कपास के किसानों को हक दिलाने की कोशिश, फेयर ट्रेड
फेयर ट्रेड के जरिए मिल रहा है किसानों को सही दाम।भारत में कई कंपनियों ने अपनाए फेयर ट्रेड के मानक।किसानों की चाह उनका माल बिके फेयर ट्रेड के नियम व शर्तों के अनुसार।
भारत का फैशन उद्योग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। भारत के फैशन ब्रॉड्स की विश्वभर में काफी मांग है। तेजी से इस इंडस्ट्री का विस्तार होने की वजह से फैशन में नए-नए प्रयोगों का सिलसिला जारी है। कपड़ों को और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए नई तकनीकों पर तेजी से काम हो रहा है। जहां हमें सब कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है वहीं इस उद्योग का एक डार्क साइड भी है। और वह है इस उद्योग से जुड़े पहले व्यक्ति यानी कपास उगाने वाले किसान को उनकी मेहनत का दाम नहीं मिल रहा है। वह बहुत ही दयनीय स्थिति में अपना जीवन जी रहा है।
भारत में फेयर ट्रेड के संस्थापक अभिषेक जैन ने इस समस्या को समझा और तय किया कि वे इस दिशा में काम करेंगे। दअरसल किसान वो पहला शक्स होता है जो कपड़ा निर्माण से जुड़ा होता है। या यूं कहें कि वह पहली कड़ी होता है लेकिन उसको ही सबसे ज्यादा नजरअंदाज किया जाता है।
फेयरट्रेड का काम -
फेयरट्रेड का उद्देश्य फैशन को बदलना नहीं है अपितु इस बात को सुनिश्चित करना है कि हम जो भी पहनें वो किसी किसान या बुनकर का शोषण करके न बना हो। लेकिन दुख की बात यह है कि इस समय किसानों पर सबसे ज्यादा प्रेशर कॉटन की कीमत को लेकर है। इस साल कॉटन की कीमत में 20 प्रतिशत तक की कमी आई है जो सीधे तौर पर किसान के लिए बुरी खबर है। एक और आंकड़ा जो बहुत दुभार्यपूर्ण है वह यह कि भारत में अभी तक हुए किसानों की आत्महत्या के 70 प्रतिशत मामले उन्हीं जगहों पर हुए जहां कपास की खेती होती है।
किसानों पर भारी दबाव है कि वो कम कीमत पर कपास की खेती करें और इसी कारण किसानों की और टेक्सटाइल वर्कर्स की हालत और खराब होती जा रही है।
इस सबके चलते कपड़ों की प्रोडक्शन कास्ट तो कम हो जाती है लेकिन किसानों की दशा बद से बदतर होती जाती है।
किसानों को उनका हक दिलाने का काम फेयर ट्रेड कर रहा है। इससे ग्लोबल मार्केट के किसानों पर दो प्रभाव पड़ते हैं पहला पॉजिटिव जिसके कारण उनके उत्पाद की बिक्री होती है और पैसा मिलता है लेकिन नेगिटिव प्रभाव यह है कि इसमें रिस्क भी बहुत होता है क्योंकि ग्लोबल मार्केट में कीमतों में बहुत उतार चढ़ाव देखने को मिलता है जिसके चलते किसानों को काफी बार बहुत सस्ते दामों में भी अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं। पिछले सालों में भारत में 20 प्रतिशत कॉटन की कीमत में कमी की वजह भी ग्लोबल फैक्टर ही है।
किसानों और बुनकरों की मुख्य मांग -
अब किसानों और बुनकरों की मुख्य मांग यह है कि उनका ज्यादा से ज्यादा कॉटन फेयर ट्रेड के नियम व शर्तों के अनुसार ही बेचा जाए। एक सर्वे के अनुसार किसानों को अपनी फसल बेचने से फायदा तब हो रहा है जब वह अपनी फसल का 40 प्रतिशत हिस्सा फेयरट्रेड के नियम व शर्तों के हिसाब से बेच रहे हैं।
भारत में फेयर ट्रेड 10 हजार से ज्यादा किसानों के साथ काम कर रहा है और वो भी भारत के विभिन्न राज्यों में जहां बहुत गरीबी है जैसे - उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि।
फेयर ट्रेड हर कदम पर यह सुनिश्चित करता है कि किसानों के हितों का हनन न हो और उनको उनकी मेहनत का सही दाम मिले।
फेयर ट्रेड ने कुछ मानक बनाए हैं और कंपनी हर किसी को साथ रखकर काम करती है। ये किसानों को प्रीमियम भी देते हैं जिसे किसान विभिन्न चीजों में लगाते हैं। साथ ही वातावरण की रक्षा का भी ज्यादा से ज्यादा प्रयास करते हैं।
आज बहुत सारे नए ब्रांड हैं जो फेयरट्रेड की कैंपेन को आगे बढ़ा रहे हैं और बेहतरीन डिजाइन के साथ-साथ मार्केट में उतर रहे हैं। ऐसे ही कुछ ब्रॉड्स है - समंथा, डू यू स्पीक ग्रीन, नो नास्टीज, डिबिला इंडिया आदि।
इसके अलावा फेयरट्रेड ने भारत के कई अग्रणी ब्रॉड से भी बातचीत की है लेकिन यह अभी बहुत शुरूआती दौर है।
जब भी किसी प्रोडक्ट में फेयरट्रेड मार्क होता है यानी वो प्रोडक्ट फेयरट्रेड के सारे मानकों को पास कर चुका है।
फेयरट्रेड की चुनौतियां -
फेयरट्रेड इंडिया एक नया प्रयोग है ये नवंबर 2013 में शुरू हुआ। मात्र इतनी कम अवधि में ही कई कंपनियों इससे जुड़ गई हैं लेकिन अभी भी काफी काम बाकी है। एक सबसे बड़ी समस्या है जागरुकता उत्पन्न करने की। यूरोपियन देशों में इसकी शुरूआत हुए 20 साल से अधिक समय हो चुका है और वहां पर इस तरह की चीजों के लिए लोगों के अंदर काफी जागरूकता है इसलिए भारत में अभी इस जागरुकता के लिए बहुत मेहनत करने की जरूरत है।
एक सर्वे के अनुसार भारत में मात्र 7 प्रतिशत शहरी आबादी ही फेयरट्रेड के बारे में जानती है। यह आंकड़ा इस बात को बताने के लिए काफी है कि अभी इस दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है।