Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

दीपिका पादुकोण निभाएंगी एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी पर बनने वाली फिल्म में लीड रोल

एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की पूरी कहानी

दीपिका पादुकोण निभाएंगी एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी पर बनने वाली फिल्म में लीड रोल

Thursday October 11, 2018 , 6 min Read

इन दिनों लक्ष्मी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उन पर फिल्म बनने वाली है और उस फिल्म में लीड रोल निभाने जा रही हैं बॉलिवुड ऐक्ट्रेस दीपिका पादुकोण। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजी फिल्म की निर्देशक मेघना गुलजार लक्ष्मी की जिंदगी पर फिल्म बनाने जा रही हैं।

लक्ष्मी अग्रवाल

लक्ष्मी अग्रवाल


वह 22 अप्रैल 2005 का दिन था, जब लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब फेंका गया था। तेजाब से झुलस जाने के बाद लक्ष्मी को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने तीन महीने गुजारे। 

देश में एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अपने साहस और सकारात्मक सोच की बदौलत उन्होंने देश की तमाम लड़कियों को आगे बढ़ने का हौसला दिया। अब वह एसिड अटैक से पीड़ित लड़कियों के लिए काम करती हैं। इन दिनों उनकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उन पर फिल्म बनने वाली है और उस फिल्म में लीड रोल निभाने जा रही हैं बॉलिवुड ऐक्ट्रेस दीपिका पादुकोण। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजी फिल्म की निर्देशक मेघना गुलजार लक्ष्मी की जिंदगी पर फिल्म बनाने जा रही हैं।

दीपिका पादुकोण ने पुणे मिरर से बात करते हुए कहा, 'जब मैंने लक्ष्मी की कहानी सुनी तो मुझे काफी दुख हुआ। उनकी कहानी केवल हिंसा की कहानी नहीं बल्कि संघर्ष और साहस की भी कहानी है। लक्ष्मी की जिंदगी का मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसी वजह से ही मैंने प्रड्यूसर बनने का फैसला किया था।' हाल फिलहाल की खबरों के मुताबिक लक्ष्मी को अक्षय कुमार जैसे बॉलिवुड स्टार से मदद की भी पेशकश की गई।

लक्ष्मी का जन्म दिल्ली के एक अत्यंत साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वह अपनी तमाम सहेलियों के साथ एक अच्छी भली जिंदगी बिता रही थीं कि 2005 में उनकी जिंदगी में एक भूचा सा आ गया। वह दिल्ली के खान मार्केट इलाके में एक किताब की दुकान पर असिस्टेंट के तौर पर काम करती थीं। वहां पर एक सिरफिरा मनचला उनका पीछा करता था। वह व्यक्ति लक्ष्मी से उम्र में भी दोगुना था। लक्ष्मी ने उस व्यक्ति के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। प्रस्ताव ठुकरा जाने से वो व्यक्ति बौखला गया था और उसने लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब डाल दिया। उस समय लक्ष्मी 15 साल की थी।

वह 22 अप्रैल 2005 का दिन था, जब लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब फेंका गया था। तेजाब से झुलस जाने के बाद लक्ष्मी को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने तीन महीने गुजारे। ये दिन लक्ष्मी के लिए किसी यातना से कम नहीं थे। वे बताती हैं, 'अस्पताल में कोई शीशा नहीं था जहां मैं अपने आप को देख सकूं। रोज सुबह नर्स एक कटोरी में पानी लेकर आती थी, मेरा चेहरा साफ करने के लिए। मैं उस पानी में अपने चेहरे का अक्स देखती थी। मेरा चेहरे पर पट्टियां बंधी होती थी। तेजाब फेंके जाने से पहले मेरी नाक पर एक धब्बा हुआ करता था जिसे मैं सर्जरी से हटवाना चाहती थी। लेकिन इस घटना के बाद जब मैंने अपना चेहरा देखा तो मैं पूरी तरह से टूट गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि जिंदगी में क्या हो गया है।'

