एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने शुरू किया था ये दर्द मिटाने वाला बाम जो बाद में घर-घर पहुंचा, जन्मी करोड़ों के कारोबार वाली कंपनी
"अमृतांजन को आम घरों तक पहुंचाने में शुरुआती सफर थोड़ा चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन राव ने इसके लिए एक अलग रणनीति अपनाई। उस दौरान लोगों को अमृतांजन बाम की छोटी बोतल मुफ्त में दी जाती थी जिसे लोग घर पर जाकर इस्तेमाल करते थे। लोगों को अमृतांजन बाम से दर्द में लाभ मिलना शुरू हुआ तो इस बाम की चर्चा जल्द ही आम लोगों के बीच तेज हो गई।"
एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ने न सिर्फ देश के लिए जेल की सजा काटी बल्कि देश को एक ऐसी कंपनी भी बना कर दी जो आज विदेशों में भी करोड़ों का कारोबार कर रही है। ये स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे काशीनाधुनी नागेश्वर राव।
मशहूर अमृतांजन बाम के आविष्कारक काशीनाधुनी नागेश्वर राव का जन्म 1867 में आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ था। राव की शुरुआती शिक्षा उनके गाँव से ही पूरी हुई, हालांकि स्नातक की पढ़ाई के लिए वे मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज जा पहुंचे। राव शुरुआत से ही देश की आजादी के लिए सक्रिय तौर पर अपना योगदान देना चाहते थे, लेकिन परिवार के दबाव के चलते उन्हे शुरुआत में नौकरी करनी पड़ गई।
राव ने कोलकाता की एक दवा बनाने वाली कंपनी से अपने करियर की शुरुआत की, हालांकि कुछ समय बाद ही वे मुंबई (तब बॉम्बे) आ गए। मुंबई में राव एक ऑफिस में काम जरूर कर रहे थे, लेकिन इस दौरान वे अपना व्यापार शुरू करना चाहते थे।
घर-घर पहुंचा अमृतांजन
मुंबई में ही राव ने दर्द निवारक अमृतांजन बाम का आविष्कार किया और अपनी कंपनी की स्थापना की। अमृतांजन को आम घरों तक पहुंचाने में शुरुआती सफर थोड़ा चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन राव ने इसके लिए एक अलग रणनीति अपनाई। उस दौरान लोगों को अमृतांजन बाम की छोटी बोतल मुफ्त में दी जाती थी जिसे लोग घर पर जाकर इस्तेमाल करते थे। लोगों को अमृतांजन बाम से दर्द में लाभ मिलना शुरू हुआ तो इस बाम की चर्चा जल्द ही आम लोगों के बीच तेज हो गई।
अमृतांजन ने बेहद कम समय में लोकप्रियता हासिल करनी शुरू कर दी और जल्द ही यह भारत के लगभग सभी घरों तक भी पहुँच गया। अमृतांजन ने राव को भी कम समय में लखपति बना दिया था। साल 1936 में अमृतांजन लिमिटेड नाम से पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन चुकी थी।
अमृतांजन बाम की लोकप्रियता का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि आज भी अमृतांजन की गिनती मुंबई में निर्मित हुए अब तक के सर्वश्रेष्ठ उत्पादों में होती है।
सत्याग्रह में भी लिया हिस्सा
राव ने इस दौरान खुद को तेलुगू लोगों के हित के लिए भी समर्पित रखा और साल 1907 में सूरत में नेशनल कॉंग्रेस की एक बैठक में हिस्सा लेने के साथ ही देश की आज़ादी की मुहिम में भी शामिल हो गए। राव तेलुगू भाषा में साप्ताहिक आंध्र पत्रिका का भी सम्पादन करते थे।
साल 1930 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए नमक सत्याग्रह में भी राव ने हिस्सा लिया और इसके लिए उन्हे 6 महीने की जेल भी काटनी पड़ गई। साल 1938 में राव का निधन हो गया, जिसके बाद राव के कारोबार का जिम्मा उनके भतीजे एस शंभू प्रसाद के ऊपर आ गया।
शुरू किए कई व्यापार
एस शंभू प्रसाद ने कंपनी में बाम के साथ ही हेल्थकेयर से जुड़े तमाम अन्य उत्पादों का भी निर्माण किया, जिसके बाद कंपनी तेजी से सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगी। साल 2002 में कंपनी ने अमेरिकी बाज़ार में भी दस्तक दे दी और साल 2007 में कंपनी को नया नाम ‘अमृतांजन हेल्थ केयर लिमिटेड’ दिया गया।
कंपनी ने सॉफ्टवेयर व्यापार में भी कद रखे और इसकी शुरुआत अमृतांजन इन्फोटेक नाम से हुई, जिसके तहत देश भर में सैकड़ों कॉल सेंटर भी खोले गए। कंपनी ने फूड बाज़ार में भी अपने कदम बढ़ाए हैं। भारत के साथ ही आज कंपनी तमाम देशों में अपना कारोबार कर रही है। करीब 25 सौ करोड़ के टर्नोवर वाली इस कंपनी के पास आज हजारों कर्मचारी भी हैं।
Edited by Ranjana Tripathi