जलरंगों से कामयाबी की बेजोड़ कहानी लिख रहा है 'रंगों का जादूगर' निरुपम
रंगों ने उसकी ज़िंदगी को कुछ इस तरह रंगा कि सारी दुनिया रंगीन नज़र आने लगी और फिर वो दुनिया को रंगता चला गया। जिसने भी उसके रंग देखे, वो दंग रह गया। चौथी कक्षा से शुरू हुई रंगों की यह यात्रा युवावस्था तक कामयाबी के नये-नये आयाम में दाखिल हुई और रंगों से खेलने वाला ये कलाकार अपनी जादूगरी से न केवल चित्रकारिता, बल्कि मनोरंजन के क्षेत्र को भी रंग रहा है। वह जल रंगों के साथ -साथ मोबाइल फोन की स्मार्ट तरंगों में भी नये सपनों को आकार दे रहा है।
एक बच्चे के दिलो दिमाग़ पर रंगों का कुछ ऐसा जादू छाया कि उसे चित्रकला से मुहब्बत हो गयी। उसे न दिन का ख़याल रहता, न रात का, वो बस चित्रकारी में मस्त रहने लगा। स्कूल में जब टीचर पढ़ा रहे होते, तब भी वो लड़का अपने नन्हे हाथों से अपनी किताब में तस्वीरें बना रहा होता। इन तस्वीरों का किताबी पढ़ाई-लिखाई से कोई सम्बन्ध भी नहीं होता। बच्चे को जो अच्छा लगता, वो उसे अपनी पेंसिल से पन्नों पर तस्वीर के रूप में उतार देता। उस बच्चे की तस्वीरें इतनी शानदार थीं कि उसके माता-पिता ने भी उसने कभी रंगों से फलक पर खेलने से नहीं रोका। एक दिन जब यह बच्चा किताबों की एक दुकान में था तब उसकी नज़र भारत के मशहूर चित्रकार मिलिंद मलिक की एक किताब पर पड़ी। इस किताब को पढ़ने और इसमें मिलिंद मलिक की बनाई तस्वीरों को देखने के बाद उस बच्चे पर एक जुनून सवार हो गया। जुनून था जल रंगों से तस्वीरें बनाने का। जिस उम्र में बच्चे या तो डाक्टर या फिर इंजीनियर बनने की सोचते हैं, उस उम्र में ये बच्चा मिलिंद मलिक की तरह जल रंगों से नायाब तस्वीरें बनाकर रंगों की अपनी नयी दुनिया बसाने के सपने देखने लगा। लड़का जैसे-जैसे बड़ा होता गया, वैसे-वैसे उसकी कला में निखार आता चला गया। छोटी उम्र में ही उसने जल रंगों से ऐसी तस्वीरें बनाई, जिससे दुनिया-भर में कई सारे लोग उसके मुरीद हो गए। जिस कलाकार की तस्वीरें देखकर उस लड़के ने जल रंगों को अपना जीवन माना था, वो कलाकार भी इस लड़के का प्रशंसक बन गया। उस नन्हे कलाकार के नन्हे हाथ अब बड़े हो गए हैं। उसका नाम भी बड़ा हो गया है। कलाकार युवा है, लेकिन परिपक्व हो गया है। चित्रकार के रूप में तो इस कलाकार ने खूब नाम कम लिया है, वो अब मोबाइल फ़ोन गेम्स की दुनिया में भी अपनी कला और प्रतिभा से जलवे बिखेर रहा है।
यहाँ जिस कलाकार की बात हुई है उनका नाम निरुपम कोंवर है। निरुपम कोंवर भारत के उस युवा प्रतिभाशाली चित्रकार का नाम है, जिनका फलक बहुत बड़ा है। वे अपनी ज़िंदगी के फलक में अमिट रंगों से ऐसी तस्वीर बनाना चाहते हैं, जिससे उनका नाम और ख्याति भी अमिट हो जाए। वे अपने नाम के अनुरूप निरुपम काम कर दुनिया-भर में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। वे कभी न मिटने वाले रंगों से दुनिया-भर में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। निरुपम जलरंगों से ऐसी तस्वीरें बनाना चाहते हैं, जो हिमालय जैसी बुलंद हों। उनकी चाहत कोई छोटी-मोटी चाहत नहीं बल्कि बहुत बड़ी चाहत है। वे वाटर कलर पेंटिंग का भारतीयकरण करना चाहते हैं। जल रंगों की चित्रकारी की भारतीय पद्धति विकसित करना चाहते हैं। निरुपम अल्वारो कास्ताग्नेट जैसा महान और कालजयी चित्रकार बनाना चाहते हैं। ऐसा इस लिए भी है क्योंकि निरुपम ने बचपन से बस रंगों से ही मुहब्बत की है।
