पिता के 12 लाख के व्यापार को 1.7 करोड़ रुपये में बदलने वाले उदयपुर के युवा उद्यमी की कहानी
प्रताप का इरादा आने वाले दिनों में उदयपुर में प्राप्त सफलता को पूरे राजस्थान और भारत में दोहराने का है। उन्हें पूरा भरोसा है कि वे जल्द ही अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब रहेंगे क्योंकि उनका मानना है कि उपभोक्ताओं के दिलों को सिर्फ एक ही चीज से जीता सकता है और वह है गुणवत्ता।
वर्ष 2012 में संचालन संभालने के तुरंत बाद प्रताप ने इंदौर नमकीन भंडार फूड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड के नाम से पंजीकरण करवाया। वर्ष 2012 के 12 लाख रुपये सालाना के कारोबार के मुकाबले वर्ष 2017 में कंपनी ने 1.7 करोड़ रुपये के टर्नओवर को छुआ और 15 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवाया।
ब्रांडिंग की एक उपयुक्त रणनीति और कारखाने के आधुनिकीकरण ने आईएनबी फूड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड को बीते पांच वर्षों में उसके मौजूदा मुकाम तक पहुंचाने में एक बेहद अहम भूमिका निभाई है। प्रताप सिंह राठौर ने कभी उदयपुर में स्थित अपने 50 वर्षीय पिता के नमकीन के व्यापार का हिस्सा बनने के बारे में सोचा भी नहीं था और न ही उनका कोई इरादा था। 40 वर्षीय प्रताप कहते हैं, ‘मैं वित्त के क्षेत्र के अपने कुलीन माने जाने वाले काम से काफी खुश और संतुष्ट था और मेरी योजना इसी क्षेत्र में अपने करियर का विस्तार करने की थी।’ लेकिन इस निजी और अप्रत्याशित घटना ने प्रताप के सपनों को धराशायी कर दिया। वे बताते हैं, ‘मिलकर पारिवारिक व्यापार का संचालन करने वाले मेरे पिता और भाई की क्रमशः 2010 और 2012 में मृत्यु हो गई। इस वजह से मुझे पारिवारिक व्यापार का भार अपने कंधों पर उठाना पड़ा।’
वर्ष 2012 में संचालन संभालने के तुरंत बाद प्रताप ने इंदौर नमकीन भंडार (आईएनबी) फूड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड के नाम से पंजीकरण करवाया। वर्ष 2012 के 12 लाख रुपये सालाना के कारोबार के मुकाबले वर्ष 2017 में कंपनी ने 1.7 करोड़ रुपये के टर्नओवर को छुआ और 15 लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया। अब यह उदयपुर में नमकीन के नामी और अग्रणी निर्माताओं में से एक हैं।
प्रताप कहते हैं, ‘मैं ब्रांडिंग और डिजाईनिंग में बहुत विश्वास करता हूं। व्यवसाय का जिम्मा संभालने के बाद मैंने सारा ध्यान कारखाने के नवीनीकरण और आधुनिकीकरण करने के अलावा दुकान के स्वरूप को बदलकर उसे शोरूम का रूप देने पर लगाया।’
प्रताप के अनुसार कंपनी के उत्पादों की ब्रांडिंग करने के फलस्वरूप उन्हें नए ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने में तो मदद तो मिली ही है, इसके अलावा मौजूदा उपभोक्ताओं के बीच विश्वास और पहचान भी मजबूत हुई है और वित्तीय बहुमूल्यता हासिल करने में यह काफी सहायक है, जिसके चलते प्रताप आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अपने उपभोक्ताओं को अधिक बेहतर उत्पाद उपलब्ध करवा पा रहे हैं। वे कहते हैं ‘हमारे उत्पाद औसत से 40 प्रतिशत अधिक दामों पर बिकते हैं और लोग स्वेच्छा से उन्हें खरीदते हैं जिससे हमें आगे बढ़ने और अपने उत्पादों के साथ कुछ नया और रोचक करने के लिये पर्याप्त राजस्व हासिल होता है।’
मजबूत जड़ें
वर्ष 1969 में प्रताप के पिता स्वरूप सिंह राठौर द्वारा प्रारंभ किये गए आईएनबी स्थापना के इतने सालों बाद एक अच्छा उपभोक्ता आधार तैयार करते हुए बाजार में अपनी पहचान बना चुका था। इसके चलते कंपनी को अपने उत्पादों को बेचने के लिये कभी भी मार्केटिंग के परंपरागत तरीकों का सहारा लेने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई। प्रताप कहते हैं, ‘मौखिक रूप से होने वाली मार्केटिंग हमारे लिये काफी बेहतर साबित हो रही है। उदयपुर में शायद ही कोई ऐसा हो जो हमारे शोरूम को न जानता हो या फिर कम से कम एक बार यहां न आया हो।’
हाल के कुछ वर्षों में आईएनबी को उदयपुर स्थित सरकारी सहकारी स्टोर्स में अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का काफी फायदा हुआ है जिसके चलते इनका इरादा ऐसे सरकारी मार्केटिंग चैनलों के साथ सहयोग को आगे बढ़ाने का है। प्रताप कहते हैं, ‘हम पूरे राज्य के सहकारी स्टोर्स पर अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिये परमिट पाने को राजस्थान सरकार के संपर्क में हैं।’
प्रताप का इरादा आने वाले दिनों में उदयपुर में प्राप्त सफलता को पूरे राजस्थान और भारत में दोहराने का है। उन्हें पूरा भरोसा है कि वे जल्द ही अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब रहेंगे क्योंकि उनका मानना है कि उपभोक्ताओं के दिलों को सिर्फ एक ही चीज से जीता सकता है और वह है गुणवत्ता, जो बीते करीब पांच दशक से आईएनबी का मूल मंत्र रही है। अपने पिता से प्राप्त सबकों के बारे में पूछे जाने पर प्रताप कहते हैं कि उन्हें पिता से बहुत सारे सबक मिले जिनके चलते अब वे प्रतिस्पर्धा से बिल्कुल भी डरते नहीं हैं।
प्रताप उस एक घटना को याद करते हैं जब उनकी ही दुकान के पास नमकीन की उनके जैसे ही एक और दुकान खुली तो कैसे उनके पिता ने उसे खतरे के बजाए एक अवसर के रूप में देखा। प्रताप कहते हैं, ‘मेरे पिता को अपने मूल उपभोक्ताओं को खोने का जरा भी डर नहीं था। उन्हें इन उपभोक्ताओं के अपना बने रहने पर पूरा भरोसा था और वे कभी भी उन्हें लुभाने को लेकर परेशान नहीं हुए। उन्होंने अपना ध्यान दूसरी दुकानों के वफादार ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करते हुए अपना उपभोक्ता आधार विस्तारित करने पर लगाया।’
प्रताप कहते हैं कि उनके पिता इतना आत्मविश्वास इसलिये दिखा पाए, क्योंकि वे अपने उपभोक्ताओं को कई दशकों से लगातार उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध करवा रहे थे। ‘उपभोक्ता मेरे पिता पर आंख बंद करके भरोसा करते थे। वे गुणवत्ता को लेकर बिल्कुल आश्वस्त थे और मेरे पिता की दुकान से सामान खरीदने के बाद चिंता नहीं करते थे।’ वे अंत में कहते हैं कि अबतक अपने उपभोक्ताओं के साथ ऐसे ही रिश्ते कायम करना उनका प्राथमिक उद्देश्य और सबसे बड़ी सीख रही है।
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