पहली बार डॉक्टरों ने किया मां के गर्भ में ही बच्ची की जानलेवा जेनेटिक बीमारी का इलाज
यह दुनिया में पहली बार हुआ है कि किसी बीमारी का सफलतापूर्वक इलाज गर्भ में ही किया गया है.
दो महीने के भीतर यह मेडिकल साइंस की दूसरी बड़ी उपलब्धि है. जिस बीमारी के कारण जन्म के बाद बच्चों की मृत्यु हो जाती है, डॉक्टरों ने जन्म से पहले गर्भ में ही उस बीमारी को ठीक कर दिया है. यह मानव इतिहास में पहली बार हुआ है कि जन्म से पहले गर्भ में ही किसी बीमारी का इलाज किया गया है.
अभी दो महीने पहले ही स्पेन में डॉक्टरों ने एक 13 महीने की बच्ची का आंत प्रत्यारोपण (इंटेस्टाइन ट्रांसप्लांट) किया था, जो मेडिकल साइंस के इतिहास में पहली बार हुआ है.
17 महीने की आयला बशीर कनाडा में रहती है. इससे पहले उसकी दो बहनें और पैदा हुईं, लेकिन एक जेनेटिक बीमारी के चलते दोनों की ही जन्म के बाद मृत्यु हो गई. लेकिन एम्मा को डॉक्टर इस बीमारी से बचाने में सफल हो गए. डॉक्टरों ने एम्मा के जन्म से पहले ही, जब वह अपनी मां के गर्भ में थी, उसकी बीमारी को ठीक कर दिया. अब एम्मा 17 महीने की है और बिलकुल स्वस्थ है. इस उम्र के बाकी बच्चों की तरह बहुत चंचल और शैतान भी.
यह दुनिया में पहली बार हुआ है कि किसी बीमारी का सफलतापूर्वक इलाज गर्भ में ही किया गया है. यह एक नई तकनीक है, जिसके परिणाम पॉजिटिव आए हैं. डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के मुताबिक इस टेक्नीक के जरिए भविष्य में जेनेटिक बीमारियों का इलाज मुमकिन हो जाएगा. ऐसी डेडली जेनेटिक बीमारियां, जो बहुत सारे मामलों में जानलेवा साबित होती हैं.
न्यू इंग्लैड जरनल ऑफ मेडिसिन में एम्मा की इस जेनेटिक बीमारी के इलाज की पूरी डीटेल छपी है.
एम्मा को कौन सी बीमारी थी ?
जिस जेनेटिक बीमारी के कारण एम्मा की दो बहनों की मृत्यु हुई, उसका नाम है पॉम्पे. यह मनुष्य की कोशिकाओं की बुनियादी संचरना को बदल देने वाली एक आनुवंशिक बीमारी है. आनुवंशिक या जेनेटिक बीमारी वो होती हैं, वो वायरस या वाह्य कारणों से उत्पन्न नहीं होती. जिसकी वजह जीन में होती है. पॉम्पे नामक इस बीमारी में शरीर की कोशिकाओं में ग्लाइकोजन नामक एक कॉम्प्लेक्स शुगर इकट्ठा हो जाता है.
इसका नतीजा ये होता है कि शरीर में किसी भी तरह का प्रोटीन बनना बंद हो जाता है और शुगर की मात्रा अधिकतम के लेवल से बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इस बीमारी में बचने की कोई संभावना नहीं. वैसे भी डायबिटीज जैसी विशुद्ध लाइफ स्टाइल डिजीज को भी यदि कंट्रोल न किया जाए तो वो जानलेवा ही होती है.
कैसे मुमकिन हुआ एम्मा का इलाज
किसी भी जेनेटिक बीमारी का इलाज जीन की बुनियादी संरचना को बदलकर ही किया जा सकता है. और यह तभी मुमकिन है, जब जीन के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान ही उसकी संरचना में हस्तक्षेप कर उसे बदलने की कोशिश की जाए.
जब एम्मा की मां प्रेग्नेंट थीं, तो डॉक्टरों ने प्लेसेंटा या गर्भनाल के जरिए उनके शरीर में कुछ ऐसे एंजाइम्स देने शुरू किए, जो बढ़ रहे भ्रूण के शरीर में प्रवेश कर कोशिकाओं की निर्माण की प्रक्रिया में ही उसकी संरचना को बदल सकें. गर्भ में पल रहा बच्चा गर्भनाल के जरिए ही मां से सारा पोषण प्राप्त करता है. तो डॉक्टरों ने इस बार उस गर्भनाल के जरिए भ्रूण को एंजाइम्स देकर उसका इलाज करना शुरू किया.
यह अपनी तरह का पहला प्रयोग था और डॉक्टरों को भी पता नहीं था कि इस प्रयोग में उन्हें कितनी सफलता हासिल होगी. लेकिन अपने दो बच्चों को खो चुके और सब तरफ से नाउम्मीद माता-पिता के पास कोई और विकल्प नहीं था कि वे डॉक्टरों को भी अपनी आखिरी कोशिश करने दें.
गर्भधारण के 24 हफ्ते के बाद एंजाइम्स देने की यह प्रक्रिया शुरू हुई और नतीजे सुखद रूप से चौंकाने वाले रहे. जन्म के बाद जब एम्मा की जांच की गई तो उसकी कोशिकाओं में शुगर की मात्रा संतुलन में थी और उसके शरीर में बाकायदा प्रोटीन बन रहा था. नन्ही एम्मा ने डॉक्टरों के साथ मिलकर उस जानलेवा बीमारी को मात दे दी थी, जिसने उसकी दो बहनों की जिंदगी छीन ली.
मेडिकल साइंस किसी जादू से कम नहीं. ये बात अलग है कि वो कोई जादू नहीं, बल्कि विशुद्ध विज्ञान है, जिसकी उपलब्धियां मनुष्य को बेहतर और स्वस्थ जिंदगी देने के साथ जीवन दान भी दे रही हैं. हम नन्ही एम्मा के लिए लंबी उम्र की कामना करते हैं.
Edited by Manisha Pandey