दिल दिमाग को मोह लेने वाली "मोहिनी चाय", गांव-गांव तक पहुंची स्वाद की खुशबू
मोहिनी टी चाय के बाज़ार में बड़ा नामउत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, बिहार और झारखण्ड सहित उत्तर भारत के लगभग 5% चाय बाजार पर कब्ज़ामोहिनी टी की फिलहाल कुल बिक्री 300करोड़ की अगले 5 सालों में 1000 करोड़ तक पहुँचाने की योजना
अपनी स्नातक की पढाई के बाद रमेश चांद अग्रवाल छुट्टियां मनाने दार्जलिंग गए तो उन्हें पता नहीं था कि उनकी यह यात्रा उनका भविष्य तय करने वाली है. उन्होंने उत्तरी बंगाल के चाय बागानों को देखा और खुले बाजार में चाय कि नीलामी होते देखी तो उन्हें लगा कि यह तो करने लायक काम है. रमेश ने फौरन ही चाय की एक छोटी सी खेप खरीद ली और तब से आज तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. प्रारंभ में रमेश सिर्फ चाय के थोक व्यापार के संचालन में शामिल हो कर इस व्यापार की थाह लेते रहे.लेकिन तभी एक छोटी सी घटना ने उनके पूरे दृष्टिकोण को बदल दिया. रमेश अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं-" एक बार ऐसा हुआ कि मैं चाय के एक फुटकर विक्रेता के यहाँ बैठा हुआ था. उसी समय वहां एक ग्राहक आयी और उसने कुछ ही दिनों पहले खरीदी हुयी चाय की गुणवत्ता की शिकायत करते हुए उस चाय को वापस करने को कहा. यह मेरे लिए एक विचारणीय बिंदु था और इस घटना से मेरे मन में अच्छी गुणवत्ता, सस्ती कीमत की पैकेट वाली चाय शुरू करने का विचार आया जिसकी पहुँच उन गाॉंवों तक हो जहाँ ब्रुक-बॉन्ड और टाटा जैसे बड़े ब्रांड नहीं पहुँच सके हैं."
अपने तीन अन्य भाईयों की सहायता से रमेश ने अपने ब्रांड "मोहिनी टी" के नाम से चाय का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया, जो कि दूर दराज़ के लोगों की समस्यायों का समाधान था.
हालांकि, चाय एक मौसमी उत्पाद है,किन्तु इसका उपयोग पूरे साल किया जाता है. असम, उत्तरी बंगाल, तमिलनाडु और केरल सहित तमाम अन्य राज्यों से नमूने इकट्ठे करने से लेकर अंतिम उत्पाद खरीदने तक यह एक अत्यंत कठिन कार्य है. अलग-अलग एजेंटों से नमूनों की खरीद के बाद उत्पाद को एक मानक और सम्मिश्रण जाँच से गुजरना पड़ता है. और जिसके बाद खरीद का आदेश दिया जाता है. फिर विभिन्न एजेंटों के यहाँ से पूरे उत्पाद को कानपुर स्थित फैक्ट्री में लाया जाता है जहाँ एक बार फिर जांच के बाद इसका प्रसंस्करण किया जाता है. वर्तमान में विशेषज्ञों की एक टीम है जो पूरी आपूर्ति श्रृंखला की देखरेख करते हैं और वे तीन महीने के भीतर उत्पाद का वितरण सुनिश्चित करते हैं.
दूसरे अन्य उपभोक्ता आधारित उत्पाद की तरह वितरण के क्षेत्र में इन्हें भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. हालाँकि ग्रामीण जनसँख्या, एक बहुत बड़ा बाजार था किन्तु वहाँ तक पहुँच पाना एक बड़ी चुनौती थी. रमेश कहते हैं-"जब हमने कानपुर में पैकेट चाय का उत्पादन शुरू किया तो हमने अनुमान नहीं किया था कि उत्तर प्रदेश के दूर-दराज इलाकों तक पहुँच पाना इतनी बड़ी चुनौती होगी. एक नया ब्रांड होने के नाते हमें वितरक मिलने में भी दिक्कत थी. सभी उधार पर माल लेना चाहते थे. चूंकि शुरूआत में बिक्री भी कम थी इस लिए दुकानदारों का उत्पाद में ज्यादा भरोसा भी नहीं था. लेकिन निरंतर और दृढ़ प्रयास का हमें फल मिला और छोटे शहरों के उपभोक्ताओं के बीच "मोहिनी टी" को स्वीकार्यता मिलने लगी." और धीरे-धीरे उनकी सबसे बड़ी चुनौती ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गयी. साथ ही अन्य स्थानीय प्रतिद्वंदियों से भी उन्हें निपटने में सफलता मिली. रमेश बताते हैं-" कई सारे क्षेत्रीय खिलाडी है जो कि किसी खास इलाके या कुछ जिलों में प्रभुत्व रखते हैं और सामान्यतः कीमतों और योजनाओं में हमसे प्रतिस्पर्धा करते हैं. और चूंकि हमारे फोकस में गाँव, छोटे शहर और उपनगरीय इलाके हैं इस लिए ज्यादातर हमारा सीधा मुकाबला ब्रुक-बॉन्ड और टाटा जैसी राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों से नहीं होता. लेकिन क्षेत्रीय और स्थानीय स्पर्धा अत्यंत प्रबल होती है."
इसमें कोई बड़ी तकनीक बाधा तो नहीं है लेकिन इसकी सफलता प्राथमिक रूप से इसके वितरण की मजबूती, ब्रांडिंग, उपभोक्ताओं का भरोसा और आपूर्ति श्रृंखला पर आधारित है.
वर्तमान में रमेश का दावा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, बिहार और झारखण्ड सहित उत्तर भारत के लगभग 5% चाय बाजार पर इनका कब्ज़ा है. और भविष्य में रमेश की योजना अपने वर्तमान ३०० करोड़ की कुल बिक्री को अगले 5 सालों में 1000 करोड़ तक पहुँचाने की है.