सोशल मीडिया पर क्यों पोस्ट की जाती हैं भड़काऊ बातें
स्कूल ऑफ साइकोलॉजी विश्वविद्यालय के डॉ क्लेयर व्हाइट के अध्ययन से पता चलता है कि ऐसी जोखिम भरी सोशल मीडिया पोस्ट सिर्फ असभ्यता के कारण नहीं हो सकती हैं, बल्कि व्यापक सोशल मीडिया संस्कृति के साथ फिट होने के लिए यह एक जानबूझकर अपनाई गई रणनीति है।
मौजूदा अध्ययनों से पता चलता है कि ऑनलाइन जोखिम उठाने के व्यवहार में युवा सबसे आगे है। डॉ व्हाइट कहते हैं कि इसका मतलब यह हो सकता है कि युवा लोग सोचते हैं कि सोशल मीडिया ऐसा व्यवहार करने का सबसे अच्छा तरीका है।
इस रिसर्च में पीएचडी छात्र क्लारा कटेल्लो, डॉ माइकला गुमेररम और प्रोफेसर यानिव हनोच स्कूल ऑफ साइकोलॉजी शामिल हैं। इस टीम ने ड्रग और अल्कोहल से संबंधित जोखिम को दूर करने के लिए चित्र या ग्रंथों का डिजाइन तैयार किया है।
सोशल मीडिया का उपयोग युवा और वयस्क लोग बहुत व्यापक तौर पर करते हैं जिसमें से कुछ पोस्ट की गई सामग्री या कन्टेंट सही होता है और कुछ ऐसा होता है जो उपयुक्त नहीं है। प्लाईमाउथ विश्वविद्यालय द्वारा एक नए शोध से यह सामने आया है कि युवा वयस्क सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री पोस्ट करते हैं जिसमें यौन या अप्रिय सामग्री शामिल होती हैं। स्कूल ऑफ साइकोलॉजी विश्वविद्यालय के डॉ क्लेयर व्हाइट के अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे जोखिम भरे सोशल मीडिया पोस्ट सिर्फ असभ्यता के कारण नहीं हो सकता हैं। व्यापक सोशल मीडिया संस्कृति के साथ फिट होने के लिए यह एक जानबूझकर अपनाई गई रणनीति हो सकती है।
गफलत में रहते हैं कुछ युवा
मौजूदा अध्ययनों से पता चलता है कि ऑनलाइन जोखिम उठाने के व्यवहार में युवा सबसे आगे है। लेकिन ब्रिटिश और इतालवी युवा वयस्कों के साथ इस अतिरिक्त शोध पर प्रकाश डाला जाए तो उच्च आत्म-निगरानी या सामाजिक मानदंडों के अनुरूप व्यवहार करने वाला व्यवहार-जोखिम भरी सामग्री पोस्ट करने का समान रूप से अनुमान लगाया गया था। डॉ व्हाइट कहते हैं कि इसका मतलब यह हो सकता है कि युवा लोग सोचते हैं कि सोशल मीडिया ऐसा व्यवहार करने का सबसे अच्छा तरीका है।
ऑनलाइन सेल्फ प्रेजेन्टेशन मे रिस्क को मापने के लिए आत्म-प्रस्तुति को मापने की प्रक्रिया ने अपना अहम योगदान दिया है। इस रिसर्च में पीएचडी छात्र क्लारा कटेल्लो, डॉ माइकला गुमेररम और प्रोफेसर यानिव हनोच स्कूल ऑफ साइकोलॉजी शामिल हैं। इस टीम ने ड्रग और अल्कोहल से संबंधित जोखिम को दूर करने के लिए चित्र या ग्रंथों का डिजाइन तैयार किया है। जिसके माध्यम से यौन सामग्री, व्यक्तिगत जानकारी और आक्रामक सामग्री के बारे में जानने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों के आत्म-निगरानी और असंतोष के स्तर का भी मूल्यांकन किया।
घातक है हिंसक पोस्ट करना
डॉ व्हाइट ने कहा है कि, यह वास्तव में प्रतिवाद है क्योंकि यह मानना आसान होगा कि एक उच्च आत्म-मॉनिटर अपने कार्यों पर सवाल उठाएंगे और तदनुसार अनुकूलित करेंगे। लेकिन परिणाम यह बताते हैं कि उच्च आत्म-मॉनिटर केवल जोखिमपूर्ण सामग्री पोस्ट करने की संभावना के रूप में ही हैं, जो रिसर्च में अधिक आवेगी हैं। जिससे यह सामने आया है कि यह सिर्फ खतरनाक नहीं है बल्कि घातक है।
राष्ट्रीयता के आधार पर अंतर करने से यह बात निकलकर आती है कि ब्रिटिश छात्रों की सोशल मीडिया शराब और नशीली दवाओं के उपयोग से संबंधित टिप्पणियां या पोस्ट की अधिक संभावना थी, जबकि उनके इतालवी समकक्षों ने आक्रामक सामग्री और व्यक्तिगत जानकारी पोस्ट की थी।
रहन सहन का तरीका है जिम्मेदार
इस अंतर से पता चलता है कि हमारी संस्कृति किस प्रकार की सामग्रियों को साझा या शेयर करती है, इसमें किस तरह की भूमिका हम अदा करते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि दोनों देशों का जोखिम भरा ऑनलाइन विकल्प का अनुमान लगाने के लिए एक ही तरह की तकनीक अपनाई गई है। जो इस बात का सुझाव देते हैं कि व्यापक सोशल मीडिया संस्कृति इस तरह के जोखिम-उठाने के व्यवहार को प्रोत्साहित करती है।
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