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कविता का सम्मान अब भी शेष है इस देश में

कविता का सम्मान अब भी शेष है इस देश में

Tuesday November 13, 2018 , 6 min Read

अपने कविता संग्रह 'रिलेशनशिप' के लिए सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कटक (ओडिशा) के नब्बे वर्षीय कवि जयंत महापात्र को इस बार 'पोएट लौरेट अवार्ड' के लिए चुना गया है। कविता का सम्मान अभी शेष है इस देश में।

जयंत महापात्र

जयंत महापात्र


"मेरी कविताएं ओडिशा के इतिहास, परंपरा और प्रथाओं से बेहद प्रभावित हैं। जैसे, मेरी हंगर कविता में 1866 के उस भयंकर अकाल का जिक्र आया है, जिसमें भूख से छटपटाती मेरी दादी मरते-मरते बची थी। तब हजारों लोगों ने आम की गुठली खाकर जान बचाई थी।" 

मुंबई का बहुप्रतीक्षित 'टाटा लिटरेचर लाइव' 15 नवंबर से 18 नवंबर तक नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (नरीमन प्वाइंट), पृथ्वी थिएटर (जुहू) और टाइटल वेव्स एंड सेंट पॉल्स इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन एजुकेशन (बांद्रा) में आयोजित हो रहा है। इस उत्सव में दुनिया भर के प्रशंसित लेखकों, बुद्धिजीवियों और अन्वेषकों को सुनने का अवसर मिलता है। इस साहित्य उत्सव में हर वर्ष किसी एक प्रतिष्ठित कवि-साहित्यकार और एक पत्रकार को सम्मानित किया जाता है। अपने कविता संग्रह 'रिलेशनशिप' के लिए सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कटक (ओडिशा) के कवि जयंत महापात्र को इस बार 'पोएट लौरेट अवार्ड' के लिए नामित किया गया है। नब्बे वर्षीय महापात्र को यह पुरस्कार इसी सप्ताह टाटा लिटरेचर लाइव में दिया जाएगा। साहित्य में इस पुरस्कार से अब तक वीएस नायपॉल, गिरीश कर्नाड, अमिताभ घोष, महाश्वेता देवी, गुलजार, विक्रम सेठ, केकी दारूवाला आदि सम्मानित हो चुके हैं।

अंग्रेजी साहित्य में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले कवि-लेखक जयंत महापात्र अपनी ओजस्वी कृतियों एवं बेबाक विचारों के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। उनको सन् 2009 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। कुछ वक्त पहले जब देश में असहिष्णुता को लेकर साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार वापस करने का सिलसिला चला तो उन्होंने कवि-साहित्यकारों के सुर में सुर मिलाते हुए पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया था। उस समय उन्होंने कहा था कि देश में साहित्यकारों, लेखकों के लिए जिस तरह की असहिष्णुता दिखाई जा रही है, वह उन्हें व्यथित करती है और प्रतिवाद स्वरूप वे अपना पुरस्कार वापस कर रहे हैं।

राष्ट्रपति को लिखे पत्र में जयंत महापात्र ने साफ किया था कि राष्ट्र के प्रति उनका गहरा सम्मान है और पुरस्कार वापस करने का निर्णय राष्ट्र के प्रति अपमान नहीं है। असहिष्णुता के वातावरण को लेकर देश भर में जारी पुरस्कार वापसी अभियान को ओडिशा में पुरजोर विरोध किया गया था लेकिन जयंत महापात्र ने अपना पद्मश्री असहिष्णुता के वातावरण के लेकर वापस करने का एलान कर सभी चकित कर दिया। इससे पहले 1981 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। जयंत महापात्र की एक प्रसिद्ध कविता है 'माटी', प्रस्तुत है-

''नहीं समझ पा रहा हूँ

क्यों इस मिट्टी के लिए मैं अंधा

इस लाल मैली मिट्टी के लिए

जिस मिट्टी के लिए

कभी- कभी कहता है कवि

कुछ भी मत निकालो

पानी, सार या हृदय का हल्कापन

जिस मिट्टी के लिए कहते हैं नेता

दोहन कर दो सभी लोहे के पत्थर

बाक्साइट और युगों- युगों से

भीतर सोया हुआ ईश्वर ।

और जिस मिट्टी से

कोई नहीं उठाएगा

पुलिस गोली में मरे हुए लोगों के

फटी आँखों वाले शून्य चेहरे

मंत्री के विवेक की अंतिम धकधक

और जिस मिट्टी में स्वयं नहीं

आने वाले समय की भूख

तब भी यह मिट्टी मेरी

कभी भी नहीं की मजदूरी

ढोयी नहीं मिट्टी इधर से उधर

किंतु मिट्टी की

अनजान-नीरवता से

पाया हूँ थोडा-सा सत्य

घर तो मेरा बहुत दूर

दिखाई देता नहीं है मुझे अपनी आँखों से

नहीं है उसकी छत, नहीं कोई दीवार

नहीं कोई झरोखा या कोई द्वार

किंतु वहाँ उस मिट्टी की लाश के ऊपर

मुरझा जाता है मेरे हृदय का फूल

खोकर अपनी एक एक कोमल पंखुडी।''

