देश के बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए भारत का ये इंजीनियर छोड़ आया विदेश में आईटी की नौकरी
विदेश से लौट यह इंजीनियर संवार रहा बच्चों का भविष्य
ईटेकड्रीम्स, ग्रामीण क्षेत्र में शुरू किया गया तकनीकी स्टार्टअप है, जो एक तरफ पूरे देश की सेवा करने की अवधारणा पर काम कर रहा है और वहीं दूसरी ओर सामुदायिक सेवा की दिशा में भी काम कर रहा है।
तकनीकी क्षेत्र में जोगिंदर रोहिल्ला का बेहतरीन करियर हो सकता था और वह यूरोप और साउथ अमेरिका में रहकर विदेशी जीवनशैली अपना सकते थे, लेकिन हरियाणा के छोटे से शहर बहादुरगढ़ की जमीनी समस्याओं ने उन्हें अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया।
'संस्कृति' के लिए 2013 में वह भारत वापस लौट आए। वह कहते हैं कि नौकरी छोड़ना उनके लिए बेहद कठिन फैसला था, लेकिन करीबी दोस्तों और परिवार के सहयोग की बदौलत यह उनके जीवन का सबसे बेहतरीन फैसला साबित हुआ।
हरियाणा के रहने वाले जोगिंदर रोहिल्ला ने 'संस्कृति' नाम के स्टार्टअप के अंतर्गत लाइब्रेरियां बनवाईं और बच्चों को करियर को सही दिशा देने की मुहिम की शुरूआत की। इसके अलावा ईटेकड्रीम्स नाम के स्टार्टअप के माध्यम से वह ग्रामीण इलाकों में रोजगार पैदा करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। हाल में 'संस्कृति' मुहिम के अंतर्गत 7 राज्यों में 20 लाइब्रेरियां स्थापित की जा चुकी हैं और बच्चों को सही दिशा दी जा रही है। अभी तक इस मुहिम से करीब 2 हजार बच्चों को उपयुक्त करियर चुनने में मदद मिल चुकी है। ईटेकड्रीम्स, ग्रामीण क्षेत्र में शुरू किया गया तकनीकी स्टार्टअप है, जो एक तरफ पूरे देश की सेवा करने की अवधारणा पर काम कर रहा है और वहीं दूसरी ओर सामुदायिक सेवा की दिशा में भी काम कर रहा है।
तकनीकी क्षेत्र में जोगिंदर रोहिल्ला का बेहतरीन करियर हो सकता था और वह यूरोप और साउथ अमेरिका में रहकर विदेशी जीवनशैली अपना सकते थे, लेकिन हरियाणा के छोटे से शहर बहादुरगढ़ की जमीनी समस्याओं ने उन्हें अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया। उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि इन समस्याओं को तमाम चुनौतियों के बावजूद बेहतर शिक्षा के जरिए हल किया जा सकता है। वह घर लौटे और उन्होंने तीन मुख्य आधारों पर बदलाव की नींव रखी; ज्ञान, साक्षरता और महत्वाकांक्षा।
सपनों के नाम की जिंदगी
जोगिंदर उर्फ जोगी ने अपने बड़े भाई के साथ, 'संस्कृति' के बारे में सोचा था। बड़े भाई की असमय मौत के बावजूद उन्होंने इस सपने को पूरा किया। जोगी ने दीनबंधु छोटूराम विश्वविद्यालय से विज्ञान और तकनीक विषय में स्नातक किया और फिर आईएमटी (गाजियाबाद) से पीजीडीबीए की डिग्री ली। वह बताते हैं कि उनके शहर में कोई भी ढंग की लाइब्रेरी नहीं थी और उन्हें इसकी कमी महसूस होती थी। इस चुनौती को हराने के लिए ही उन्होंने 2007 में 'संस्कृति' की शुरूआत की। उन्होंने बताया कि 2007 में उन्होंने अपने घर में एक मुफ्त पब्लिक लाइब्रेरी की शुरूआत की और फिर 2008 में औपचारिक रूप से संस्कृति को लॉन्च किया।
जोगी गुड़गांव में टीसीएस में काम करते थे और वह बहादुरगढ़ और गुड़गांव के बीच अपने काम और 'संस्कृति' के काम के बीच बड़ी मुश्किल से तालमेल बैठा पाते थे। करियर ग्रोथ के साथ वह 2009 में बेल्जियम और चिली भी गए, लेकिन उन्होंने 'संस्कृति' के काम को रुकने नहीं दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने विदेश में भी ऐसे लोगों से संपर्क स्थापित किया, जो संस्कृति के लिए सहयोग कर सकते थे।
वह बताते हैं कि जब वह यूरोप में थे तब सोशल मीडिया के जरिए अमेरिका में रह रहे एक भारतीय से उनका संपर्क हुआ और उसने बहादुरगढ़ में स्थित लाइब्रेरी के लिए 50 हजार रुपयों की किताबों का सहयोग किया।
भारत वापसी
