एडवेंचर... अब राह हुई आसान
उनके लिए जिन्हें हैं एडवेंचर का क्रेज़
क्या आप एडवेंचर के शौकीन हैं? क्या आपको एंडवेचर स्पोर्ट्स का चस्का है?
...तो ये मैगजीन खास आपके लिए है, जिसका नाम है ‘द आउटडोर जर्नल’। ये एक ग्लोबल लाइफस्टाइल मैगजीन है, जिसका मकसद एक ऐसा माहौल बनाना है जो एडवेंचर स्पोर्ट्स प्रेमियों को एक साथ लाए और उन्हें प्रेरित करे।
प्रेरणादायी लेखों और प्रशिक्षण संबंधी कहानियों से लेकर कार्यक्रम व वर्कशॉप आयोजित कराने और निर्देश पुस्तिका मुहैया कराने तक, इस मैगजीन में एडवेंचर स्पोर्ट्स प्रेमियों के लिए सब कुछ है।
‘द आउटडोर जर्नल’ मल्टीमीडिया एडवेंचर जर्नलिस्ट अपूर्व प्रसाद के दिमाग की उपज है। वो भारत में एडवेंचर स्पोर्ट्स से जुड़ी सटीक जानकारी मुहैया कराने के लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार करना चाहते थे। उनका कहना है, ‘आज कई तरह की साइट और ब्लॉग हैं, लेकिन जब तक कि उनके पीछे किसी ब्रांड का नाम न जुड़ा हो, तब तक लोगों को साथ जोड़ना और उन्हें सही तरीका बताना काफी मुश्किल होता है।’
भारत और विदेश के एडवेंचर स्पोर्ट्स कल्चर में अंतर होने की वजह से प्रसाद ने तय किया कि वो एक एडवेंचर स्पोर्ट्स के केंद्र के तौर पर भारत का प्रचार न सिर्फ देश में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी करेंगे। यह मैगजीन प्रिंट और ऑनलाइन दोनों ही माध्यमों पर उपलब्ध है और दोनों में एडवेंचर स्पोर्ट्स के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जाता है।
बकौल प्रसाद, ‘यह मैगजीन मौलिक रूप से एक आकांक्षापूर्ण लाइफस्टाइल प्रोडक्ट है और वेबसाइट पर खबरों को एक साथ जमा किया जाता है, क्योंकि प्रिंट में खबरें पुरानी हो जाती हैं। हमने दिखाया है कि इस तरह की गतिविधियां पूरे भारत में हैं, जबकि कई बार ये सुरक्षित नहीं होती हैं। इससे हमें सुरक्षा के मानक बनाए रखने में मदद मिलती है।’
हालांकि, एडवेंचर पत्रकार से एक उद्यमी के रूप में प्रसाद का ये सफर काफी मुश्किल भरा रहा है। 2002 में उन्होंने अपने सलाहकार के साथ मिलकर ‘क्लाइंबिंग इंडिया’ नाम से एक वेब फोरम की शुरूआत की थी, लेकिन दुर्भाग्यवश ये कामयाब नहीं हुआ। उनका कहना है कि इस साइट पर सिर्फ 70 से 100 लोग ही नियमित रूप से आया करते थे। यही वजह रही कि हमने तय किया कि इस संख्या बल पर हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
दिलचस्प बात ये रही कि इससे उन्हें ये समझने में आसानी हुई कि भारत में एडवेंचर स्पोर्ट्स को लेकर जागरूकता नहीं है और इस क्षेत्र में इंटरनेट की पहुंच भी ज्यादा नहीं है। ऐसे में उन्हें समझ में आ गया कि इस वक्त अपने आइडिया को लागू करने का सही वक्त नहीं है। इसी बीच, ‘आउटलुक ट्रेवलर’, ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’, ‘द संडे गार्जियन’, ‘द ऑस्ट्रेलियन’, ‘इंडियन माउंटेनीयर’, ‘ले’क्विप’ जैसे दूसरे अखबारों और मैगजीन में काम से हासिल वर्षों के अनुभवों के आधार पर उन्होंने अप्रैल, 2013 में ‘द आउटडोर जर्नल’ का पहला संस्करण प्रकाशित कर दिया।
प्रसाद ने पुरानी यादों को खंगालते हुए बताया, 2004 में मैं ‘आउटलुक ट्रेवलर’ के लिए लिखा करता था। तब मैं जब भी ये सवाल करता था कि हम एडवेंचर स्पोर्ट्स को और ज्यादा तरजीह क्यों नहीं देते या इस विषय पर एक अलग मैगजीन क्यों नहीं लाते, तो मुझसे कहा जाता कि इसके पाठक नहीं हैं, एक बाजार के तौर पर ये बहुत छोटा है। इसी तरह तीन साल तक चलता रहा।
