भारी मुनाफे का धंधा हुआ जैविक मछली पालन, कम लागत में अच्छा पैसा कमा रहे किसान
बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों और गांवों के कम शिक्षित युवा भी मछली पालन उद्योग लगा कमा रहे हैं अच्छा मुनाफा...
विश्व में दूसरे नंबर के मत्स्य पालक देश भारत में अब जैविक मछली उत्पादन का कारोबार रोजगार की नई संभावनाएं जगाने जा रहा है। वित्त मंत्री मत्स्य पालक किसानों को क्रेडिट कार्ड सहित कई विशेष सुविधाओं का हाल ही में भरोसा दिया है। इस कारोबार की ओर अब देश के कामयाब युवाओं का तेजी से रुझान बढ़ रहा है। फिलहाल, देश में प्रतिवर्ष 95 लाख मिट्रिक टन से अधिक का मछली उत्पादन हो रहा है।
सामान्य ढंग से मछली पालन की तुलना में जैविक मछली का उत्पादन शुरू में कम होता है लेकिन लम्बी अवधि के लिए यह बहुत ही उपयुक्त है। इसमें कम जोखिम है। भारत चीन के बाद सी फूड का सबसे बड़ा निर्यातक है।
मत्स्य पालन पूरी दुनिया में एक वृहत्तर उद्योग का रूप ले चुका है। मछली उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है। वर्ष 2017 में भारत ने पांच अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का मत्स्य-निर्यात किया था। भारत में लाखों मछुआरों के अलावा अब बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवा भी इस रोजगार से आकर्षित हो रहे हैं। इस समय हमारा देश में प्रतिवर्ष 95 लाख मिट्रिक टन से अधिक मछली उत्पादन कर रहा है, जिसमें से 36 प्रतिशत समुद्री स्रोतों से और 64 प्रतिशत तालाब-पोखरों आदि से किया जा रहा है।
मछली के कारोबार ने भारतीय युवाओं को अत्यंत लाभकारी रोजगार की दृष्टि से इन दिनो क्रांति सी कर रखी है। फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली भी हाल ही में आम बजट लोकसभा में प्रस्तुत करने के दौरान इस मुनाफेदार उद्यम को मजबूत संश्रय का आश्वासन देते हुए मछली पालन को प्रमोट करने और इस काम-धंधे में लगे लोगों के वेलफेयर के लिए अलग से हजारों करोड़ के फंड की व्यवस्था की घोषणा कर चुके हैं। अब मछली पालक किसानों को क्रेडिट कार्ड भी दिया जाएगा। इसके साथ ही सरकार गंभीरता से जबकि जैविक खेती को भी बढ़ावा देने जा रही है। यूरोपीय देशों में जैविक मछली की मांग पूरी करने के उद्देश्य से अब भारत में जैविक मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए स्विटजरलैंड की एक कम्पनी के साथ करार किया गया है।
भारत के समुद्र तटीय इलाकों में जैविक मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए खुदरा और थोक कारोबार करने वाली काप कॉआपरेटिव और समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के बीच यह करार हुआ है। आरंभ में पायलट परियोजना के तहत केरल में इसकी शुरुआत की जाएगी और सफल होने पर इसका विस्तार किया जाएगा। फिलहाल केरल में लगभग एक हजार हेक्टेयर में झींगा मछली की ब्लैक टाइगर किस्म का पालन किया जाएगा। जैविक मत्स्य पालन के लिए विशेष तरह के खाद्य पदार्थ की जरूरत होती है। ऐसे में कार्बनिक भोजन तैयार करने के लिए एक छोटे स्तर के फीड मिल की स्थापना भी की जाएगी। इसके साथ ही किसानों को नयी विधि से मत्स्य पालन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
यूरोपीय देशों में 2200 से अधिक आउटलेट चलाने वाली काप कोआपरेटिव इससे पहले वियतनाम में जैविक मत्स्य पालन करा चुकी है और इससे वहां के किसान लाभान्वित हो रहे हैं। यहां परम्परागत ढंग से मछली पालन करने वाले किसानों की तुलना में जैविक मत्स्य पालन करने वालों को अधिक आमदनी हो रही है। प्राधिकरण के अध्यक्ष ए जयतिलक के अनुसार जैविक विधि से मछली पालन की लागत अधिक होने के कारण बहुत से किसान इसमें संकोच करते हैं। करार के कारण किसानों को साधारण मछलियों की तुलना में अधिक मूल्य मिलेगा और इससे मत्स्य पालकों को प्रोत्साहन मिलेगा। सामान्य ढंग से मछली पालन की तुलना में जैविक मछली का उत्पादन शुरू में कम होता है लेकिन लम्बी अवधि के लिए यह बहुत ही उपयुक्त है। इसमें कम जोखिम है। भारत चीन के बाद सी फूड का सबसे बड़ा निर्यातक है। वर्ष 2016 ..17 के दौरान देश से 11 लाख 34 हजार 948 टन सी फूड का निर्यात किया गया था। झींगा और फ्रोजन फिश के निर्यात से 37 हजार 870 करोड़ रुपये की आय हुयी थी।
