कम आय वाली शहरी महिलाओं पर अद्भुत छाप छोड़ता ‘AfterTaste’
गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशशिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाता ‘AfterTaste’महिलाओं में हिम्मत, हौसला और जज्बा भरने की कोशिश
अपने लिए तो हर कोई सपने देखता है लेकिन कुछ ही लोग होते हैं जो दूसरों के लिए सपने देखते हैं। शालिनी दत्ता का ‘AfterTaste’ कम आय वाली शहरी महिलाओं को आजीविका के मौके देता है। अपने सपनों को साकार करने के लिए ऐसी महिलाओं को कला और शिल्प से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। शालिनी का कहना है कि वो भी उन महिलाओं में से एक जो पढ़ी लिखी होने के बावजूद निश्चित जीवन शैली में अपना जीवन गुजार देती हैं। तो वहीं दूसरी ओर ऐसे अनगिनत बच्चे हैं जो विभिन्न चौराहों पर भिख मांगते दिख जाएंगे या फिर चाय की दुकानों या ढाबों में काम करते हुए मिल जाएंगे। इनमें से कई बच्चे ऐसे होते हैं जिन्होने मजबूरी में अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ा होता है ताकि वो की आजीविका के सहारे जिंदा रह सकें। इन बच्चों को कभी आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला और ये हमारे समाज में अन्याय का स्पष्ट उदाहरण है।
शालिनी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सॉफ्टवेयर कंपनी में अपने करियर की शुरूआत की। छह साल नौकरी करने के बाद उन्होने अपने आप से एक प्रश्न किया कि क्या उनको करियर संवारने के लिए दूसरा रास्ता अपनाना चाहिए। इस सोच के साथ उन्होने विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वो दो साल तक स्वेच्छा से ऐसे बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगी जो पढ़ाई के इच्छुक हों। उनके इस काम का व्यापक असर दिखने भी लगा। धीरे धीरे उनको अपनी अच्छी खासी नौकरी इस काम में बाधा दिखने लगी तो उन्होने फैसला लिया कि नौकरी को छोड़ देंगी और उन्होने ऐसा ही किया।
शालिनी जमीनी स्तर पर काम करना चाहती थी और जल्द ही उन्होने कम आय वाले परिवार के 80 बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। उन्होने ये काम मुंबई के मलाड पश्चिम में मालवानी नाम की एक छोटी से जगह पर शुरू किया। इस उम्मीद के साथ कि वो समाज में बदलाव ला सकती है और उनका ये विश्वास दिन ब दिन तब बढ़ने लगा जब उन्होने देखा कि अक्सर स्कूल से अनुपस्थित रहने वाले बच्चे एक बार फिर नियमित रूप से यहां आना शुरू हो गए हैं। शालिनी को धीरे धीरे लगने लगा था कि वो सही रास्ते पर हैं और उनको गहरी संतुष्टी होने लगी। शालिनी का जन्म त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में हुआ था। शुरूआत के कुछ साल वहां गुजारने के बाद उनका परिवार झारखंड के एक छोटे से शहर धनबाद में आ गया। छोटा शहर होने के नाते वो प्रकृति से जुड़ी रहीं साथ ही वो छोटी छोटी चीजों में ही अपनी खुशियां ढूंढने लगीं।
शालिनी का कहना है कि उनका जन्म ऐसे घर में हुआ था जहां पर दूसरों की खुशियां ही मायने रखती हैं। शाम का वक्त उनके लिए घुमने का होता था जब वो पेड़ और पौधों की पहचान कर उनके नाम खोजती थी। जहां वो रहती थी वहां पर अक्सर बिजली नहीं रहती थी इसलिए वो अपना वक्त पार्क में बैठकर गुजारती थी। रात के वक्त वो अपने पिता के साथ घंटों तारों की निहार कर तारामंडल के बारे में बातें करतीं। शालिनी के पिता सरकारी अस्पताल में हड्डी रोग विभाग के मुखिया थे। इसलिए लोग अस्पताल के अलावा उनके घर भी अपना इलाज करवाने के लिए आ जाया करते थे। उन्होने कभी भी मरीजों के लिए अपने दिल और घर के दरवाजे बंद नहीं किये। जो भी उनके घर आया उसे इलाज जरूर मिलता था। इतना ही नहीं कई मरीज दूर दराज से आते थे और उनके पास बाहर रहने को पैसे नहीं होते थे तब उनकी मां उनको अपने घर में ही रहने के लिए जगह दे देती थीं।
शालिनी ने बचपन से ही घर में करुणा, सेवा और सहानुभूति का माहौल देखा था। जिसे उन्होने ना सिर्फ महसूस किया बल्कि वो उससे प्रभावित भी हुई। जिसने उनके जीवन में निर्णायक भूमिका भी निभाई। उनकी मां छोटे बच्चों की देखभाल का काम भी करती थी। यही कारण है कि कई बार वो अपनी मां के साथ बच्चों की शिक्षा जैसे मुद्दों पर बातचीत करती। शालिनी की तरह उनके पास आने वाली दूसरी महिलाओं का भी सोचना है कि शिक्षा की वजह से ही जिंदगी में आगे बढ़ने के बेहतर मौके मिल सकते हैं और बच्चों की जिंदगी को संवारा और और निखारा जा सकता है। ये वो महिलाएं हैं जो समाज में छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लगातार लड़ रही हैं और जिन्होने बहुत दर्द सहा है। शालिनी के मुताबिक ये वो महिलाएं जो बहादुर है, उनको उम्मीद है लेकिन बदलाव लाने में असमर्थ हैं। शालिनी ने ‘AfterTaste’ की शुरूआत ऐसी दो महिलाओं के साथ मिलकर की।