ये राह नहीं आसान
इस क्षेत्र में पहली बार आने की सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि यहां अमेरिका या यूरोप के मुकाबले काफी छोटा पाठकवर्ग था। अगर आप अमेरिका में किसी किताब की दुकान पर जाएंगे तो आपको वहां आउटडोर एक्टिविटी पर अलग-अलग बीस से तीस किताबें तक मिल जाएंगीं। वहां इसका बाजार काफी बड़ा है। इस बाधा से निपटने के लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर आउटडोर कार्यक्रम आयोजित कर उसमें लोगों को बुलाना शुरू किया।
एडवेंचर्स प्रेमियों को ‘टीओजे’ जहां मौके मुहैया करा रही है, वहीं ये विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड तक भी पहुंच बना रही है। चूंकि भारत में बहुत कम एडवेंचर स्पोर्ट्स ब्रांड हैं, और जो हैं भी उनमें से ज्यादातर वितरण एजेंट या फिर फ्रैंचाइजी के तौर पर हैं, तो ऐसे में टीओजे के लिए उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। लेकिन प्रसाद का मानना है कि अब इसमें बदलाव आ रहे हैं। कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स अब अपने उत्पाद और गीयर समीक्षा के लिए उन्हें भेजने लगे हैं। अगर भारत के लोग इन उत्पादों को भारत में खरीद नहीं सकते तो वो इन्हें ऑनलाइन ऑर्डर कर मंगा सकते हैं।
भविष्य की योजनाएं
अपने इस साहसी सफर के दौरान उन्होंने ‘रन द रण’ सरीखे कई कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बनाई। ‘रन द रण’ अल्ट्रा-मैराथन रन्न ऑफ कच्छ के रेगिस्तान में आयोजित हुआ था। इसके साथ ही वो एक एप्प के रूप में गाइड बुक लॉन्च कर रहे हैं जो जीपीएस की सुविधा से लैस होगा। सितंबर में वो ट्रेकिंग गाइड बुक लॉन्च करने वाले हैं और इस साल के आखिर तक पर्वतारोहण पर किताब प्रकाशित करने की भी योजना है। उनका मानना है कि इस तरह के उपायों से बाहर के लोगों को एडवेंचर स्पोर्ट्स को समझने में आसानी होगी।
जो लोग इस तरह की लाइफस्टाइल में दिलचस्पी रखते हैं, टीओजे ने उनके लिए नई दिल्ली में कई क्लिनिक्स और शिक्षाप्रद वर्कशॉप आयोजित कर रही है। इन वर्कशॉप के माध्यम से टीओजे इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वालों को इस तरह तैयार करे जिससे कि वो इन गतिविधियों को खुद से करें, उन्हें किसी ऑपरेटर या इवेंट मैनेजर पर निर्भर रहने की जरूरत न पड़े।
प्रसाद भविष्य की इन्हीं योजनाओं के साथ आगे बढ़े। उनके मुताबिक भविष्य की योजनाओं में टीओजे फिल्म कलेक्टिव शामिल है, जहां ज्यादा से ज्यादा एडवेंचर वीडियो बनाए जाएंगे। टीओजे एथलीट्स के जरिए भारत के उन आउटडोर और एडवेंचर स्पोर्ट्स खिलाड़ियों की मदद की जाएगी जो अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में शामिल होते हैं और जीत कर भी आते हैं, लेकिन उन्हें भारत में न तो ज्यादा मीडिया में तरजीह मिलती है और न ही प्रायोजक मिलते हैं।
प्रसाद सवाल पूछते हैं, क्या आप जानते हैं कि एडवेंचर स्पोर्ट्स से जुड़े खिलाड़ियों को स्वास्थ्य बीमा कवर नहीं मिलता है? प्रसाद का कहना है कि वो माहौल में इस तरह के बदलाव लाना चाहते हैं। एक बार अगर इस तरह की सोच रखने वालों की संख्या 50,000 हो जाए तो वे आगे बढ़कर स्वास्थ्य बीमा कवर की मांग कर सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि अमेरिका और यूरोप में मिलता है।