निरुपम को बचपन से ही तस्वीरें बनाने का शौक था। चौथी कक्षा से ही उन्होंने तस्वीरें बनाना शुरू कर दी थी। नहरकटिया मॉडल इंग्लिश स्कूल की क्लास रूम में निरुपम का ध्यान पढ़ाई की ओर नहीं होता था, बल्कि वो अपनी नोटबुक्स के आखिरी पन्नों पर तस्वीरें बना रहे होते। उन्हें इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि उनके टीचर क्या पढ़ा-लिखा रहे हैं, बल्कि उनका सारा ध्यान सुन्दर तस्वीरें बनाने पर होता। शुरूआत में निरुपम ने जो मन में आया उसे पन्नों पर उतार दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने प्रकृति के सुन्दर दृश्यों को अपनी पेंसिल से पन्नों पर उतारना शुरू किया। निरुपम अपने शहर गुवाहाटी के प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। यही वजह भी थी कि उन्होंने सबसे पहले गुवाहाटी के छोटे-बड़े पहाड़ों, लहलाहाकर बहती ब्रह्मपुत्र नदी और शहर के आसपास के सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों को पन्नों पर उतारना शुरू किया था। जब माता-पिता ने देखा कि उनका एकलौता लड़का शानदार तस्वीरें बना रहा है तो वे भी दंग रह गए। परिवार में कोई भी चित्रकार नहीं था और निरुपम की उँगलियों में कुछ ऐसा जादू था कि वो प्राकृतिक सौंदर्य को हूबहू पन्नों पर उतार रहा है। माता-पिता को अहसास हो गया कि उनके बेटे में एक कलाकार छिपा है और वो बाहर आने को लालायित है। माता-पिता ने अपने लाड़ले और एकलौते बेटे को कभी भी चित्रकारी से मना नहीं किया, बल्कि हर बार उसका उत्साह बढ़ाया और प्रोत्साहित किया। जैसा कि ज्यादातर माता-पिता करते हैं, वैसे डाक्टर या इंजीनियर बनने के लिए कभी दबाव नहीं डाला। निरुपम को जो काम पसंद था वही करने दिया। चित्रकला से बेइंतेहा मुहब्बत को देखकर माता-पिता ने निरुपम को आर्ट स्कूल में भी भर्ती करवा दिया। हफ्ते में एक दिन होने वाले इस स्कूल की क्लास में निरुपम के चित्रकारी की बारीकियों को सीखना और समझना शुरू किया।
निरुपम ने चौथी कक्षा से ही जितनी भी ड्राइंग और पेंटिंग प्रतियोगिताएँ में हिस्सा लिया सब में फ़र्स्ट प्राइज़ हासिल किया। बचपन से ही निरुपम की कला और प्रतिभा उसी के नाम की तरह निरुपम थी। यही वजह थी कि छठी कक्षा में ही उसे भारत सरकार के सांस्कृतिक स्रोत और प्रशिक्षण केंद्र यानी सीसीआरटी से छह साल के लिए स्कॉलरशिप भी मिल गयी।
स्कूल के दिनों से ही निरुपम को किताबें पढ़ने का शौक भी था। उन्हें स्कूल की किताबों से नहीं, बल्कि अच्छी-अच्छी तस्वीरों, पेंटिंग और ड्राइंग वाली किताबों से प्यार था। इस दिन निरुपम ने एक दुकान में एक किताब क्या देखी, उनकी ज़िंदगी बदल गयी। निरुपम ने उस दुकान से जो किताब खरीदी थी, वो जल रंग चित्रों के मशहूर कलाकार मिलिंद मालिक की थी। इस किताब का प्रभाव निरुपम के दिलो दिमाग़ पर कुछ इस तरह पड़ा कि उन्होंने वाटर कलर पेंटिंग को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। उम्र छोटी थी, लेकिन निरुपम को वाटर कलर पेंटिंग में अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना दिखाई देने लगा। और यही वजह भी थी कि जब आर्ट स्कूल में उनकी टीचर ने उन्हें पैस्टल कलर्स लाने के लिए कहा, तब वो वाटर कलर्स ख़रीद कर ले गए। नन्हे से हाथों में वाटर कलर्स देखकर टीचर्स भी हैरान-परेशान रह गए। एक टीचर ने निरुपम को ये समझाने की भी कोशिश की कि वाटर कलर्स से तस्वीरें बनाना आसान नहीं है और ये बड़ों का काम है, लेकिन निरुपम को अपनी क़ाबिलियत और कला पर इतना भरोसा था कि उन्होंने वाटर कलर से ही पेंटिंग बनाने का इरादा जताया।