वैसे भी इस समय देश के लगभग हर स्टेट में मछली पालन सबसे मुनाफे का कारोबार साबित हो रहा है। मिश्रित मछली पालन से एक एकड़ तालाब से प्रतिवर्ष लाखों रुपए की कमाई हो रही है। चूँकि यह काम बरसात के दिनों में ही होता है और एक फसल में बीस-पचीस दिन लगते हैं। एक साल में तीन-चार फसल पैदा कर भारी कमाई हो रही है। जो मछलियाँ तालाब में बच जाती हैं, उन्हें बड़ा होने पर वह बेच कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा रहा है। वैसा तालाब जो काफी छोटा है और जिसमें पानी भी अधिक दिनों तक नहीं रहता है, उसमें बड़ी मछली का उत्पादन संभव नहीं लेकिन जीरा (मत्स्य बीज) का उत्पादन कर उससे भी अच्छी आमदनी हो रही है।
किसान 25 डिसमिल के तालाब से पंद्रह-बीस दिन में पाँच हजार रुपए तक और एक साल में 15-20 हजार तक कमा रहे हैं। मछली पालने वाले तालाब का क्षेत्रफल 0.5 से 5.0 हेक्टेयर तथा गहराई पूरे साल 1.5 से 2.0 मीटर होनी चाहिए। तालाब की जैविक परिस्थितिकी, मछलियों के जीवन जैविक क्रियाओं व उनके उत्पादन के अनुकूल है या नहीं इसके लिये सबसे पहले तालाब में उपस्थित पोषक तत्वों की मात्रा के घुलित आक्सीजन की स्थिति, विषैली गैसों की मात्रा तथा प्राकृतिक भोजन की स्थिति का ज्ञान आवश्यक है ताकि उसके अनुसार उचित प्रबन्धन करके उनमें गुणवत्ता सुधार किया जा सके। मत्स्य-बीज (जीरा) को डालने के पूर्व तालाब को साफ़ करना आवश्यक है।
तालाब से सभी जलीय पौधों एवं खाऊ और छोटी-छोटी मछलियों को निकाल देना चाहिए। जलीय पौधों को मजदूर लगाकर साफ़ करना अच्छा रहता है और आगे ख्याल रखें कि यह पुन: न पनप सके। खाऊ तथा बेकार मछलियों को खत्म करने के लिए तालाब को पूर्ण रूप से सुखा दिया जाये या जहर का प्रयोग किया जायें। इसके लिए एक एकड़ तालाब में एक हजार किलोग्राम महुआ की खली डालने से दो-चार घंटों में मछलियाँ बेहोश होकर सतह पर आ जाती हैं। पानी में 200 किलोग्राम प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर के उपयोग से भी खाऊ मछलियों को मारा जा सकता है। पानी में इन जहरों का असर 10-15 दिनों तक रहता है। मत्स्य पालन उद्योग में नई टेक्नोलॉजी ने नई क्रांति पैदा कर दी है।
मत्स्य पालन रोजगार के अवसर तो पैदा कर ही रहा है, खाद्य पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। मछली पालन उद्योग में प्रशिक्षण के लिए कोई निश्चित शैक्षिक योग्यता व आयु सीमा निर्धारित नहीं है, किंतु डिप्लोमा करने के लिए उम्मीदवार को विज्ञान स्नातक होना चाहिए। डिप्लोमा देश के गिने-चुने मत्स्य विज्ञान से संबंधित कॉलेजों से होता है।
छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं, वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर रहे हैं। मछली पालन के लिए सरकार दस लाख रुपए तक का ऋण मुहैया कराती है। यह धनराशि आसान किस्तों में तथा कम ब्याज पर जमा की जा सकती है। मछली पालन उद्योग में डिप्लोमा या डिग्री प्राप्त कर युवा सरकारी, अर्ध-सरकारी, स्वायत्तशासी निकायों और राज्य सरकारों के अधीन प्रशिक्षण केंद्रों में रोजगार पा सकते हैं। भारत में मत्स्य शिक्षा प्रदान करने वाला एकमात्र संस्थान ‘केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान’ मुम्बई में है।
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