अपने जीवन और साहित्य-यात्रा के बारे में जयंत महापात्र बताते हैं कि 'मेरा बचपन बहुत सुखद नहीं था। भौतिकी में शोध करने के बाद चालीस की उम्र में मैंने कविताएं लिखनी शुरू कीं। किताबें पढ़ना मुझे हमेशा आनंदित करता रहा है। अच्छी किताबों की मुग्ध करने वाली भाषा की खोज ही अंततः मुझे कविताओं की ओर ले गई। मेरा ज्यादातर लेखन अंग्रेजी में ही है, क्योंकि मेरी पढ़ाई-लिखाई अंग्रेजी में हुई लेकिन बाद में मैं ओडिया में भी लिखने लगा, क्योंकि बहुत सारी चीजें आप मातृभाषा में ही बेहतर ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं। मेरा जीवन कटक में बीता, जहां मेरे पूर्वज रहते थे। मेरे लिए कविताएं लिखना आसान नहीं है लेकिन फिर भी मैं लिखता हूं, क्योंकि मेरे भीतर की ऐसी कुछ चीजें हैं, जो मरने से, खत्म होने से इन्कार करती हैं। वे कविता की शक्ल में बाहर आती हैं।

इसलिए कविता लिखने की प्रक्रिया मेरे लिए तकलीफ से गुजरने जैसी है। मेरी कविताएं ओडिशा के इतिहास, परंपरा और प्रथाओं से बेहद प्रभावित हैं। जैसे, मेरी हंगर कविता में 1866 के उस भयंकर अकाल का जिक्र आया है, जिसमें भूख से छटपटाती मेरी दादी मरते-मरते बची थी। तब हजारों लोगों ने आम की गुठली खाकर जान बचाई थी। ठीक इसी तरह मेरी 'धोली' कविता धोली नदी के उस रक्तरंजित इतिहास के बारे में बताती है, जिसके तट पर सम्राट अशोक के सैनिकों ने करीब एक लाख लोगों की हत्या की थी। मुझे भारत में आधुनिक अंग्रेजी कविता की नींव तैयार करने वाले तीन कवियों में से एक कहा जाता है, तो इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं।'

जयंत महापात्र अपनी ‘जयंत जानता जिसे नहीं’ कविता में लिखते हैं - 'बहुत पहले की बात है / उस दिन माँ ने पूछा / कौन है वो? / किसके साथ बात कर रहे थे? / उत्तर दिया मैंने, कालेज का पुराना एक साथी / बहुत दिनों से मिला नहीं था न ! / ईसाई ?/ नहीं, हिंदू लड़का। / न जाने क्यों मुह बिचका दिया / माँ का वह चेहरा हमेशा मन में रहता है /... न जाने क्यों / उस दिन माँ ने मुँह बिचका लिया था / न जाने क्यों / आज एक मित्र ने मुँह बिचका लिया / मुझसे पूछा / आप क्या ईसाई हैं?/ जयंत जानता नहीं।' पांच अगस्त - 2018 को बंगलुरु में आयोजित हुए 'कविता महोत्सव' में भी जयंत महापात्र की उपस्थिति को रेखांकित करती हुई लवली गोस्वामी लिखती हैं- 'मैंने जयंत महापात्र को देखा, बात की। उनका कविता पाठ सुना। वे मंच की सजावटी हलकी रौशनी में कविता नहीं पढ़ नहीं पा रहे थे। लोगों को मोबाइल की रौशनी देते हुए उनके बगल में खड़े होकर उनकी मदद करनी पड़ी। जब वे मंच से उतरे, हाल में उपस्थित सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हुए। तालियों से सभागार गूंज रहा था। यह इस आधुनिकतम शहर की बात है। वह शहर, जिसे सिर्फ पैसे से जोड़कर देखा जाता है। मुझे एहसास हुआ, कविता का सम्मान अब भी शेष है इस देश में। ऐसा ही अनुभव हर बार तब हुआ है, जब मैंने अपने प्रिय कवियों को घेरती भीड़ देखी है। कविता के प्रेमी प्रेत की तरह दुनिया के अँधेरे में अदृश्य उपस्थित रहते हैं। कवि सिर्फ तब प्रकट होते हैं, जब उनका कवि उनके समक्ष होता है, उन्हें बुलाता है, उनका आह्वान करता है।'

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