इसके बाद निरुपम ने वाटर कलर्स से जो तस्वीरें बनानी शुरू कीं, उन सब तस्वीरों ने सब का दिल जीत लिया। जल रंगों से तस्वीरें बनाने का जो सिलसिला उस छोटी-सी उम्र में शुरू हुआ था, वो आज तक बिना रुके जारी है। चित्र-कला में और भी निखार आये, इस मकसद से दसवीं के बाद निरुपम ने आर्ट्स कॉलेज में दाख़िला ले लिया। निरुपम ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय में पांच साल का बैचुलर ऑफ़ फ़ाइन आर्ट्स कोर्स ज्वाइन किया। ख़ास बात तो ये भी रही कि बेजोड़ तस्वीरें बनाते हुए निरुपम ने कॉलेज के सारे अध्यापकों को भी अपना प्रशंसक बना लिया। कॉलेज के दिनों में ही निरुपम ने महज़ 18 साल की उम्र में अपनी तस्वीरों की पहली प्रदर्शनी लगाई। प्रदर्शनी अपनी नायाब तस्वीरों की वजह से इतनी ख़ास थी कि मीडिया ने भी उसे कवर किया। जल्द ही निरुपम की कलाकृतियों की तारीफ हर तरफ होने लगी। लोग दूर दूर से आकर निरुपम की तस्वीरों को देखने लगे। जो कोई तस्वीर देखता वो तारीफ किये बिना नहीं रुकता। इस प्रदर्शनी से निरुपम की लोकप्रियता खूब बढ़ी और आगे भी लगातार बढ़ती चली गयी।
निरुपम ने अपनी कलाकृतियों की उस पहली प्रदर्शनी की यादों को ताज़ा करते हुए बताया, “ हमारे कॉलेज की प्रिंसिपल जबीन घोष को मेरी एक वाटर कलर पेंटिंग इतनी पसंद आयीं कि उन्होंने वो पेंटिंग खरीद ली। मेरे दोस्त, कई सारे सीनियर्स – सभी मेरी पेंटिंग्स देखने आये थे। सभी ने मेरी बहुत तारीफ की। मैं बहुत खुश हुआ। इतना खुश हुआ कि मैं उसे शब्दों में नहीं बता सकता।” होनहार और उभरते कलाकार निरुपम की ज़िंदगी में उस समय एक नया मोड़ आया जब कॉलेज के दिनों में ही उनकी मुलाकात जोशी मार्क प्रेमनाथ से हुई। एक सेमिनार में निरुपम जोशी मार्क से मिले थे। जोशी मार्क ने ही निरुपम को बैंगलोर में शुरू हुए गेमिंग कोर्स के बारे में बताया था। वैसे भी उन दिनों एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ गेमिंग एंड एनीमेशन को प्रतिभाशाली कलाकारों की तलाश थी। निरुपम ने इंस्टिट्यूट ज्वाइन कर लिया और ‘गेमिंग’ के तौर-तरीके और उन्हें बनाने की कला भी सीखने लगे।
निरुपम की प्रतिभा और कला के चर्चे कई जगह होने लगे थे। इसी वजह से उन्हें अपनी पहली नौकरी भी आसानी से मिल गयी। जून 2010 में निरुपम ने टेकनीकलर ज्वाइन किया। यहाँ उन्होंने दिसम्बर 2011 तक नौकरी की। इसके बाद निरुपम ने दो साल तीन महीने तक ‘ध्रुवा इंटरैक्टिव’ में काम किया। यहाँ भी उनकी प्रतिभा की खूब तारीफ हुई, लेकिन इस दौरान निरुपम को अहसास हो गया कि कैनवास पर चित्र बनाना और कंप्यूटर पर एनीमेशन का काम करना दो बिलकुल अलग-अलग चीज़ें हैं। उन्हें इस बात का भी एहसास हुआ कि अगर वे एनीमेशन का काम करते रहेंगे तो कैनवास पर अपनी पेंटिंग्स नहीं बना पायेंगे। इसी वजह से उन्होंने ऐसी जगह नौकरी करनी चाही, जहाँ उन्हें वाटर कलर पेंटिंग करने के लिए पर्याप्त समय मिले। ‘ध्रुवा इंटरैक्टिव’ के बाद निरुपम ने ज़ेन्त्रिक्स स्टूडियोज़ में काम किया।
