स्वतंत्रता दिवस पर विशेष: जब आजादी के आंदोलन में कूद पड़ीं स्वातंत्र्य-योद्धा स्त्रियां
स्वातंत्र्य योद्धा स्त्रियों कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली, मैडम भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्री ललद्दद, भगतसिंह को सुरक्षा देने वाली दुर्गा भाभी, रायगढ़ की रानी अवंतीबाई को याद कर हमारा देश गौरवान्वित होता है।
रायगढ़ की रानी अवंतीबाई ने अंग्रजों के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान कर मंडला के खेटी गांव में मोर्चा जमा लिया। अंग्रेज सेनापति वार्टर के घोड़े के दो टुकड़े कर दिए तो वह रानी के पैरों पर गिरकर प्राणों की भीख मांगने लगा था।
आजादी के आंदोलन में हिंदुस्तान की महिलाओं का अविस्मरणीय योगदान रहा है। परतंत्रता के दिनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आह्वान किया था कि देश आजाद कराने के लिए माताएं, बहनें भी आंदोलन में कूद पड़ें। उसके बाद तमाम वीर स्त्रियों ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम का जयघोष किया। उन स्वातंत्र्य योद्धा महिलाओं में आज कस्तूरबा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सिस्टर निवेदिता, मीरा बेन, कमला नेहरू, मैडम भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, ऐनी बेसेंट, कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्री ललद्दद, भगतसिंह को सुरक्षा देने वाली दुर्गा भाभी, रायगढ़ की रानी अवंतीबाई, कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को याद कर हमारा देश हमेशा गौरवान्वित होता है।
सच तो ये है कि सन् 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन से पहले ही कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्री ललद्दद स्वतंत्रता के गीत गाने लगी थीं। आजादी की लड़ाई में कस्तूरबा गांधी ने न सिर्फ हर कदम पर अपने पति महात्मा गांधी का साथ दिया था, बल्कि वह कई बार गाँधीजी के मना करने के बावजूद जेल गईं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को जेल में कैद कर दिया गया था। बाद में वह भारत के इतिहास में देश की पहली महिला मंत्री, संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष, पहली महिला राजदूत बनीं। हरियाणा के एक रूढ़िवादी बंगाली परिवार में जनमीं अरुणा आसिफ अली को अँग्रेजों की हुकूमत ने बार-बार गिरफ्तार कर जेल भेजा। ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त, 1942 को उन्होंने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय झंडा फहराकर आंदोलन की अगुवाई की।
विदेशी मूल की मारग्रेट नोबल, जिन्हें लोग सिस्टर निवेदिता के नाम से याद करते हैं, स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़ी थीं। थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय होम रूल आंदोलन में अपनी विशिष्ट भागीदारी निभाने वाली ऐनी बेसेंट भी विदेशी मूल की स्त्री स्वातंत्र्य योद्धा थीं। उन्होंने भारत में महिला अधिकारों की भी लड़ाई लड़ी। इसी तरह लंदन के एक सैन्य अधिकारी की बेटी मैडलिन स्लेड, जिन्हे बाद में मीरा बेन कहा जाने लगा था, महात्मा गाँधी से अनुप्राणित होकर हिंदुस्तान आईं और यहीं की होकर रह गईं। पंडित जवाहर लाल नेहरू की धर्मपत्नी कमला नेहरू लौह स्त्री की तरह स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हुकूमत विरोधी धरना-जुलूसों में अँग्रेजों का सामना करती रहीं। जब टीबी से पीड़ित होकर स्विटजरलैंड के अस्पताल में दम तोड़ रही थीं, उस समय नेहरू जी जेल में थे।
एक पारसी परिवार में जन्मी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भीकाजी कामा पर अँग्रेजी शिक्षा के बावजूद अँग्रेजियत का कोई असर नहीं था। जर्मनी में उन्होंने कहा था- ‘हिंदुस्तान आजादी का परचम लहरा रहा है। अँग्रेजों, उसे सलाम करो। यह झंडा हिंदुस्तान के लाखों जवानों के रक्त से सींचा गया है। सज्जनों, मैं आपसे अपील करती हूँ कि उठें और भारत की आजादी के प्रतीक इस झंडे को सलाम करें।’ फिरंगियों ने उनकी हत्या के भी दुष्प्रयास किए थे। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं। सुचेता कृपलानी ने स्वतंत्रता आंदोलन के हर चरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कई बार जेल गईं। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान भी अपने गीतों से देश को जगाती रहीं।
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई खुद को बहादुर मानने वाली देशभक्त महिलाओं की आज भी प्रेरणा हैं। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में उन्होंने अपने पराक्रम से अंग्रेजों को नाको जने जबवा दिए थे। अपनी वीरता के किस्सों को लेकर वह किंवदंती बन गईं। कांग्रेस रेडियो जिसे ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ के नाम से भी जाना जाता है, की शुरुआत करने वाली सावित्रीबाई फूले (ऊषा मेहता) को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा। लखनऊ में जंगे-आज़ादी के दौरान नज़रबंद बागी बेगम हज़रत महल ने वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। इंदिरा गांधी ने भी जब अंग्रेजों के विरुद्ध लोहा लेना चाहा तो उनकी टोली को वानर सेना का नाम दिया गया जो विदेशी कपड़ों की होली जलाने में सहयोग करती थी।
इसी कड़ी में रानी झलकारी बाई और शहीदे आजम भगत सिंह को सुरक्षा देने वाली दुर्गा भाभी का नाम भी लिया जाता है। रायगढ़ की रानी अवंतीबाई ने अंग्रजों के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान कर मंडला के खेटी गांव में मोर्चा जमा लिया। अंग्रेज सेनापति वार्टर के घोड़े के दो टुकड़े कर दिए तो वह रानी के पैरों पर गिरकर प्राणों की भीख मांगने लगा था। हमेशा मिलिट्री यूनीफॉर्म में हाथ में तलवार लिए अजीजन बाई युवतियों की टोली के साथ घोड़ों पर सवार होकर नौजवानों को आजादी की लंड़ाई में शामिल होने का आह्वान करती रहीं। वह घायल सैनिकों का इलाज भी करती थीं। जब कर्नल विलियम ने कानपुर क्रांतिकारियों की सूची बनाई तो उसमें सबसे ऊपर अजीजन का ही नाम था। नाना साहब की पुत्री मैनादेवी के त्याग को भी भला कौन विस्मृत कर सकता है। जब अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी न देने पर उन्हें जिंदा जला दिया गया।
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