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तालाबों में बारिश का पानी इकट्ठा कर खुशहाली की नई इबारत लिख रहे मालवा के किसान

तालाबों में बारिश का पानी इकट्ठा कर खुशहाली की नई इबारत लिख रहे मालवा के किसान

Thursday August 16, 2018 , 7 min Read

हर साल आसमान से इतना पानी गिरता है, बेकार चला जाता है। गर्मियों में एक-एक बूंद के लिए हाहाकार। न मवेशियों के लिए, न सिंचाई के लिए कोई रास्ता सूझता है लेकिन मध्य प्रदेश के मालवा इलाके में किसान कृत्रिम (पॉली पोंड) तालाबों में पॉलीथिन बिछाकर बरसात का पानी जमा कर ले रहे हैं, जिससे सालभर ठाट से सिंचाई कर रहे हैं। फसलें उन्हें मालामाल कर रही हैं।

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प्रह्लाद ने अपने खेत में आठ फीट गहरा तालाब खुदवाया है। वह बताते हैं कि जाड़े के दिनों में जब उनके खेत के कुएँ सूखने लगते हैं तो वह उनका पानी मोटर के जरिए अपने तालाब में भर लेते हैं। तालाब की सतह पर पॉलीथिन बिछा रहता है। इसलिए पानी का कम से कम वाष्पीकरण होता है। 

हमारे देश में हर साल इतनी बारिश होती है, फिर भी गर्मियों के दिनों में खास कर सिंचाई के लिए पानी का संकट बना रहता है। इससे खेतीबाड़ी लगातार घाटे का सौदा होती जा रही है। ऐसी हालत में किसानों के सामने एक ही रास्ता बचा है कि वह जरूरत भर बारिश का ज्यादा से ज्यादा पानी किसी भी कीमत पर समय से संग्रहित कर लिया करें। खेती-किसानी में पानी के संकट से जूझते रहे मध्य प्रदेश के अवर्षण से पीड़ित क्षेत्र मालवा के जागरूक किसान अब लाखों की लागत से पॉलिथीन बिछाकर बारिश का पानी साल भर की खेती के लिए संग्रहित करने लगे हैं। इसी तरह बीस बीघे के युवा काश्तकार तिल्लौरखुर्द (इन्दौर) के चिन्तक पाटीदार तो चार्टर्ड एकाउंटेंट की पढ़ाई छोड़कर अपने खेतों में बरसाती जल-संग्रहण के लिए पॉली पोंड बना रहे हैं।

गांव में अब तक ऐसे पाँच तालाब बन चुके हैं। इसी वर्ष जिले में ऐसे लगभग चालीस तालाब गांव वालों ने बनाए हैं, जो इस बरसात के पानी से लबालब हो रहे हैं। छह लाख की लागत से एक बीघे से ज्यादा के क्षेत्रफल में पाटीदार ने अपना तालाब बनाया है। वह बताते हैं कि पोकलैंड मशीन से यह डेढ़ करोड़ लीटर पानी की क्षमता वाला 165 फीट लम्बा, 185 फीट चौड़ा और 20 फीट गहरा तालाब मात्र दो सप्ताह में तैयार हो गया। वह अब तक बरसात के पानी के बाद तीन बोरिंग और एक कुएँ से सोयाबीन, आलू की फसल सींच लेते थे मगर प्याज की खेती सूख जाती थी। अब वह आने वाले सीजन में इस तालाब के पानी से तीसरी फसल की भी आराम से सिंचाई कर सकेंगे। वह मानकर चल रहे हैं कि प्याज की एक ही फसल से इस तालाब की खुदाई की पूरी लागत निकल आएगी।

चिंतक पाटीदार का कहना है कि अपने तालाब के पानी से वह तीन फसलों की भरपूर सिंचाई करने के साथ ही इसमें मछलीपालन भी कर सकते हैं। साइफन विधि इस्तेमाल कर इस पानी से सिंचाई काम और खेती दोनों एक साथ हो सकेंगी। सबसे बड़ी बात है कि इससे किसान ट्यूबवैल आधारित बिजली अथवा पंप के डीजल के खर्च से बच सकता है। एकमुश्त रकम खर्च होने के बावजूद उनके क्षेत्र में अब बरासाती पानी जुटाने के लिए तमाम किसान तेजी से तालाब बना रहे हैं। मालवा क्षेत्र में हर साल गर्मी आते ही भूजल स्तर तेजी से गिरने लगता है। पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। पहले बड़े पैमाने पर किसान बैंकों से कर्ज लेकर ट्यूबवैल से काम चलाते रहे हैं। अब जलस्तर गिर जाने से सफेद हाथी हो चुके हैं।

सत्तर से नब्बे के दशक तक उनके इलाके में हजारों नलकूप लगे। लगभग साठ फीसदी सिंचाई नलकूपों पर निर्भर हो गई थी। आज उनकी संख्या एक हजार तक पहुंचने के बावजूद उनमें लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। बोरिंग के पानी पर निर्भरता ने किसानों को महंगी सिंचाई पद्धति का आदती तो बनाया ही, गर्मियों में जलस्तर गिरने से अपनी सूखती फसल भीगी आंखों से देखने के लिए विवश हो गए।