इसी बीच एक बार फिर जोशी मार्क ने उन्हें सलाह दी। सलाह थी कि ‘मूनफ्रॉग’ नाम की एक कंपनी ज्वाइन करें। निरुपम को मार्क की सलाह और ईमानदारी पर भरोसा था। इसी वजह से उन्होंने सितम्बर 2015 में ‘मूनफ्रॉग’ ज्वाइन कर ली। निरुपम का कहना है, “मूनफ्रॉग मेरे लिए बिलकुल सही जगह है। मूनफ्रॉग एक ऐसी जगह है, जहाँ आप अपना खुद का भी विकास कर सकते हैं। यहाँ बहुत ही अच्छे लोग हैं और मैं इन टैलेंटेड लोगों के साथ काम करते हुए बहुत ही खुश हूँ। मुझे यहाँ सीखने को भी बहुत कुछ मिल रहा है।”
महत्त्वपूर्ण बात ये भी है कि नौकरीपेशा ज़िंदगी की आपाधापी के बावजूद निरुपम ने कैनवास पर चित्र बनाने का काम जारी रखा। उनका पहला प्यार जल रंगों से तस्वीरें बनाना ही रहा। सुन्दर और नायाब तस्वीरें बनाते हुए निरुपम ने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते।
पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने से जुड़ा किस्सा भी उनकी पेंटिंग्स की तरह की रोचक है। फेसबुक के एक फ़्रेंड ने निरुपम को बताया कि एक ऑनलाइन पेंटिंग प्रतियोगिता हो रही है। ये फेसबुक फ़्रेंड जानता था कि निरुपम की तस्वीरें ग़जब की हैं और वे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने का माद्दा रखती हैं। इस फ़्रेंड की सलाह पर निरुपम ने भी अपनी पेंटिंग प्रतियोगिता के लिए भेजी। और जैसा की होना ही था, निरुपम की पेंटिंग को खूब सराहा गया। इस प्रतियोगिता की वजह से अब देश के बाहर भी उनके मुरीद हो गए थे। प्रतियोगिता में निरुपम की पेंटिंग को छठा स्थान मिला और उन्हें सम्मान के लिए इस्तानबुल बुलाया गया। निरुपम सिर्फ इस वजह से इस्तानबुल नहीं जा पाए, क्योंकि उस समय उनके पास पासपोर्ट नहीं था। इस प्रतियोगिता के बाद निरुपम की ख्याति दुनिया-भर में फैल गयी। दूर-दूर से उनके पास नए-नए प्रस्ताव आने लगे। लोग उनकी पेंटिंग्स को अपनी किताबों और वेबसाइट में छापने के लिए आतुर हो गए। अंतरराष्ट्रीय कला संस्थाएं उन्हें अपने सदस्य बनाने तो तत्पर होने लगी। वे स्पेन की बेस क्यू वाटर कलर सोसाइटी के भी सदस्य बनाये गए। आज दुनिया-भर में उनकी तस्वीरें ही उनकी कामयाबी की कहानी सुना रही हैं।
एक सवाल के जवाब में निरुपम ने कहा, “मैं दुनिया घूमना चाहता हूँ। दुनिया-भर में वाटर कलर पेंटिंग को एक्स्प्लोर करना चाहता हूँ। मैं वाटर कलर पेंटिंग को एक नए लेवल पर ले जाना चाहता हूँ। वाटर कलर पेंटिंग पश्चिमी कला है और मैं इसे दुनिया के सामने भारतीय पद्धति में पेश करना चाहता हूँ।”
बातचीत के दौरान निरुपम ने ये भी कहा,
“मैं मानता हूँ कि आर्टिस्ट बनना किसी भी इंसान के लिए गॉडगिफ्ट ही है, लेकिन अगर प्रैक्टिस नहीं की जाय, कला को निखारने की कोशिश नहीं जाय, तो आदमी कलाकार नहीं रहता। आर्टिस्ट बने रहने के लिए बहुत एफर्ट लगाना पड़ता है।”
ख़ास बात ये भी है कि पिछले साल निरुपम ने भारत में अपने चहेते चित्रकार मिलिंद मलिक से मुलाकात की। फेसबुक पर निरुपम ने मिलिंद मलिक से संपर्क किया और पुणे में उनके स्टूडियो जाकर उनसे मुलाक़ात की। निरुपम ने कहा, “मुझे उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैंने उन्हें ये भी बताया कि उनकी एक किताब देखने के बाद ही मैंने वाटर कलर पेंटिंग शुरू की थी। मेरी ये बात सुनकर वे भी बहुत खुश हुए।”
कुछ अनोखे चित्र
रंगों में बसी निरुपम की दुनिया के अलग अलग किरदार
एक सुंदर दृष्य जिसमें झरना दूर तक बहकर सागर में विस्तार पाता है।
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