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'वोटराइट'...ताकि मिट जाएं जनता और जनार्दन के फासले

वोटराइट पर लोकल समस्याओं पर संभव है चर्चा

'वोटराइट'...ताकि मिट जाएं जनता और जनार्दन के फासले

Tuesday July 14, 2015 , 5 min Read

चुनाव और उनके नतीजों के इंतजार को लेकर बैंगलोर के तीन उद्यमियों – विक्रम नालगमपल्ली, सिरिषा कोगांती और लक्ष्मी दसम ने कुछ बेहद ही रोचक करने का फैसला किया। इन लोगों ने वोटराइट.कॉम नाम से एक पोर्टल लॉन्च किया है, उन्हें उम्मीद है कि ये पोर्टल मतदाता और उम्मीदवार के बीच पारस्परिक संचार का एक बेहतर जरिया बन सकेगा।

अवधारणा

वोटराइट को उम्मीद है कि उन्हें ऐसे यूजर्स मिलेंगे जिन्हें अपने इलाके में कुछ समस्याएं हों और जो इन समस्याओं को सामूहिक रूप से इस पोर्टल पर पोस्ट कर चर्चा करेंगे व उसका हल निकालने की कोशिश करेंगे। यह साइट अब नेताओं से भी बात कर रही है कि वो इस साइट पर आएं और से आम लोगों से संपर्क करने के प्लेटफॉर्म के तौर पर इस्तेमाल करें। हालांकि पिछले महीने शुरू करने के बाद अब तक 700 लोगों ने इसे ज्वाइन किया है, लेकिन एक भी नेता ने इस पर साइन अप नहीं किया है। इस आइडिया के बारे में वर्णन करते हुए विक्रम ने बताया, “हम चाहते हैं कि ये साइट उन लोगों की मदद करे जिनके पास नेताओं या प्रशासनिक अधिकारियों के पास खुद जाकर अपनी समस्या बताने का वक्त नहीं है। एक सामाजिक प्लेटफॉर्म होने के नाते हम उम्मीद करते हैं कि लोग एक-दूसरे से अपनी समस्याओं पर बात करें और इस तरह एक ही इलाके मे रहने वाले लोग अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर साथ आएं और उनका समाधान तलाशें।” मसलन, बैंगलोर के इंदिरानगर में सड़कें गड्ढे से भरी हैं, इंदिरानगर के निवासी वोटराइट पर इस समस्या पर चर्चा कर सकते हैं, जो भी सूचनाएं हैं उन्हें एकत्रित कर सड़क की मरम्मत के लिए कार्रवाई की मांग कर सकते हैं। अगर इंदिरानगर के विधायक भी वोटराइट पर हों तो उनके सामने ये समस्या रखी जाए और फिर उनसे इसका हल करने की मांग की जाए।

वोटराइट को ये भी उम्मीद है कि वो किसी उम्मीदवार की डिजिटल डायरी बन सकती है। इसके लिए किसी उम्मीदवार के पिछले पांच साल तक किए काम की सूची बनाई जाएगी और फिर उन काम का विश्लेषण किया जाएगा। आम लोग भी वोटराइट द्वारा तैयार उम्मीदवार के काम की सूची का विश्लेषण कर ये तय कर सकेंगे कि पिछले पांच साल के दौरान उम्मीदवार उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा है या नहीं।

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ये किस तरह से पैसा कमाएंगे?

विक्रम जब ये कहते हैं कि वो स्थानीय कारोबारी के पास विज्ञापन के लिए जाएंगे तो लगता है जैसे वो कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहे हैं। हां, अगर किसी एक इलाके से अच्छी खासी संख्या में लोग ऑनलाइन आएं तो वो उस इलाके के कारोबारी से पोर्टल पर विज्ञापन देने की बात कर सकते हैं। विक्रम मानते हैं कि पैसा कमाना भविष्य की बात है, लेकिन फिलहाल जिसपर इनका ध्यान है वो है ज्यादा से ज्यादा संख्या में यूजर्स को ऑनलाइन पंजीकृत कराना।

विक्रम पहले अमेरिका में नौकरी करते थे, लेकिन वो नौकरी छोड़कर भारत आ गए। वोटराइट शुरू करने की बात तब सामने आई जब विक्रम को अपनी निजी जिंदगी में कुछ जरूरी चीजें करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जैसे फोन या गैस कनेक्शन लेने में उन्हें काफी दिक्कतें पेश आईं। उनका कहना है कि इस तरह के सरकारी संस्थानों में एसएलए (सर्विस लेवल एग्रीमेंट्स) यानी काम करने का जो तरीका है वो कभी सुधर नहीं सकता जब तक कि राजनीतिक नेतृत्व उन्हें जवाबदेह न बनाए। विक्रम कहते हैं, “नेताओं को इस दिशा में आगे आने के लिए पहले मतदाताओं को बड़ी संख्या में सामने आकर अपनी आवाज उठानी होगी। फिलहाल, 18-35 साल उम्र वर्ग के बड़ी संख्या में मतदाता, खासकर शहरी इलाकों में अपने मताधिकार का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं। वोटराइट की कोशिस है कि वो इस फासले को कम करे, उन्हें वोट देने के लिए प्रोत्साहित करे।”

हमारी सोच

हालांकि ये अवधारणा अच्छी है, लेकिन लोगों को प्रशासनिक समस्या के बारे में एक साइट पर चर्चा कराने के लिए एकजुट करना महत्वाकांक्षी कोशिश थी। विक्रम बताते हैं कि ग्रीनपीस और आवाज.ओआरजी जैसी कई साइट हैं जो बेहद ही प्रभावी तरीके से बदलाव के लिए डिजिटल स्पेस का इस्तेमाल कर रही हैं।

साइट के यूजर एग्रीमेंट के मुताबिक, वोटराइट की बहुत ही सीमित जवाबदेही है और वोटराइट के इस्तेमाल से पैदा हुए किसी विवाद के लिए इसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसे में लोगों को एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराने की ये अवधारणा तो अच्छी है, लेकिन बहुत सारे लोग ये उम्मीद करते हैं कि असल मुद्दों पर वोटराइट सिर्फ मूक दर्शक की तरह नहीं बल्कि और ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाए।

विक्रम नालगमपल्ली

विक्रम नालगमपल्ली


दूसरी बात ये कि वोटराइट इससे पैसे कैसे कमाए, इस पर सोचना जरूरी है। कारोबार और नेताओं के बीच किस तरह के रिश्ते होते हैं, ये तो सभी जानते हैं। ऐसे में ये सवाल बेहद अहम है कि अगर साइट पर किसी स्थानीय नेता के खिलाफ कोई विवाद चल रहा हो तो क्या एक कोराबारी वोटराइट पर अपना विज्ञापन देने को राजी होगा?

हाल के दिनों में राजनीतिक पार्टियों में सोशल मीडिया को लेकर जिस तरह का उत्साह दिख रहा है, ऐसे में अगर वोटराइट अच्छी संख्या में लोगों और नेताओं को अपनी ओर आकर्षित कर पाया, तो ये जन प्रतिनिधियों में जवाबदेही तय करने का एक नया जरिया बन सकती है।