शालिनी ने कला की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है और ना ही वो किसी खास चीज की विशेषज्ञ हैं। बावजूद इसके वो बदलाव लाना चाहती हैं। उनका झुकाव कला और शिल्प की तरफ रहा है वो उसी को आधार बनाकर बदलाव लाने की कोशिश में है। दो महिलाओं और दो उत्पादों के कारण ही उनको नए उत्पादों का विचार आया। शालिनी का कहना है कि इंजीनियर होने के नाते उनको कई तरह की दिक्कतों से निपटने में आसानी हुई। उनका मानना है कि वो उत्पाद को डिजाइन करने और उसे बनाने में अपनी पढ़ाई के बदौलत ही सक्षम हुई। इतना ही दो साल तक बच्चों को पढ़ाने के दौरान उनको जो अनुभव हुए उससे उन्होने काफी कुछ सीखा। शालिनी बताती है कि एक महिला जिनका नाम फातिमा है आज 4 बच्चों की मां हैं। फातिमा ने अपने माता-पिता को बचपन में ही खो दिया था जिसके बाद उनकी एक आंटी ने उनको बड़ा किया लेकिन वित्तिय समस्याओं के चलते वो पांचवीं क्लास से ज्यादा की पढ़ाई नहीं कर सकीं। वो अब अपने पति की वित्तिय तौर पर मदद कर रही हैं, जो पति पहले उनके काम में जाने का विरोध करता था।
कमरूनिसां की कहानी भी कुछ ज्यादा जुदा नहीं है। उनका जन्म उत्तर-प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। वो बचपन से ही पढ़ाई करना चाहती थीं इतना ही नहीं वो शिक्षा की ताकत से भली भांति परिचित थीं। बावजूद उनको कभी भी स्कूल जाने का मौका नहीं मिला। शादी के बाद उनको मुंबई आना पड़ा और उनकी जिंदगी अपने समुदाय के भीतर ही सिमट कर रह गई। लेकिन वो बहादुर और सहासिक थी इसलिए उन्होने अपनी वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाने शुरू कर दिये। तीन लड़कियों और एक लड़के की मां का मानना था कि उनकी लड़कियों को भी वैसी ही शिक्षा मिले जैसे की उनके लड़के को मिल रही हैं। इस मसले में उन्होने परिवार के लाख विरोध का सामना किया।बावजूद उन्होने हार नहीं मानी और इस बात को सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी प्राथमिक शिक्षा पूरी करके ही रहेगी।
शालिनी का कहना है कि उनके सामने पहली चुनौती है ऐसी जगह तैयार करना जहां पर महिलाएं एकजुट हो और आपसी समझदारी से मिलकर काम करें। तो दूसरी ओर उनका मानना है कि यही चीज उनके लिए बड़ी ताकत का काम करती है। यहां महिलाएं ना सिर्फ एक दूसरे के साथ अपनी कहानियों को बांटती हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर मदद भी करती हैं। शालिनी बताती हैं कि जो दो महिलाएं उनके साथ सबसे पहले जुड़ीं उनमें आज गजब का विश्वास और तजुर्बा हासिल कर लिया है तभी तो वो विभिन्न प्रदर्शनी में अपनी कला के जरिये तारीफ बटोर रही हैं। इतना ही नहीं वित्तिय आत्मनिर्भरता के कारण ही वो खुश और गर्वांवित महूसस करती हैं। धीरे धीरे और भी महिलाएं उनके कदमों का अनुसरण कर रही हैं।
शालिनी का ‘AfterTaste’ कई तरह के पेपर उत्पाद तैयार करता है। जिसमें हाथों से कमाल की कलाकारी होती है। ‘AfterTaste’ पूरी तरह से आत्मनिर्भर है और अपने यहां हाथ के बने उत्पादों को भीड़ भरे बाजार में बेचता है। शालिनी का कहना है कि ईमानदारी से कहें तो कई बार उनको अपने आप पर शक होता है और हर बार उनका सामना ऐसे विचारों से होता है। तब वो अपने अंदर की शक्ति और साहस को जुटाती हैं और सोचती हैं कि लोगों की जिंदगी में बदलाव उनके काम को सार्थक बनाता है। एक बेटी, फिर पत्नी और अब मां बनने के बाद शालिनी वित्तिय तौर पर आत्मनिर्भर हैं। जो उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वो अपने आप को भाग्यशाली मानती है किं उनको परिवार, दोस्तों और अपने मेंटोर का बिना शर्त समर्थन मिला। उनका कहना है कि इन लोगों ने हमेशा आगे बढ़ने में मदद की क्योंकि इन लोगों को उन पर विश्वास था। शालिनी को अपने पति से काफी मदद मिली जिन्होने उनके काम के मूल्यों को समझा और उसको सम्मान दिया। शालिनी का कहना है कि जब किसी का जुनून उसका पेशा बन जाये तो व्यक्तिगत जिंदगी और पेशेवर जिंदगी में काफी कम अंतर रह जाता है। जहां पर नियंत्रण रखना मुश्किल होता है। इसलिए कई बार इंसान एक ओर झुक जाता है तो कई बार दूसरी ओर। बावजूद शालिनी ने दोनों चीजों पर नियंत्रण रखना सीख लिया है।