गांव की महिलाओं की कला को चमकाने की कोशिश है 'चुंगी'
दलित महिलाओं की कला को बेहतर बनाने की कोशिश...बड़ी नौकरी' छोड़कर दलित महिलाओं के लिए आगे आईं...चुंगी से 25 महिला कलाकार और कुल मिलाकर 35 कलाकार... चुंगी के जरिए दलित महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है...दलित महिला कलाकारों को आत्मनिर्भर बनाने का अनोखा प्रयास...
कहते हैं किसी चीज़ में रुचि रखना और उसके उत्थान के बारे में सोचना दोनों दो बातें हैं। साथ में यह भी सच है कि दोनों बातें सबके बस की नहीं होती। क्योंकि रुचि रखना नितांत निजी हो सकता है पर उसकी बेहतरी के बारे में सोचना, उससे जुड़े लोगों के बारे में सोचना वाकई हिम्मत और साहस का काम है। ये बातें हम इसलिए कर रहे हैं कि बिहार के गया ज़िले की श्वेता तिवारी ने कुछ ऐसा ही किया। अपनी रुचि को उन्होंने एक नया रूप दिया और बनाई 'चुंगी", दलित महिलाओं की कला को बेहतर बनाने का एक मंच।
बिहार के गया में जन्मी श्वेता तिवारी का बचपन सामान्य तरह से बीता। पढ़ाई-लिखाई के बजाय श्वेता की रूचि कला और संगीत में अधिक रही। भारत भर के हस्तकला कारीगरों को आय के अवसर देने के लिए श्वेता ने चुंगी की शुरूआत की। इसके ज़रिए महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का एक मंच मिला है। चुंगी में दलित महिलाओं की कला को बेहतर बनाने और उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाने पर ध्यान दिया जाता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद, श्वेता विज्ञापन उद्योग से जुड़ गईं जहाँ के सफ़र को वह काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा बताती हैं। श्वेता कहती हैं, “घर से जल्दी निकलकर रात को देर से लौटना, क्लाइंट पिचिंग में आख़िरी समय की मारा-मारी, काम का प्रेशर, वीकेंड्स पर भी काम, घर में होने वाली पार्टीज़। लोग हमेशा यही सवाल उठाते थे कि – ऐसा क्या काम है जो दिन में नहीं हो सकता है।” श्वेता को भी लगने लगा कि वाकई वो ऐसा क्यूं कर रही हैं? किसके लिए कर रही हैं? इन्हीं सवालों ने उनमें एक नई ऊर्जा दी। लगातार आलोचना ने ही उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत दी। इससे बेहतर समाज बनाने की उनकी सोच को और ताक़त मिली।
चुंगी – बदलाव की एक तस्वीर
चुंगी कला और कलाकारों को पुनर्जीवित करने की एक पहल है। आजकल की डिजिटल दुनिया में क्रोशे, खंथा कारीगरी, या मधुबनी चित्रकारी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। श्वेता बताती हैं कि “कलाकारों को ऑनलाइन शॉपिंग डोमेन में अपनी कला के प्रदर्शन के लिए एक नई जगह और मंच मिलेगा”।
श्वेता हमेशा से ही अपने शहर के लोगों की शिक्षा और रोज़गार के लिए मदद करना चाहती थीं। चुंगी के रूप में उन्होंने यह मक़ाम हासिल कर लिया है। महिलाओं को प्रशिक्षण देकर और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर इन्होंने एक भरोसेमंद नेटवर्क तैयार कर लिया है। इसके बारे में श्वेता कहती हैं कि “यह कलाकारों का एक मिलजुलकर रहने वाला छोटा-सा परिवार है। सुनीता भी एक कलाकार की तरह हमसे जुड़ीं और आज हमारे परिवार का एक हिस्सा हैं। हम अपनी चुनौतियां, मज़ेदार चुटकुले और रोज़मर्रा की पारिवारिक समस्याओं को एक-दूसरे से साझा करते हैं।”
चुनौतियाँ
चुंगी को शुरू करने में श्वेता के जीवन की दो बहुत अहम महिलाओं का हाथ था- श्वेता की माँ, वीणा और उनकी बहन स्मिता। इसमें सबसे ज़्यादा मुश्किल काम महिलाओं को सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर खुलकर सामने आने के लिए राज़ी करना और पति या परिवार के लोगों की बातों से निराश न होने के लिए समझाना था।
शुरू के बहुत सारे दिन इन महिलाओं के परिवारों को मनाने में गुज़र गए। वह कहती हैं, “हालाँकि लगातार मिलने रहने पर लगभग एक महीने बाद हम कुछ महिलाओं को मना पाए थे। इसके बाद चुंगी महिला कलाकारों का पहला समूह अपने अस्तित्व में आया। इसके बाद हमें ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और महिलाएँ अपने-आप ही हमसे जुड़ने लगीं।”
श्वेता को भी इस व्यवसाय में दूर से ही सबकुछ मैनेज करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कलाकार और उनके परिवार श्वेता के गाँव में रहते हैं, वहीं श्वेता को मुंबई से इस बात का ख्याल रखना पड़ता है कि चुंगी का काम-काज बराबर चलता रहे।
बकौल श्वेता “कई बार समय और लोगों की कमी के कारण टारगेट पूरे नहीं हो पाते हैं। जैसा कि हर संस्थान के साथ होता है, हमारे संसाधन ही चुंगी का आधार हैं।”
पूँजी का इंतज़ाम उनके लिए अब तक की सबसे बड़ी समस्या रही है क्योंकि आय का कोई भी बाहरी स्रोत नहीं है। “मैं भी अपने अनुभवों से बहुत कुछ सीख रही हूँ”। स्टीव जॉब्स और उनकी विफलताओं की कहानी श्वेता के लिए प्रेरणा रही हैं। इससे उन्हें संघर्ष करने की शक्ति मिलती है।
सफ़र के पीछे की प्रेरणा
श्वेता आगे बताती है कि “मुझे अपने परिवार से बहुत प्रेरणा और सहारा मिलता है और मेरी सारी सफलताओं का श्रेय उन्हें ही जाता है।” उनके परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया है और स्थानीय कलाकारों और उनके परिवारों के साथ मेल-जोल बढ़ाने में भी उनकी मदद की है।
श्वेता का मानना है कि पिछले एक साल में चुंगी कलाकारों ने अपनी कीमत पहचानी है और इसी के चलते उन्हें समाज में पहचान और सम्मान मिला है। वह आगे बताती हैं कि “महिलाओं में ज़बरदस्त बदलाव आया है- उनका मनोबल बढ़ा है और अब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे पाने का एहसास ही मुझे सकारात्मकता और गर्व से भर देता है। यही मेरी प्रेरणा भी है।”
आगे का सफ़र
श्वेता ने बताया कि “एक साल पहले हु्ई शुरुआत में चुंगी की अकाउंट बुक में ज़ीरो बैलेंस था, लेकिन आज चुंगी से 25 महिला कलाकारों और कुलमिलाकर 35 कलाकारों को मदद मिल रही है।”
अभी उनके साथ क्रोशे, मधुबनी चित्रकारी और कथा कारीगरी की कलाओं पर काम करने वाले कलाकार जुड़े हुए हैं। “हम पहचान खो चुकी ऐसी ही कलाओं को स्थानीय कलाकारों की मदद से सामने लेकर आएँगे। हम हर दिशा में विकास करना चाहते हैं। अगले साल तक 100 से भी अधिक कलाकारों को अपने परिवार में शामिल करना हमारा लक्ष्य है ताकि हम महिलाओं के कलात्मक हुनर से उनकी पहचान बने और वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।