मल्टीनेशनल कंपनी का जॉब छोड़ खेती से हुए मालामाल
कहावत है कि 'अपना हाथ, जगन्नाथ'। देश के कामयाब युवा इसे बखूबी चरितार्थ कर रहे हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों की नौकरियां ठुकराकर खेती में किस्मत आजमाने चल पड़े तो साल में लाखों नहीं, करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी है।
कटिहार (बिहार) के गांव बरेटा की मधुलिका चौधरी लंदन यूनिविर्सटी में प्रोफेसर थीं। नौकरी छोड़कर पति के साथ अपने गाँव की साढ़े पांच एकड़ जमीन पर रेशम के पौधों की खेती कर रही हैं।
आजकल जहां देश के अधिकांश युवा गांव और कस्बों को छोड़कर हाई-फाई मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने के लिए शहरों, विदेशों की ओर भाग रहे हैं और खेती बाड़ी को बेकार मान रहे हैं, वही मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर की नौकरी छोड़कर चंबा (उत्तराखंड) की मोनिका पंवार मशरूम की खेती करने के साथ ही अपने प्लांट में पांच स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार मुहैया करा रही हैं। मैनपुरी (यूपी) के सुल्तानगंज ब्लॉक के गांव पद्मपुर छिबकरिया के रहने वाले रवि पाल नोएडा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। वह आज अपने बीस बीघे खेत में गेंदे की खेती कर रहे हैं। पुणे (महाराष्ट्र) के सागर सुभाष साठे आईबीएम कंपनी में टेक्निकल मैनेजर हैं। हर महीने एक लाख रुपए सैलरी मिलती है। इसके बावजूद वह वीकेंड पर अपने गांव जाकर खेती करते हैं। कई बार देखा जाता है कि युवाओं के पास खास आइडिया तो होते हैं, लेकिन अपनी नौकरी की वजह से उसको अंजाम तक नहीं पहुंचा पाते हैं। अपने जीवन में आधुनिक प्रयोगों से हिचकते हैं लेकिन जब प्रैक्टिकल हो जाते हैं, आइडिया को अंजाम तक पहुंचा देते हैं तो यूनिक बन जाते हैं। ऐसे ही सिवान (बिहार) के दो युवा हैं धीरेंद्र और आदित्य। दोनो आपस में गहरे दोस्त हैं। अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर खेती में जुट गए हैं और लाखों की कमाई कर रहे हैं।
लगभग दो वर्ष पहले मैनेज्मेंट और लॉ की पढ़ाई करने वाले धीरेंद्र और आदित्य बिजनेस पार्टनर बने। दोनो पहले एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। माइक्रोबायलॉजी से पढ़ाई करने वाले आदित्य तो एनआरआई हैं। धीरेंद्र ने नौकरी छोड़ बिजनेस करने के बारे में सोचते-सोचते खेती करने का मन बना लिया। उनके साथ आदित्य की भी सहमति बन गई तो दोनों ने बिहार सरकार के एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी से खुद को रजिस्टर्ड करा लिया। अपने आइडिया पर जब उन्होंने काम करना शुरू किया तो उनको सीवान के ही एग्री एक्सपर्ट और मशरूम उत्पादन-प्रशिक्षण समिति के प्रेसिडेंट एवं रिटायर्ड इंजीनियर बीएस वर्मा का साथ मिल गया। तीनों ने मिलकर लगभग एक एकड़ में पॉलीहाउस में सबसे पहले टमाटर और शिमला मिर्च की फसल लगाई। पहली फसल में ही उनको लाखों का मुनाफा हुआ। उनके साथ कई और लोगों को रोजगार मिल गया है। दोनो दोस्तों को इस समय एटीएमए के के.के. चौधरी और हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के पीके मिश्रा, आरपी प्रसाद आदि का भी सहयोग मिल रहा है। अब दोनो दोस्त मशरूम की खेती कर रहे हैं। पॉलीहाउस में वह तीन रैक बनाकर मशरूम उगा रहे हैं। इस सीजन में उन्हें मशरूम की खेती से 10 लाख रुपए तक की कमाई की उम्मीद है।
बस्तर (छत्तीसगढ़) के युवा अजय मेहरा ने अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर जब अपने 30 एकड़ खेत में गोभी की खेती करने लगे, पहली ही बार उनको 16 लाख रुपए की कमाई हुई है। एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करने वाले झालावाड़ (राजस्थान) के गाँव गुआरी खेड़ा के कमल पाटीदार पॉली हाऊस में सब्जियों की खेती और पौध बेचने का कारोबार करने लगे हैं। वह इससे सालाना करीब दो करोड़ रुपये कमा रहे हैं। गुड़गांव (हरियाणा) के गाँव जमालपुर के विनोद कुमार इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती की खेती से हर साल पांच लाख रुपए कमा रहे हैं।
नागा कटारू (आंध्रप्रदेश) के गांव गंपालागुडम निवासी इंजीनियर कृष्णा गूगल की नौकरी छोड़कर अमेरिका के बड़े किसानों में गिने जा रहे हैं। 320 एकड़ के कृषि फार्म में सालाना उनकी बादाम और खुबानी की खेती का टर्नओवर 18 करोड़ तक पहुंच चुका है। कटिहार (बिहार) के गांव बरेटा की मधुलिका चौधरी लंदन यूनिविर्सटी में प्रोफेसर थीं। नौकरी छोड़कर पति के साथ अपने गाँव की साढ़े पांच एकड़ जमीन पर रेशम के पौधों की खेती कर रही हैं। इससे उनको लाखों की कमाई हो रही है। इसी तरह बेगूसराय (बिहार) में राहुल भदुला और आलोक राय मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं।
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