धूप में पसीना बहाकर दो बहनों ने चार माह में खोद डाला 28 फीट गहरा कुआं
जिस कुएं को आधा खोद कर प्रशासन भूल चुका था उसे दो बेटियों नें मिलकर पूरा खोदा, खुशी से छलकीं पिता की आंखें...
भास्कर बाबू की दोनो बेटियों ने भाई के साथ मिलकर जब अट्ठाईस फीट गहरा कुआं अपनी मशक्कत से खोद डाला, जैसे ही धरती के सीने से पानी छलका, पिता की आंखें भी खुशी से बरस पड़ीं। यह कुआं आधा-अधूरा खोदने के बाद प्रशासन जानबूझ कर भूल चुका था।
इन दोनों बेटियों ने बिना किसी सरकारी इमदाद के जब प्रशासन की घोर लापरवाही के आगे अपने पिता को हताश-निराश होते देखा तो साहसिक कदम उठाते हुए लगातार चार महीने तक वे कठिन मशक्कत कर एक कुआं खोदने में जुटी रहीं।
बेटियां भला क्या नहीं कर सकती हैं! समंदर के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाकर अपनी बहादुरी का परचम लहराने के बाद भारत की दो बेटियों ने आसमान चूमने का हौसला दिखाया है, जो एक बेहद हल्के और छोटे प्लेन से पूरी दुनिया का चक्कर लगाने जा रही हैं। मध्य प्रदेश में किसी की बेटी लड़ाकू विमान उड़ा रही है, कोई एजुकेशन में स्टेट टॉप कर रही है तो कोई बेटी आईपीएस, आईएएस बन रही है। अभी पिछले सप्ताह ही नीमच (म.प्र.) सीआरपीएफ के रंगरूट केंद्र पर 44 सप्ताह की परीक्षा पास कर 45 बेटियां देश सेवा के लिए समर्पित हो गईं। ये देश में आतंकी और नक्सली क्षेत्रों में मोर्चा संभालेंगी।
ये कामयाबियां भी कुछ कम नहीं लेकिन राज्य के खरगौन जिले की दो बेटियां ऐसा कुछ कर गुजरीं, जिस पर पूरे इलाके को नाज़ है। इन दोनों बेटियों ने बिना किसी सरकारी इमदाद के जब प्रशासन की घोर लापरवाही के आगे अपने पिता को हताश-निराश होते देखा तो साहसिक कदम उठाते हुए लगातार चार महीने तक वे कठिन मशक्कत कर एक कुआं खोदने में जुटी रहीं। जैसे ही कुएं से पानी निकला, उनके पिता की भी आंखें खुशी से बरसने लगीं। कुछ ही दिनो में यह बात पूरे इलाके में फैल गई कि भास्कर बाबू की दो बेटियों ने एक कुआं खोदा है, जिसे प्रशासन सिर्फ दस फीट खोदने के बाद जानबूझकर भूल गया था।
मामला खरगोन जिले के भीकनगांव का है। यहां के रहने वाले बाबू भास्कर की स्नातक तक शिक्षा पूरी कर चुकीं दो बेटियां ज्योति और कविता ने कड़ाके की गर्मी में चार महीने तब तक रात-दिन एक किए रखा, जब तक धरती के सीने से पानी नहीं छलक पड़ा। वे खून-पसीना एक कर कुआं खोदने में जुटी रहीं। उनकी इस मशक्कत में उनका इंजीनियर भाई भी साथ-साथ जुटा रहा। ज्योति और कविता कहती हैं कि 'तीन साल तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद हमें यह एहसास हो गया था कि प्रशासन की तरफ से इस मामले में कोई मदद नहीं मिलने वाली है। हम अपने पिता और चाचा को और अधिक परेशान नहीं देख सकते थे। इसके बाद हमने अप्रैल में खुद ही इस काम को पूरा करने का फैसला किया, जब पारा 40 डिग्री के पार जा रहा था। अब हमारे पिता और चाचा को सिंचाई की परेशानी नहीं होगी और वे अगले साल की गर्मियों के लिए तैयार रहेंगे।'
जिस कुएं को आधा-अधूरा खोदने के बाद प्रशासन भूल गया था, उस पर लंबे समय तक पूरे परिवार की निगाह लगी रही। वे बाट जोहते रहे, शायद कभी न कभी इसे प्रशासन पूरा जरूर खुदाई करा देगा लेकिन उनका यह सपना जब धरा रह गया, सब्र जवाब देने लगा। प्रशासन द्वारा इस कुएं को सिर्फ दस फीट की गहराई तक खोदा गया था। भास्कर बाबू ने बार-बार गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यह सब वाकया उनकी तीनो संतानों के सामने गुजरता रहा। देख-सुनकर वे भी मन ही मन विक्षुब्ध होते रहे। आखिरकार एक दिन तीनो खुद कुआं खोदने निकल पड़े। चार महीने तक जुटे रहे।
मेहनत रंग लाई और अट्ठाईस फीट गहराई तक पहुंचते ही पानी का सोता धरती से फूट पड़ा। बाबू भास्कर कहते हैं कि 'मैंने अपनी जिंदगी की सारी कमाई बेटियों की पढ़ाई पर ही खर्च कर दी। उसके बाद बेटियों ने इतना मुश्किल काम कर दिखाया है। अब तो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इस मेहनत के लिए उन्हें शाबासी दूं या फिर अपने पर पछतावा करूं कि मैंने उन्हें मजदूर बना दिया। बेटियों ने भरी दोपहरी में अपनी कमर में रस्सी बांध कर कुएं से पत्थरों को खींच कर निकाला। उतनी मेहनत तो मेरे भी बूते की नहीं थी लेकिन मेरी दोनो बेटियों और एक बेटे ने पानी का संकट आसान कर दिया।'
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