Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

दसवीं पास किसान ने सिखाई इजराइल को पानी बचाने की तरकीब

दसवीं पास किसान ने सिखाई इजराइल को पानी बचाने की तरकीब

Thursday March 10, 2016 , 6 min Read

मेहनत और अच्छी सोच से सिर्फ इंसान को ही नहीं बदला जा सकता बल्कि सूखे और बंजर इलाके को हरा भरा किया जा सकता है। तभी तो जो किसान सिर्फ 10वीं पास था वो आज सैकड़ों किसानों के लिए मिसाल बन गया है, जिस गांव में उस किसान ने जन्म लिया वो कभी चोरी और मारपीट के लिये बदनाम था, लेकिन आज वो दूसरे गांव के लिए आदर्श गांव बन गया है। राजस्थान के जयपुर जिले के लापोरिया गांव में रहने वाले लक्ष्मण सिंह की कोशिशों के कारण ही जयपुर और टोंक जिले के कई गांव में सालों से सूखा नहीं पड़ा और आज यहां के सैकड़ों किसान खेती के मामले में आत्मनिर्भर बन रहे हैं। ये लक्ष्मण सिंह की ही मेहनत है कि उनके काम को देखने के लिए देश से ही नहीं विदेश से भी लोग यहां आते हैं।


image


लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि “मैंने बचपन में देखा था कि राजस्थान में किसी साल भयंकर बाढ़ आती है और दूसरे ही साल सूखा पड़ जाता है। दोनों ही हालात में किसान की फसल बर्बाद हो जाती है। इस वजह से मेरे गांव के किसान दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करते थे। साथ ही सूखे की वजह से मेरे गांव में अपराध भी बहुत बढ़ गये थे। एक बार मैं किसी काम से पास के गांव में गया था तो वहां के लोगों ने मुझसे कहा कि तुम उस गांव के हो जहां के लोग चोरी करते हैं और मारपीट करते हैं। ये सुनकर मुझे बुरा लगा और तभी मैंने फैसला लिया कि मैं अपने गांव पर लगे इस दाग को हटाऊंगा।” इस घटना के बाद लक्ष्मण सिंह इस समस्या का हल खोजने में लग गये और पढ़ाई छोड़ कर वे वापस गांव लौट आये। लक्ष्मण सिंह ने सबसे पहले पानी और मिट्टी के लिए काम करना शुरू किया और कोशिश करने लगे कि गांव में ही स्कूल खुले ताकि बच्चों को पढ़ने के लिए दूर न जाना पड़े।


image


लक्ष्मण सिंह बताते है कि साल 1977 में शुरू हुई उनकी ये मुहिम धीरे धीरे दूसरे गांवों तक भी पहुंचनी शुरू हुई और साल 1985 तक ये 58 गांवों तक फैल गयी। ये सभी 58 गांव राजस्थान के जयपुर और टोंक जिले के हैं। साल 1986 में उन्होने अपने संगठन ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल, लापोरिया’ की नींव रखी। उस समय उनकी उम्र 25 साल की थी।


image


लक्ष्मण सिंह ने सबसे पहले अपने गांव में ‘चौका सिस्टम’ को पुनर्जीवित किया। चौका सिस्टम में बारिश के पानी को कई तरीके से रोक कर उसे धीरे-धीरे जमीन के अन्दर पहुंचाया जाता है। इसके लिए उन्होने 10-20 किसानों के साथ उनके खेतों पर तालाब बनायें, सड़कों के किनारे गड्ढे खोदकर पानी को रोका और कई जगहों पर बड़े तालाब, और दूसरे तरीकों से इस प्रकार पानी को रोका ताकि किसान उस रूके हुए पानी से अपने खेतों में लघु सिंचाई कर सकें। इसका नतीजा ये हुआ कि जिन जगहों पर पानी बहुत नीचे चला गया था। वहां पर पानी के स्तर ऊपर आ गया था। ऐसे में किसानों और मवेशियों के लिए साल भर पानी मिलना शुरू हो गया।