किसान नेता मोतीलाल पटेल बताते हैं कि पॉली पोंड निर्माण पर कुछ सरकारी सब्सिडी भी मिल जाने से तालाबों में पानी जुटाने की जुगत बड़े काम की साबित हुई है। बोरिंग सिस्टम से एक तो जरूरत भर पानी नहीं मिल रहा था, दूसरे हजारों किसान ट्यूबवैल लगाने की होड़ में कर्ज से लद गए। अब हम इस पर सब्सिडी बढ़ाने की सरकार से मांग कर रहे हैं। कृषि अधिकारी सुरेन्द्र सिंह उदावत भी पॉली पोंड निर्माण विधि को बढ़ावा देने के पक्ष में हैं। गुजरे सालों में पूरा मालवा क्षेत्र जबर्दस्त जल संकट से गुजरा है।

पुराने कुँए-तालाब ही नहीं कालीसिंध नदी भी गर्मियों में सूखने लगी। लाखों की लागत वाले बोरवेल भी जलस्तर से कटने लगे। कर्ज चुकाने में गांवों की महिलाओं के जेवर-गहने बिकने लगे। तमाम किसानों ने कर्ज भरने के लिए खेत बेच दिए। कहावत कही जाने लगी कि खेत से ज्यादा पानी तो किसानों की आंखों में है। खुदाई मशीन और पॉलीथिन पर एकमुश्त ज्यादा खर्च जरूर आ रहा है, फिर भी अब इलाके के ज्यादातर बड़े किसान तेजी से पॉली पोंड निर्माण करवा रहे हैं।

चिंतक पाटीदार का कहना है कि ऐसे हालात में उन्हें सबसे सस्ता रास्ता बारसाती पानी जमा कर लेने का लगा। इसी तरह ही तीस बीघे के काश्तकार चापड़ा (देवास) के प्रह्लाद ने भी अपने खेत पर साठ हजार वर्गफीट में पॉली पोंड बना लिया है। तालाब तैयार होने में जितना पैसा खर्च हुआ, वह डेढ़ साल में ही फसल की बिक्री से निकल आया। इसके बावजूद कमाई हुई सो अलग से। प्रह्लाद ने अपने खेत में आठ फीट गहरा तालाब खुदवाया है। वह बताते हैं कि जाड़े के दिनों में जब उनके खेत के कुएँ सूखने लगते हैं तो वह उनका पानी मोटर के जरिए अपने तालाब में भर लेते हैं। तालाब की सतह पर पॉलीथिन बिछा रहता है। इसलिए पानी का कम से कम वाष्पीकरण होता है। यही वजह है कि अब गर्मी में भी फसल की सिंचाई के लिए उनके सामने पानी का संकट नहीं होता है।

जब लगातार पानी का संकट रहने लगा तो कुछ साल पहले प्रह्लाद ने एक बार सोच लिया था कि खेत बेच देंगे। वह उस दौरान सिंचाई की दिक्कत से दो फसल भी नहीं ले पाते थे। जलस्तर हजार फीट नीचे चला जाता था। उसके बाद उन्होंने दो-तीन साल तक कुल तेरह बोरिंग करवाईं लेकिन उससे भी काम नहीं चला। तब तक वह बीस लाख के कर्जे से लद चुके थे। तभी उनको पता चला कि महाराष्ट्र में किसान पॉलीथिन बिछाकर अपने कृत्रिम तालाबों में कामभर पानी जुटा ले रहे हैं। उसके बाद उन्होंने अपने खेत में तालाब बना लिया। अब वह ठाट से सालभर आलू-प्याज, गेहूँ, तरबूज, कद्दू, एप्पल बेर की खेती कर रहे हैं। वह अपनी फसलों की ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करते हैं जिससे पानी जरूरत भर ही खर्च होता है।

अब उन्हें अपनी खेती से हर साल लाखों की कमाई हो रही है। जिस साल उन्होंने तालाब बनवाया था, उस पर कुल साढ़े नौ लाख लागत आई थी लेकिन साल की फसल की बिक्री से उनकी लगभग बीस लाख रुपए की कमाई हो गई। इस तरह तालाब की लागत भी निकल गई और दस लाख रुपए की बचत भी हो गई। उनकी खुशहाली देखकर आसपास के गाँवों के किसान भी बरसात का पानी जमा करने लगे हैं। उनके क्षेत्र में ऐसे लगभग दो दर्जन अन्य किसानों ने बारिश का पानी जुटा लिया है। उनके भी तालाब लबालब हो चुके हैं, जिससे वह आने वाली गर्मियों तक अपनी फसलों की आराम से सिंचाई कर लेंगे। अकेले पास के करनावद, छतरपुरा, डेरिया साहू, तिस्सी गाँवों में ही ऐसे एक दर्जन से अधिक तालाब भर चुके हैं।

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