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बेसहारा बच्चों को सहारा देकर समाज से जोड़ने की कोशिश है ‘बाल संबल’

बेसहारा बच्चों को सहारा देकर समाज से जोड़ने की कोशिश है ‘बाल संबल’

Saturday January 02, 2016 , 4 min Read

पढ़ाई के साथ खेलकूद भी...

15 एकड़ में फैला ‘बाल संबल’...

जयपुर से चालीस किलोमीटर दूर सिरोही में है 'बाल संबल'...


अनाथ और बेसहारा बच्चों को सहारा देकर समाज की धारा से जोड़ने के लिए बहुत कम लोग सोचते हैं। जो सोचते हैं, उनमें से भी कुछ ही लोग ऐसे बच्चों के लिए काम करते हैं। पंचशील जैन इन्हीं गिने चुने लोगों में से एक हैं जिन्होंने ना सिर्फ ऐसे अनाथ और बेसहारा बच्चों के बारे में सोचा बल्कि आज वो इनकी ना सिर्फ परवरिश कर रहे हैं बल्कि उनको पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाने में जुटे हैं ताकि वो बच्चे समाज के लिए मिसाल बन जायें। राजस्थान के रहने वाले पंचशील जैन की ‘बाल संबल’ योजना एक ऐसी कल्पना है जो हकीकत में अनाथ बच्चों का सर्वांगीण विकास करती है। फिर चाहे वो पढ़ाई का क्षेत्र हो या खेल का या फिर जिंदगी में आगे चलकर रोजगार पाने का।

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‘बाल संबल’ एक ऐसी योजना है जहां पर 250 अनाथ और बेसहारा बच्चों के रहने, खाने और खेलने की व्यवस्था है। इनमें 125 लड़के और इतनी ही लड़कियों के लिए जगह है। यहां रहने वाले बच्चों को ना सिर्फ स्कूली शिक्षा दी जाती है बल्कि कंम्प्यूटर के साथ बच्चों को हाथ से जुड़ा काम सिखाया जाता है। जयपुर से चालीस किलोमीटर दूर सिरोही में 15 एकड़ में फैले ‘बाल संबल’ में फिलहाल 40 बच्चे रह रहे हैं। इन बच्चों में ना सिर्फ अनाथ बच्चे बल्कि सड़कों पर कूड़ा बीनने वाले बच्चे भी शामिल हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर बच्चे वो हैं जो रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और दूसरी जगहों पर लावारिस घुमते हुए मिले। बाद में जिनको राजस्थान बाल कल्याण समिति के साथ मिलकर यहां पर लाया गया।

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‘बाल संबल’ में इन बच्चों को ना सिर्फ हॉस्टल की सुविधा दी गई है बल्कि कैंपस के अंदर पहली क्लास से लेकर आठवीं क्लास तक का ‘बाल संबल विद्यालय’ भी है। जो राजस्थान बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। बच्चों के विकास के लिए कैंपस में विभिन्न खेलों के लिए अलग अलग मैदान हैं। पंचशील योरस्टोरी को बताते हैं

मैं चाहता हूं कि इन बच्चों का पढ़ाई के अलावा जिस खेल को वो पसंद करते हैं उसमें हम मदद करें ताकि वो कुछ बन कर निकलें।
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‘बाल संबल’ में पढ़ाई और खेल के अलावा म्यूजिक, ऑर्ट एंड क्राफ्ट भी सिखाया जाता है। इसके अलावा यहां रहने वाले बच्चे आने वाले वक्त में अपने पैरों पर खड़े हो सकें इसके लिए उनको विभिन्न तरह के कई काम सिखाये जाते हैं। जैसे सिलाई, कारपेंटर, वेल्डिंग और दूसरी तरह के काम इसमें शामिल हैं। ‘बाल संबल’ के कई बच्चे मार्शल ऑर्ट और तीरंदाजी में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। पंचशील की योजना अब यहां पर स्टेडियम और स्विमिंग पूल बनाने की हैं। ताकि यहां के बच्चे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचना बना सकें।

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पंचशील जैन के पिता स्वंतत्रता सेनानी थे और देश की आजादी के बाद वो समाज सेवा में जुट गये। उन्होने राजस्थान के चुरू जिले के एक गांव को अपने बलबूते आदर्श गांव बनाया। पंचशील जैन आठ भाई बहनों में से एक हैं इस कारण परिवार की आर्थिक हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं थी। पिता की समाज के प्रति सोच का असर पंचशील पर भी पड़ा, लेकिन परिवार की आर्थिक बेहतरी के लिए पंचशील ने डॉयमंड टूल्स के कारोबार जगत में हाथ अजमाने का फैसला किया। डॉयमंड टूल का इस्तेमाल पत्थरों को काटने के लिए होता है। पंचशील बताते हैं 

मैंने जब अपना कारोबार शुरू किया था उसी समय एक संकल्प लिया था कि 50 साल की उम्र के बाद कारोबार छोड़ समाज सेवा लग जाऊंगा। इसलिए साल 2008 में मैंने अपना कारोबार अपने भाईयों के हवाले कर दिया और ‘बाल संबल’ नाम की योजना से जुड़ गया ।
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पंचशील का मानना है कि “देश का भविष्य बच्चे हैं अगर बच्चों का भविष्य अच्छा नहीं होगा तो देश का भविष्य कैसे अच्छा हो सकता है।” पंचशील ने जब इस काम को शुरू किया था तब वो अकेले थे लेकिन धीरे धीरे दूसरे लोग भी इनके साथ जुड़ते गये। आज उनके पास 10 लोगों की एक टीम है।


वेबसाइट : www.balsambal.org