image


लक्ष्मण सिंह ने इसके लिए गांव के लोगों को इकट्ठा कर उनमें काम का बंटवारा किया। उन्होने पेपर में योजना बनाकर हर किसान को काम की जिम्मेदारी सौंपी। इसमें उन्होंने बाढ़ के पानी को रोकने के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी काम किया। इसके उन्होंने गोचरों में, सड़कों के किनारे, घरों में और ग्राम चोंकों में नीम, शीशम, आम और वट, पीपल, बबूल आदि के पेड़ लगाये। इससे गांव में हरियाली आई और खेतों में सिंचाई के कारण फसल भी अच्छी होने लगी। प्रकृति को बचाने की मुहिम में उन्होंने लोगों से कहा कि वे किसी भी जानवर को ना मारें यहां तक की चूहों को भी नहीं। उनका कहना था कि प्रकृति ने खुद ही सन्तुलन बनाया हुआ है। इसके लिए गांव के बाहर एक जगह बनाई गई, जहां पेड़-पौधे और घास लगाई गई जिससे यहां पर दूसरे जीव भी रहने लगे। लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि राजस्थान में भले ही सूखा पड़े लेकिन इन गांवों का पानी नहीं सूखता है। आज भी यहां हरियाली और पशुओं के लिए चारा दोनों ही हर मौसम में मिलते हैं।


image


आज लक्ष्मण सिंह के इस काम से प्रेरणा लेकर दूसरे गांव के लोग भी उनसे इस काम को सीखने के लिए आते हैं और वे खुद भी उन गांवों में इस काम को सीखाने के लिए जाते हैं। वे बताते हैं कि ये काम सिर्फ बैठकों के जरिये नहीं होता है इसमें जब हर तबके के आदमी की भागीदारी होगी तभी ये काम सफल होगा। लक्ष्मण सिंह ने अपने इस काम का विस्तार करने के लिए 40 संगठन बनायें इसमें उन्होंने गांव के हर व्यक्ति को काम की जिम्मेदारी सौपीं। हर साल दिवाली के 11वें दिन वो एक यात्रा का आयोजन करते हैं, ये यात्रा पिछले 28 सालों से लगातार चल रही है। इस यात्रा के जरिये लोगों को प्रकृति, पेड़ पौधों, मिट्टी, कुंए तालाब आदि की जरूरत के बारे में बताया जाता है और इनकी पूजा की जाती है। इस यात्रा के जरिये लोगों को संदेश दिया जाता है कि अगर वो प्रकृति की रक्षा करेंगे तभी प्रकृति भी उनको खुशहाली देगी।


image


आज लक्ष्मण सिंह के काम की चर्चा ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी खूब होती है तभी तो जिस ‘चौका सिस्टम’ को स्थानीय लोग भूल गये थे उसे लक्ष्मण सिंह ने ना सिर्फ पुनर्जीवित किया बल्कि आज इसे सीखने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं। लक्ष्मण सिंह बड़े फक्र से बताते हैं कि “बूंद बूंद बारिश के पानी को धरती के अंदर पहुंचाने का तरीके, यानी ‘चौका सिस्टम’ को मैंने ही इज़राइल को सीखाया है। इसको सीखाने के लिए मैं खुद इज़राइल गया था। इतना ही नहीं ‘चौका सिस्टम’ की सफलता को देखते हुए यूनीसेफ और राजस्थान सरकार ने मिलकर इस पर एक किताब भी लिखी है।“


image


अपने इस काम के लिए होने वाली फंडिग के बारे में लक्ष्मण सिंह का कहना है कि “मैंने शुरूआत में लोगों को श्रमदान के जरिये जोड़ा और इस काम को करने के लिए बाहर से कोई इंजीनियर नहीं बुलवाये यहां के लोगों ने खुद ही योजना बना कर काम किया। बाद में जैसे-जैसे हमारा काम बढ़ता गया वैसे-वैसे राजस्थान सरकार, यूनीसेफ, और कई फंड एंजेसियों के साथ सीआरएस ने हमें उर्वरकों के लिए मदद दी।“ लक्ष्मण सिंह का दावा है कि उन्होने कभी भी सौ प्रतिशत मदद नहीं ली। उन्होने 50 प्रतिशत मदद और 50 प्रतिशत श्रमदान से ही अपने इस संगठन को चलाया है। उनका मानना है कि जब तक कोई भी व्यक्ति इस मिट्टी को अपना नहीं समझेगा तब तक कोई कितनी भी योजनाएं क्यों न बना लें कोई भी अपने गांव, राज्य और देश का विकास नहीं कर सकता।