युवाओं को सही करियर चुनने में मदद कर रहा है एनजीओ 'निर्माण'
हर एक बच्चे की काउंसलिंग कराकर उसकी पसंद-नापसंद, क्षमता-अक्षमता के हिसाब से उसको आगे की पढ़ाई और नौकरी के लिए तैयार किया जाना ही सही तरीका है और इसी सिद्धांत पर काम कर रहा है एनजीओ "निर्माण"।
देश के युवाओं में असीम संभावनाएं हैं। अगर उन्हें सही दिशा निर्देश मिले तो वो क्या कुछ नहीं कर सकते हैं। उनकी प्रतिभा और जुझारूपन का सही इस्तेमाल हो तो नित नए आविष्कार, सामाजिक बदलाव देखने को मिलेंगे।
बहुत कम लोगों को एक जवाब खोजने के लिए सक्रिय रूप से तलाश करने का मौका मिलता है। इस स्थिति को बदलने और शिक्षा के उद्देश्य के लिए सही रहने के लिए, निर्माण अपने जीवन के विकास के लिए खोज करने को प्रोत्साहित करता है।
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में बच्चा जब बारहवीं में होता है तभी से उसके सामने करियर विकल्पों का भंवरजाल दिखना शुरू हो जाता है। सही मार्गदर्शन न मिलने से वो अपनी काबिलियत और पसंद के खिलाफ जाकर आगे की पढ़ाई के लिए विषय चुन लेता है। और जब तक उसको समझ आता है कि वो इस काम के लिए नहीं बना है तब तक नौकरी करने की उम्र आ जाती है, प्लेसमेंट शुरू हो जाते हैं और उसे हारकर आगे भी बेमन से उस काम को करना पड़ता है।
लेकिन कितना अच्छा होता न कि हर एक बच्चे के दिमागी, शारीरिक योग्यता और उसकी रुचि के हिसाब से करियर विकल्प सामने रखे जाते। हर एक बच्चे की काउंसलिंग कराकर उसकी पसंद-नापसंद, क्षमता-अक्षमता के हिसाब से उसको आगे की पढ़ाई और नौकरी के लिए तैयार किया जाना ही सही तरीका है। और इसी सिद्धांत पर काम कर रहा है एक एनजीओ निर्माण।
क्या करता है निर्माण
अभय और रानी बैंग नाम के दो लोगों ने 2006 में इस एनजीओ की शुरुआत की थी। निर्माण के एक सदस्य के मुताबिक, 'वर्तमान शिक्षा प्रणाली बहुत सारी जानकारी देती है, कभी-कभार कुछ कौशल भी देता है लेकिन इसके प्रतिभागियों को उद्देश्य का अर्थ नहीं देता। इसलिए, मुझे अपनी जिंदगी के साथ क्या करना चाहिए? अधिकांश लोगों के लिए एक अनुत्तरित प्रश्न बना हुआ हैं। बहुत कम लोगों को एक जवाब खोजने के लिए सक्रिय रूप से तलाश करने का मौका मिलता है। इस स्थिति को बदलने और शिक्षा के उद्देश्य के लिए सही रहने के लिए, निर्माण अपने जीवन के विकास के लिए खोज करने को प्रोत्साहित करता है।'
क्या है पूरी प्रक्रिया
निर्माण शैक्षणिक प्रक्रिया के तहत करीब 75 चयनित युवाओं का एक बैच बनता है। प्रत्येक बैच में आवासीय शिविरों की श्रृंखला चलती है जो हर 6 महीनों (आम तौर पर जनवरी, जून और दिसंबर) में एक बार आयोजित होती है। प्रत्येक शिविर लगभग 8-10 दिनों का होता है। निर्माण के छात्र रह चुके रंजन पंधारे के मुताबिक, ' मैं जब 18 साल का था, तब निर्माण के एक साल वाले कार्यक्रम में शामिल हुआ था। मैं नेशनल एकेडमी ऑफ कंस्ट्रक्शन में सिविल इंजीनियरिंग का अध्ययन कर रहा था, लेकिन मुझे पता नहीं था कि मैं क्या अपनाना चाहता हूं और मेरा उद्देश्य क्या है।'
उन्होंने बताया कि निर्माण ने मुझे एक परिप्रेक्ष्य दिया कि मैं माइक्रो सिंचाई जैसे चीजों में अपना अध्ययन कैसे कर सकता हूं। मैंने देखा कि कई लोग मल्टीनैशनल कंपनियों को छोड़कर यथार्थवादी सामाजिक परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। तब मुझे एहसास हुआ कि समाज में बदलाव लाना किसे कहते हैं।' पांधारे ने एक परियोजना के लिए अत्यधिक महामारी मलेरिया क्षेत्र में काम किया है, साथ ही साथ नशा उन्मूलन अभियान भी चला चुके हैं।
भारत युवाओं का देश है। भारत की युवाशक्ति सिर्फ दफ्तर जाकर पैसे कमाने में खटनी नहीं चाहिए। देश के युवाओं में असीम संभावनाएं हैं। अगर उन्हें सही दिशा निर्देश मिले तो वो क्या कुछ नहीं कर सकते हैं। उनकी प्रतिभा और जुझारूपन का सही इस्तेमाल हो तो नित नए आविष्कार, सामाजिक बदलाव देखने को मिलेंगे। और युवाओं के लिए करियर का मतलब रोजगा पाकर घर चलाना भर नहीं रह जाएगा। जब वो अपनी पसंद का काम दिल लगाकर करेंगे तो देश तरक्की के रास्तों पर और तेजी से बढ़ेगा।