पूरे देश के दिलोदिमाग में मथानी चल ही रही है, राजनीतिक लेन-देन के किस्से जमाने से हर ईमानदार मतदाता को मथते रहे हैं। यह मथानी थामने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी ने पिछले चुनाव में इस भ्रष्टाचार की चूलें हिलाने का देशवासियों से वायदा किया था। उसी की एक परिणति सामने है - एलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनाव चंदे का नया इंतजाम। राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए जारी चुनावी बांडों की बिक्री आगामी 01 मार्च से शुरू होने जा रही है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुताबिक ये बांड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की नयी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई की मुख्य शाखाओं से खरीदे जा सकेंगे। चुनावी बांडों की बिक्री 01 मार्च से 10 मार्च तक होगी।
केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों की फंडिग व्यवस्था में बदलाव के लिए दो हजार रुपये से अधिक नकद चंदा लेने पर पाबंदी लगा दी है। दो हजार से अधिक चंदा अब केवल चेक या डिजिटल ट्रांजैक्शन के माध्यम से ही संभव हो सकेगा, इसके साथ ही चंदा लेने वाली पार्टी को इनकम टैक्स रिटर्न भी भरना पड़ेगा। इसके लिए रिजर्व बैंक के नियमों में संशोधन भी किया जा रहा है। बॉन्ड लेने वाले राजनीतिक दल को अपना बैंक अकाउंट चुनाव आयोग में पंजीकृत कराना होगा। इलेक्टोरल बॉन्ड कोई नोटीफाइड बैंक ही जारी कर सकता है। बॉन्ड सिर्फ चेक या डिजिटल पेमेंट कर खरीदा जा सकेगा। बॉन्ड तय समय के लिए स्वीकार्य होगा। राजनीतिक दल इसे अपने नोटिफाइड बैंक अकाउंट के माध्यम से बॉन्ड भुना सकते हैं। बॉन्ड एक बेयरर चेक की तरह होगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में चुनाव आयोग ने सरकार से मांग की थी कि राजनीतिक दलों को चंदे में मिलने वाली रकम पर से पर्दा उठाने की व्यवस्था की जाए। राजनीतिक दलों की कमाई पर इनकम टैक्स से पूरी तरह से छूट होती है। रिप्रेजेंटशन ऑफ पीपुल एक्ट 1951 का सेक्शन 29सी राजनीतिक दलों को चंदे में मिलने वाली रकम पर सिर्फ मामूली पाबंदी लगाता है। उसी वक्त चुनाव आयोग ने यह भी मांग की थी कि सरकार किसी भी राजनीतिक दल को दो हजार रुपये से अधिक गुमनाम चंदा लेने की इजाजत न दे। अभी तक टैक्स मुक्त करोड़ों रुपये के चंदे की आड़ में जमकर कमाई हो रही है। पिछले महीने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजनीतिक दलों को चंदे के लिए चुनावी बांड की घोषणा की थी। चुनावी बांड एक हजार रुपए, दस हजार रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के होंगे।
चंदे के लिए ब्याज मुक्त बांड भारतीय स्टेट बैंक से जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर महीने में खरीदे जा सकते हैं। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के दौरान जेटली ने चुनावी बांड शुरू करने की घोषणा की थी। चुनावी बांड पर चंदा देने वाले का नाम नहीं होगा और इसे केवल अधिकृत बैंक खाते से ही 15 दिन के भीतर भुनाया जा सकेगा। बांड उन्हीं पंजीकृत राजनीतिक दलों को दिए जा सकेंगे, जिनको पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिला हो। वित्त मंत्री जेटली फेसबुक पर लिखते हैं- 'यह बिल्कुल अपारदर्शी तरीका है। ज्यादातर राजनीतिक दल और समूह इस मौजूदा व्यवस्था से बहुत सुखी दिखते हैं।
यह व्यवस्था चलती रहे तो भी उनको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सरकार भारत में राजनीतिक चंदे की वर्तमान व्यवस्था को स्वच्छ बनाने और मजबूत करने के लिए सभी सुझावों पर विचार करने को तैयार है। लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अव्यवहारिक सुझावों से नकद चंदे की व्यवस्था नहीं सुधरेगी, बल्कि उससे यह और पक्की ही होगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद सात दशक बाद भी राजनीतिक चंदे की स्वच्छ प्रणाली नहीं निकाल पाया है। राजनीतिक दलों को पूरे साल बहुत बड़ी राशि खर्च करनी होती है। ये खर्चे सैकड़ों करोड़ रुपये के होते हैं। बावजूद इसके राजनीतिक प्रणाली में चंदे के लिए अभी कोई पारदर्शी प्रणाली नहीं बन पाई है।'