इसके बाद लक्ष्मी की कई सर्जरी हुईं, लेकिन जो लक्ष्मी के दिलो दिमाग पर घाव हुआ था उसकी सर्जरी कोई नहीं कर सकता था। हालांकि लक्ष्मी खुद से उठ खड़ी हुईं और उन्होंने अपनी जिंदगी को एसिड अटैक की शिकार उन तमाम लड़कियों के लिए समर्पित करने का फैसला कर लिया जिनको सहारा देने वाला कोई नहीं होता। लक्ष्मी ने छांव फाउंडेशन की स्थापना की। छांव फाउंडेशन ने आगरा के फतेहाबाद रोड पर एक खूबसूरत सा कैफे खोला था,जिसका नाम रखा गया था शीरोज। शीरोज दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है, शी और हीरोज। ये जगह एसिड हमले के शिकार लोगों के लिए यह रोजगार का एक स्रोत है। यहां पर इस तरह के हमले के शिकार लोग इसको चलाते है।

2006 में लक्ष्मी अग्रवाल द्वारा एक याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में आदेश पारित किया। जिसके तहत एसिड की बिक्री का नियमन हुआ, पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के बाद मुआवजे, सरकार से सीमित मुआवजा, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण और नौकरियों का प्रावधान दिया गया। लक्ष्मी को 2014 में अंतर्राष्ट्रीय महिला साहस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2013 में, लक्ष्मी एसिड हमले के आंदोलन से जुड़ गई थी। एक महीने बाद आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला ने 'स्टॉप एसिड अटैक' अभियान शुरू किया, जिसके फलस्वरूप 2014 में छांव फाउंडेशन बवकर खड़ा हुआ। उन्होंने ताबड़तोड़ प्रचार किया और देश में एसिड हिंसा के बारे में चर्चा शुरू की। आज लक्ष्मी फाउंडेशन की डायरेक्टर हैं और उनके पार्टनर आलोक दीक्षित 'स्टॉप एसिड अटैक' कैंपेन के प्रमुख हैं। आज छांव कानूनी सहायता और पुनर्वास के साथ सहायता प्रदान करके 100 पीड़ितों की मदद कर रहा है। एसिड से जलाए गए लोगों को पहले दिल्ली में रखा जाता है जहां उनका उपचार किया जाता है।

शीरोज में काम करने वाली लड़कियां

शीरोज में काम करने वाली लड़कियां


आज से दो साल पहले लक्ष्मी ने उस भयावह मंजर को याद करते हुए लिखा था, 'आज मेरे अटैक को 11 साल हो गए, मुझे दुख है। एक एसिड अटैक की वजह से मेरा पूरा परिवार जला। एसिड अटैक सिर्फ एक लड़की पर ही नहीं, पूरे परिवार पर होता है। जैसे कि अब इस दुनिया में मेरे पापा नहीं रहे, मेरा भाई नहीं रहा, सिर्फ अकेली मेरी मां है। मैंने बहुत कुछ झेला इस एसिड अटैक के बाद, लेकिन मैं यह कभी जाहिर नहीं कर सकती, क्योंकि यह एक बहुत लंबी कहानी है, इस बीच बहुत अच्छा भी हुआ तो बहुत बुरा भी। मुझे जितना लगता है देखकर, मेरी मां के साथ कुछ ज्यादा बुरा हुआ, क्योंकि इन सबके बच वह ज्यादा जलीं।'

लक्ष्मी ने आगे लिखा, 'मेरी मां ने आज ही के दिन मुझे बचाने के लिए दिन-रात एक कर दिया, सब कुछ त्याग दिया। मां, आप और पापा नहीं होते तो आज मैं यहां सबके बीच जिंदा नहीं होती। मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ करना।' लक्ष्मी ने एक कविता में अपनी जिंदगी की सच्चाई को कुछ इस तरह बयां किया,

आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं,

मेरे सपनों पर डाला था।

आपके दिल में प्यार नहीं,

तेजाब हुआ करता था।

आप मुझे प्यार की नजर से नहीं,

तेजाब की नजर से देखते थे।

मुझे दुख है इस बात का

कि आपका नाम

मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है।

वक्त इस दर्द को कभी मरहम नहीं लगा पाएगा,

हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा।

जब आपको यह पता चलेगा

कि जिस चेहरे को आपने तेजाब से जलाया,

अब मुझे उस चेहरे से प्यार है।

जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,

वह वक्त आपको कितना सताएगा।

जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,

कि आज भी मैं जिंदा हूं,

अपने सपनों को साकार कर रही हूं... 

यह भी पढ़ें: भारतीय स्टूडेंट ईशा बहल एक दिन के लिए बनीं ब्रिटिश हाई कमिश्नर