मिलिए बंगाल की पहली ट्रांसवूमन ऑपरेशन थिएटर टेक्निशियन जिया और देबदत्ता से
जिया और देबदत्ता मेडिका सुपरस्पेशिऐलिटी हॉस्पिटल में इंटर्न के तौर पर काम कर रही हैं। यह अस्पताल पूर्वी भारत का सबसे बड़ा और नामी अस्पताल माना जाता है। कुछ दिन पहले जिया ने ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टरों को असिस्ट कर पश्चिम बंगाल की पहली ट्रांसवूमन बनने का गौरव हासिल किया।
जिया की जिंदगी में बदलाव तब आया जब एक उनकी मुलाकात एक ऐसे संगठन के लोगों से हुई जो पिछड़े युवाओं को मुख्यधारा में लाने का काम करता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को गैरकानूनी घोषित करते हुए समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया। इस दौरान हमें समलैंगिक समुदाय की कई प्रेरणादायी कहानियां सुनने को मिलीं। वे लोग जिन्होंने अपनी असल जिंदगी में समलैंगिक होने का दंश झेला, जिन्होंने सामाजिक कलंक का विरोध करते हुए अपना मुकाम हासिल किया। ऐसी ही एक कहानी है जिया दास और देबदत्ता बिस्वास की जो अब पश्चिम बंगाल की पहली ट्रांसजेंडर महिला ऑपरेशन थिएटर टेक्नीशियन बन गई हैं।
जिया और देबदत्ता मेडिका सुपरस्पेशिऐलिटी हॉस्पिटल में इंटर्न के तौर पर काम कर रही हैं। यह अस्पताल पूर्वी भारत का सबसे बड़ा और नामी अस्पताल माना जाता है। कुछ दिन पहले जिया ने ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टरों को असिस्ट कर पश्चिम बंगाल की पहली ट्रांसवूमन बनने का गौरव हासिल किया। बंगाल के मालदा जिले में रहने वाली जिया की पारिवारिक पृष्ठभूमि काफी सामान्य रही। उनके पिता की हार्ट सर्जरी हुई थी जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई। उन्होंने अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए बतौर डांसर भी काम किया।
जिया बताती हैं कि डांसर का काम बिलकुल भी आसान नहीं होता क्योंकि फिर समाज आपको गलत समझने लगता है। आपके काम को इज्जत नहीं दी जाती है और बुरे कमेंट मिलते हैं सो अलग। एक बार का वाकया साझा करते हुए वह बताती हैं कि उन्हें बंदूक की नोक पर नाचने के लिए बाध्य किया गया। अपने उन अनुभवों को साझा करते हुए जिया ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, 'लौंडिया डांसर के तौर पर काम करना मैंने खुशी से नहीं चुना था और न ही ये मेरी चॉइस थी। मैं काफी संवेदनशील थी, लेकिन मुझे अपने परिवार को भी संभालना था।'
जिया की जिंदगी में बदलाव तब आया जब एक उनकी मुलाकात एक ऐसे संगठन के लोगों से हुई जो पिछड़े युवाओं को मुख्यधारा में लाने का काम करता है। जिया ने इससे पहले कोलकाता में जेंडर राइट्स मीट में हिस्सा लिया था जहां से उन्हें इस संगठन के बारे में जानकारी मिली। वह इवेंट दरअसल LGBTQ समुदाय के लोगों को उनके अधिकार के बारे में जागरूक करने के लिए आयोजित किया गया था जहां कई संगठनों और एनजीओ ने हिस्सा लिया था।
वहीं देबदत्ता की कहानी भी संघर्षों भरी रही। बांग्ला में परास्नातक करने के बाद देबदत्ता बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं ताकि वह अपने माता-पिता का सहयोग कर सकें। ऑपरेशन थिएटर के अनुभव को साझा करते हुए वह कहती हैं, 'पहली बार ओटी में जाने और डॉक्टरों को हेल्प करने की खुशी मैं बयां नहीं कर सकती।' देबदत्ता ने बताया कि पहला ऑपरेशन सक्सेस हुआ तो उन्हें काफी खुशी हुई।
देबदत्ता और जिया को कोलकाता में हुए उस इवेंट से ही स्कूल फॉर स्किल्स ऐंड अलायज हेल्थ साइंसेज (SSAHS) के बारे में जानकारी मिली थी। SSAHS के संस्थापक डॉ. सतादल साहा ने इन दोनों ट्रांसवूमन को मुफ्त में पैरामेडिकल ट्रेनिंग देने की पेशकश की थी। जिया और देबदत्ता ने 48 स्टूडेंट्स के साथ पिछले साल जुलाई में इस कोर्स में दाखिला लिया था। दोनों ने अपनी पढ़ाई में उम्मीद से बेहतर परफॉर्म किया। डॉ. साहा बताते हैं, 'पहले दिन से ही दोनों काफी उत्साहित थीं और उन्होंने एग्जाम में भी अच्छे नंबर हासिल किए।' यह एक पायलट प्रॉजेक्ट था जिसके तहत LGBTQ समुदाय के लोगों के भविष्य के लिए टेक्निकल कोर्स आयोजित किए जाएंगे।
अस्पताल के चीफ सर्जन डॉ. तपन जोशी ने कहा कि दोनों अपना काम अच्छे से कर रही हैं और आने वाले समय में वे और भी अच्छे सा अपने काम को करती रहेंगी। उन्होंने कहा कि जिया और देबदत्ता का इस अस्पताल में काम करना यह बताता है कि हम लैंगिक पहचान के मुद्दे पर कितने संवेदनशील हैं और हम किसी में कोई भेदभाव नहीं करते। इन दोनों ट्रांसवूमन के लिए कोर्स में दाखिला कराने वाले कौशिक ने कहा कि उम्मीद है कि अब हमारे समाज में LGBTQ समुदाय के लोगों को सामान्य नजरिए से देखा जाएगा और ऐसे युवा भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे।
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