'संस्कृति' के लिए 2013 में वह भारत वापस लौट आए। वह कहते हैं कि नौकरी छोड़ना उनके लिए बेहद कठिन फैसला था, लेकिन करीबी दोस्तों और परिवार के सहयोग की बदौलत यह उनके जीवन का सबसे बेहतरीन फैसला साबित हुआ। जब वह पूरी तरह से संस्कृति के काम में जुटे थे, उनके पिता को कैंसर हो गया और फिर कुछ वक्त बाद उनका निधन भी हो गया। संस्कृति ही वह कारक था, जिसके जरिए वह इस सदमें से बाहर आ सके।
जोगी कहते हैं कि अपने शहर में लाइब्रेरी को मिली लोकप्रियता के बाद उन्होंने पूरे भारत में अपनी मुहिम को पहुंचाने का फैसला लिया। हरियाणा, यूपी, तेलंगाना, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, बिहार और उड़ीसा में 20 लाइब्रेरियां खोली जा चुकी हैं। 'संस्कृति' बहुत से स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के साथ भी काम करता है। इनके जरिए 'संस्कृति' को आर्थिक सहायता के साथ-साथ फर्नीचर इत्यादि की भी सहायता मिलती है।
जोगी ने बताया कि पब्लिशर को किताबों की सूची और पता भेजा जाता है। फर्नीचर के लिए एनजीओ मार्केट में कीमत का आकलन कर, चेक के जरिए पैसा भेजते हैं। कुछ जगहों पर सामुदायिक सहयोग भी मिलता है और लोग पुराने फर्नीचर इत्यादि दे जाते हैं। एक लाइब्रेरी को स्थापित करने में 7-10 हजार रुपये की आधारभूरत लागत आती है। संस्कृति पूरे देश में 100 लाइब्रेरियां खोलने की योजना बना रहा है और इसके लिए स्टार्टअप आर्थिक सहयोग की व्यवस्था कर रहा है। जोगी बताते हैं कि उन्हें आज तक वह दिन याद है, जब उनकी लाइब्रेरी में पहली बार 100 लोग आए थे। यह उनकी लाइब्रेरी की पहली बड़ी उपलब्धि थी। बहुत से बच्चे लाइब्रेरी में अपने नोट्स छोड़ जाते हैं और जोगी को उनकी मुहिम के लिए धन्यवाद देते हैं।
उच्च शिक्षा के लिए राह
इसके बाद जोगी को यह अहसास हुआ कि शुरूआती शिक्षा से भी बड़ी चुनौती है उच्च शिक्षा सुनिश्चित करना। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सिर्फ 19.4 प्रतिशत विद्यार्थी ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। जोगी ने पाया कि उच्च शिक्षा से विद्यार्थी आत्मनिर्भर और बुद्धिजीवी हो पाते हैं। उनका मानना है कि भारत में बच्चों में योग्यता की कोई कमी नहीं है, लेकिन करियर के विकल्पों की उपयुक्त जानकारी के अभाव में वह बेहतर करियर नहीं बना पाते। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही जोगी ने करियर के विकल्पों की भी जानकारी देना शुरू किया और उनकी टीम ने गांवों में जाकर बच्चों की सहायता की। शुरूआती दौर में ही मिले शानदार फीडबैक की बदौलत टीम ने करियर काउंसलिंग के सेशन्स को नियमित करने के बारे में सोचा।
जोगी बताते हैं कि उनकी लाइब्रेरी में तीन साल बाद आकर एक विद्यार्थी ने उन्हें धन्यवाद दिया और बताया कि उनकी मुहिम की बदौलत ही वह इंजीनियर बनने के अपने सपने को पूरा कर सका। इस घटना के बाद जोगी को अहसास हुआ कि वह सही दिशा में काम कर रहे हैं।
2008 में हुए पहले सत्र में 9वीं और 10वीं कक्षा के 50 बच्चों ने हिस्सा लिया। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान में ऐसे सेशन्स आयोजित किए गए। जोगी को उम्मीद है कि अगले साल तक उनकी मुहिम से जुड़ने वाले बच्चों की संख्या का आंकड़ा 10 हजार तक पहुंच जाएगा।
चुनौतियां
चुनौतियों के बारे में बात करते हुए जोगी बताते हैं कि परिवर्तन के लिए एक अच्छी टीम बनाना सबसे महत्वपूर्ण काम है। वह मानते हैं कि बहुत से लोग मुहिम से जुड़ते हैं, लेकिन वक्त बीतने के साथ कुछ ही साथ रह जाते हैं। जोगी ने बताया कि पहले दिन से वह अनुदान और लाभ पाने वाले बच्चों की मदद से सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, नियमित रूप से फंडिंग न मिल पाने की वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
जोगी अभी भी रुके नहीं हैं। 2 महीने पहले उन्होंने देहदरादून के बाहरी इलाके में स्थित सुधोवाला नाम के एक छोटे शहर से ईटेकड्रीम्स की शुरूआत की। इसका उद्देश्य है पूरे विश्व में किफायती तकनीकी सेवाएं मुहैया कराना। उनकी टीम में चार लोग हैं और वे ग्रामीण इलाकों में आईटी से संबंधित रोजगार पैदा करने में जुटे हैं।
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