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रात को भूखे पेट सोने वालों को भर पेट भोजन देने की कोशिश, 'फीड योर नेबर'

फीड योर नेबर का मकसद है उन लोगों तक भोजन पहुंचाना जो रात को भूखे पेट सोने पर विवश हैं...

कार्यक्रम के पहले ही दिन 4,454 मील्स की हो चुकी थी व्यवस्था...

11 दिनों में ही लगभग 1,22,937 मील्स की व्यवस्था....

महिता फर्नाडिंज ने शुरू किया कार्यक्रम...


हम आए दिन अपने आसपास कई चीज़ों को देखते हैं। उनमें से कुछ चीज़ों की ओर हमारा ध्यान जाता है, हमारा मन भी करता है कि हम इस दिशा में कुछ करें लेकिन किसी न किसी वजह से नहीं कर पाते। लेकिन यह भी सच है कि कई लोग उन छोटी-छोटी खटने वाली चीज़ों को गंभीरता से लेते हैं और दृढ़ इच्छा शक्ति के माध्यम से उस दिशा में काम भी करते हैं। वे लोग काम शुरु करते हैं और फिर धीरे-धीरे कारवां बनता चला जाता है और इस कारवां में वे लोग भी शामिल हो जाते हैं जिन्होंने कभी न कभी इस विषय में काम करने के लिए सोचा होता है। 

ऐसा ही एक छोटा सा अहसास बैंगलूरु की महिता फर्नाडिज को हुआ, जब एक दिन उन्हें बहुत तेज भूख लगी थीं और उन्हें तुरंत कुछ खाने को नहीं मिल पा रहा था। तब महिता ने सोचा कि मेरे पास सब कुछ है। एक अच्छी नौकरी, पैसा घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। लेकिन जब उन लोगों को जब भूख लगती होगी जिनके पास न रहने के लिए घर है न खाने के लिए दो पैसे। जो दो वक्त की रोटी के लिए तरसते रहते हैं। वे अपनी भूख से कैसे लड़ते होंगे? इस प्रश्न ने महिता को इस दिशा में सोचने पर विवश कर दिया। यही सब सोचते हुए उन्होंने तय किया कि वे कुछ ऐसा जरूर करेंगी जिससे गरीब लोगों की भूख मिट सके।

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महिता एक उद्यमी हैं जो पिछले पांच सालों से बैंगलोर में बच्चों के लिए 'चिल्ड्रन एक्टिविटी एरिया' चला रही हैं। उनका एक सात साल का बेटा हैं और वे अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट हैं। इससे पहले महिता बतौर कॉरपोरेट कम्युनिकेशन में भी काम कर चुकी हैं। और भारत की बड़ी-बड़ी कंपनियों जैसे इंफोसेस, केविन केयर और हैंकल इंडिया में काम करने का भी उन्हें अनुभव रहा है।

महिता ने सोचा कि आखिर किस प्रकार वे गरीब लोगों की मदद कर सकती हैं। लगभग एक घंटा सोचने के बाद ही महिता को समझ आ चुका था कि उन्हें क्या करना है। अगले ही दिन उन्होंने फेसबुक के जरिए इस दिशा में काम भी शुरु कर दिया। महिता ने एक कार्यक्रम तैयार किया जिसका नाम रखा 'फीड योर नेबर'।

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महिता चाहती थीं कि उनका यह कार्यक्रम केवल उनका ही न हो बल्कि यह एक सामूहिक प्रयास बने। इसके माध्यम से और भी लोग जो इस दिशा में काम करना चाहते हैं वे भी आगे आएं और इस कार्यक्रम का हिस्सा बनें। ताकि समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों की भूख मिटाई जा सके। इस काम में उन्होंने सोशल मीडिया का बहुत इस्तेमाल किया। जिसका उन्हें बहुत सकारात्मक प्रभाव भी तुरंत ही नज़र आने लगा। वे बताती हैं कि लोग भी गरीबों की मदद करना चाहते हैं। लोग इस प्रयास से जुड़कर बहुत खुशी महसूस कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के दौरान लोगों को अपने घर में बनने वाले भोजन में कुछ अतिरिक्त भोजन बनाना था ताकि वह जरूरत मंद लोगों तक पहुंचाया जा सके। इन छोटे-छोटे प्रयासों से एक बहुत बड़ा काम हो रहा था। इससे लोगों को भी बहुत संतोष हो रहा था कि वे किसी भूखे व्यक्ति की भूख मिटाने के निमित बने।

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महिता को लोगों को इस कार्यक्रम से जोडऩे में मुश्किल नहीं आई। लोग इस कार्यक्रम से खुद-ब-खुद जुडऩे लगे और अपने दोस्तों को इस विषय में बताने लगे।

यूं तो महिता के इस प्रयास को सभी ने खूब पसंद किया। बहुत सारे लोग भी इस कार्यक्रम से जुड़े। खाना भी बहुत था उनके पास लेकिन उस खाने को सही व जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने में जरूर महिता को शुरु- शुरु में दिक्कत आई। कार्यक्रम के पहले ही दिन 4,454 लोगों के भोजन की व्यवस्था हो चुकी थी। रोज इस संख्या में इजाफा होता जा रहा था। शुरुआत के मात्र 11 दिनों में ही लगभग एक लाख बाइस हजार नौ सौ सैंतीस मील्स जरूरत मंदों तक पहुंचा।

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महिता इस कार्यक्रम की सफलता का श्रेय उन सभी कार्यकर्ताओं को देती हैं जिन्होंने इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। कुछ लोगों ने तो खाना खुद बनाकर इन्हें दिया तो कुछ ने लोगों के घर जाकर उस खाने को एकत्र करने का काम किया और उस भोजन को सही व जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया। कुछ लोगों ने इस कार्यक्रम के लिए पैसा भी दान दिया क्योंकि पैसे की जरूरत भी इस कार्यक्रम को चलाने के लिए जरूरी थी। हालांकि 'फीड योर नेबर' ने किसी भी संस्था से मदद के लिए अपील नहीं की, फिर भी कई संस्थाएं इनके बेहतरीन काम को देखकर मदद के लिए आगे आईं। जिससे इनके कार्यक्रम को और बल मिला। कुछ रेस्त्रां, कुछ महिलाओं के ग्रुप्स भी इस काम के लिए स्वत: आगे आए और अपनी-अपनी ओर से कार्यक्रम को सफल बनाने का प्रयास किया।

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हर कार्यक्रम की तरह इस कार्यक्रम को चलाने में भी थोड़ी दिक्कतें आईं लेकिन वे खुद ही सुलझ भी गईं। महिता बताती हैं कि इस काम में कुछ बुजुर्ग लोग भी आगे आए और उन्होंने गरीब इलाकों की पहचान करके उन तक भोजन पहुंचाने का काम किया।

महिता के प्रयासों ने यह साबित कर दिया कि कोई जरूरी नहीं कि आपके पास बहुत पैसा हो तभी आप समाज के लिए कुछ कर सकते हैं। यदि मन में इच्छा हो तो आप इस तरह के कई और भी छोटे-छोटे प्रयासों से समाज की बड़ी-बड़ी समस्याओं को हल करने में अपना योगदान दे सकते हैं।