चुनावी बांड के सम्बंध में केंद्र सरकार के अपने तर्क हैं और विपक्ष के अपने तर्क। सरकार का कहना है कि इस ताजा व्यवस्था से चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता आएगी। अभी तक राजनीतिक दलों को चंदा देने और उनका खर्च दोनों नकदी में होता चला आ रहा है। राजनीति में भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। बॉन्ड की मदद से चंदे की ब्लैकमनी पूरी तरह व्हाइट हो सकेगी। रिजर्व बैंक से जारी होने वाले इन बॉन्डों को सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही खरीदने का अधिकार है। चंदा देने वाला उसे खरीद कर किसी भी पार्टी को उसे चंदे के रूप में दे सकेगा और वह दल उसे बैंक के जरिये भुना लेगा।
अब लोगों के लिए सोच समझ कर यह तय करने का विकल्प होगा कि वे संदिग्ध नकद धन के चंदे की मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से चलन को अपनाए रखना चाहते हैं या चेक, ऑनलाइन ट्रांसफर और चुनावी बांड को चंदा देने का माध्यम सही मानते हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि वित्त मंत्री का दावा बिल्कुल बेबुनियाद है। इससे चंदे के लेन-देन की पारदर्शिता और कम हो जाएगी। लोग डर से सारा चंदा केवल सत्ताधारी पार्टी को देंगे। चुनावी चंदों की गड़बड़ियां स्थायी रूप से बनी रहेंगी। सरकार स्टेट बैंक से आसानी से पता लगा लेगी कि किस-किस ने चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं और किस-किस ने उनको भुनाया है।
इस प्रक्रिया से चंदा देने वाले इस बात से डरेंगे कि यदि उन्होंने विपक्षी दलों को पैसा दिया तो उनके काम-धंधे को सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के माध्यम से टारगेट किया जा सकता है। भाजपा चाहती है कि चंदा केवल उसके पास जाए, इसीलिए यह सब नया खेल खेला जा रहा है। कांग्रेस ने तो केंद्र सरकार के कदम पर जमा-जुबानी सिर्फ प्रतिक्रिया भर ही व्यक्त की, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख सीताराम येचुरी इस बॉन्ड प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। इसी महीने दो फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बांड जारी करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली माकपा की याचिका पर केन्द्र से जवाब तलब कर लिया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने येचुरी की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी करने के साथ ही इसे पहले से लंबित मामले के साथ संलग्न भी कर दिया। अपनी याचिका में येचुरी कहते हैं कि यह कदम लोकतंत्र को कमतर करके आंकने वाला है और इससे राजनीतिक भ्रष्टाचार और अधिक बढ़ जायेगा। उन्होंने संसद में भी यह मामला उठाया था और इस बारे में सरकार द्वारा प्रस्ताव पेश किये जाने पर इसमें संशोधन का अनुरोध किया था लेकिन सरकार ने लोकसभा में अपने बहुमत के सहारे राज्य सभा की सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया।
ऐसी स्थिति में उसके पास शीर्ष अदालत में आने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। एनडीए सरकार ने अपने पिछले बजट में चुनावी बांड की घोषणा की थी और निर्वाचन आयोग ने शुरू में इसे लेकर अपनी आपत्ति दिखाई थी। चंदे में पारदर्शिता का ताजा प्रयास प्रतिकूल स्थितियां पैदा करेगा। बॉन्ड पेश करने की पहल चंदा दाताओं की जानकारी छिपाने में मदद करेगी। इससे सिर्फ कुछ प्रभावशाली दानदाताओं को लाभ होगा। दानदाता, दानग्राही और दान की राशि से जुड़ी जानकारियां सरकारी गोपनीयता के दायरे में आ जाएंगी। चंदा देने के नाम पर मुखौटा कंपनियों के गठन को बढ़ावा मिलेगा। चुनावी बॉन्ड भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
चुनावी बांड पर सिर्फ कांग्रेस और माकपा ही नहीं, आम लोगों की ओर से भी कई तरह के अंदेशे व्यक्त किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगर दल नगद चंदा ले और उसे दो हजार से कम दिखाता रहे तो बांड की उपयोगिता या प्रासंगकिता क्या रह जाएगी? गोपनीयता के कारण राजनीतिक दल कारपोरेट घरानों, बड़ी कंपनियों के हाथ का खिलौना बन जाएंगे। जो कंपनियां चुपचाप बांड से जिस सरकारी पार्टी को चंदा देंगी, वह उनकी पसंद की नीतियां बनाएगी। जनता को जब इसकी कोई जानकारी ही नहीं होगी तो वह इस नापाक गठबंधन का विरोध कैसे करेगी? जब सरकार ने वित्त विधेयक में कंपनियों को राजनीतिक दलों को असीमित दान देने का नियम बना दिया है तो इससे कंपनियों को अपना मुनाफा और घाटा खाते में दिखाने की भी जरूरत नहीं रह जाएगी। दानकर्ता जैसे ही ‘ग्राहक को जानें’ फार्म भरेगा, उसकी सारी जानकारी वित्त मंत्रालय को मिल जाएगी।
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