हाथ में पोस्टर लिए प्रसिद्ध होने वाली डीयू की स्टूडेंट गुरमेहर कौर की कहानी
'फ्री स्पीच' की वकालत करने वाली गुरमेहर 'टाइम' मैगजीन की 2017 के 'नेक्स्ट जेनरेशन लीडर्स' की सूची में भी शामिल हो चुकी हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस सूची में गुरमेहर एकमात्र भारतीय हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी बरकरार रखने के लिए जालंधर के शहीद मेजर मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर कौर 'द फ्यूचर टैलेंट सुसाइटी' नामक संस्था चलाती हैं। वह कहती हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था।
गुरमेहर इसी साल फरवरी में पहली बार उस वक्त देश-दुनिया की सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने दिल्ली के रामजस कॉलेज में अपने साथियों के साथ हिंसा की मुखालफत की थी।
गुरमेहर अपने ब्लॉग पर लिखती हैं कि 'मुझे किताबों का शौक है। मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है और मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके।'
गुरमेहर कौर कहती हैं - 'मुझे किताबों का शौक है। मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है और मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके। मैं आदर्शवादी हूं। ऐथलीट हूं। शांति की समर्थक हूं। मैं युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं। मैं युद्ध इसलिए नहीं चाहती क्योंकि मुझे उसकी क़ीमत का अंदाज़ा है।' इस माह 01 दिसबंर को जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा दिल्ली आए थे, तो 'ओबामा फाउंडेशन' के कार्यक्रम में शामिल होने वाले भारतीय युवाओं में एक गुरमेहर कौर भी प्रमुखता से शामिल किया गया था। 'फ्री स्पीच' की वकालत करने वाली गुरमेहर 'टाइम' मैगजीन की 2017 के 'नेक्स्ट जेनरेशन लीडर्स' की सूची में भी शामिल हो चुकी हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस सूची में गुरमेहर एकमात्र भारतीय हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी बरकरार रखने के लिए जालंधर के शहीद मेजर मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर कौर 'द फ्यूचर टैलेंट सुसाइटी' नामक संस्था चलाती हैं। वह कहती हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था।
आज कुछ लोग उसे दबाने में जुटे हैं। उनको बेनकाब करने की जरूरत है। एक राष्ट्रीय अभियान चलाकर देश के हर युवा को इससे जोड़ा जाना जरूरी है। इसलिए उन्होंने 'द फ्यूचर टैलेंट सोसाइटी' का गठन किया है। वह 'रिस्पोंसिबल फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन फर्म' से भी जुड़ी हैं, जहां युवाओं को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है। गुरमेहर कहती हैं कि किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं। गुरमेहर इसी साल फरवरी में पहली बार उस वक्त देश-दुनिया की सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने दिल्ली के रामजस कॉलेज में अपने साथियों के साथ हिंसा की मुखालफत की थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर प्लेकार्ड पकड़े एक पोस्टर शेयर किया था जिसमें लिखा था- 'मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हूं। मैं एबीवीपी से नहीं डरती। मैं अकेली नहीं हूं।' गुरमेहर का जैसे ही वह पोस्टर वायरल हुआ, उनका पिछले साल का वह पुराना विडियो भी शेयर होने लगा था, जिसमें प्रसारित प्लेकार्ड पर उन्होंने लिखा था- 'पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, युद्ध ने उन्हें मारा।' इसके बाद उन्हें रेप और मारने की धमकी मिलने लगी। उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया। यह प्रकरण राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया।
टाइम मैगजीन ने उनके हवाले से लिखा- 'मैं क्यों चुप रहूं? मुझे ऐसा करने के लिए नहीं कहा गया, लेकिन मुझे सामने रखा गया, तब मैंने महसूस किया कि लोग मुझे सुनना चाहते हैं। अगर मेरे पास कुछ सकारात्मक कहने को है, तो फिर मैं क्यों न कहूं?' गुरमेहर कौर कहती हैं कि 'मेरे पहले ब्लॉग का शीर्षक है 'आई ऐम'। यानी मैं कौन हूं? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब मैं पहले तक अपने हंसमुंख अंदाज में दे सकती थी लेकिन अब मैं पक्के तौर पर ऐसा नहीं कह सकती। क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं? क्या मैं वैसी हूं जैसा चित्रण मेरा मीडिया में होता है? क्या मैं वो हूं जो सिलेब्रिटीज़ मेरे बारे में सोचते हैं? नहीं, मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती।
अपने हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए हुए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टेलीविज़न स्क्रीन पर फ्लैश होते देखा होगा, वह निश्चित तौर पर मुझ सी दिखती है। उसके विचारों की उत्तेजना, जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित तौर पर उनमें मेरी झलक है। वह उग्र होकर कहती हैं, मैं उससे भी सहमत हूं लेकिन 'ब्रेकिंग न्यूज़ की सुर्खियों' ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई। मैं वो सुर्खियां नहीं हूं- शहीद की बेटी...शहीद की बेटी....शहीद की बेटी! मैं अपने पिता की बेटी हूं। मैं अपने पापा की गुलगुल हूं। मैं उनकी गुड़िया हूं। मैं दो साल की वह कलाकार हूं, जो शब्द तो नहीं समझती लेकिन उन तीलियों की आकृतियां समझती है, जो उसके पिता उसे पुकारने के लिए बनाया करते थे। मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं। राय रखने वाली, बेतहाशा और मूडी बच्ची, जिनमें मेरी मां की भी छाया है। मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं और बड़े मैचों से पहले बहस करने वाली उसकी साथी। मैं क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वो लड़की हूं, जो अपने शिक्षकों से किसी भी बात पर बहस करने लगती है, क्योंकि इसी में तो साहित्य का मज़ा है। मुझे उम्मीद है कि मेरे दोस्त मुझे पसंद करते हैं। वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है लेकिन चुनिंदा दिनों में यह कारगर भी है। किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं।'
गुरमेहर अपने ब्लॉग पर लिखती हैं कि 'मुझे किताबों का शौक है। मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है और मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके। मैं आदर्शवादी हूं। ऐथलीट हूं। शांति की समर्थक हूं। मैं आपकी उम्मीद के मुताबिक उग्र और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं। मैं युद्ध इसलिए नहीं चाहती क्योंकि मुझे इसकी क़ीमत का अंदाज़ा है। ये क़ीमत बहुत बड़ी है। मेरा भरोसा करिए, मैं बेहतर जानती हूं क्योंकि मैंने रोज़ाना इसकी क़ीमत चुकाई है। आज भी चुकाती हूं। इसकी कोई क़ीमत नहीं है अगर होती तो आज कुछ लोग मुझसे इतनी नफ़रत न कर रहे होते।
न्यूज़ चैनल चिल्लाते हुए पोल करा रहे थे, "गुरमेहर का दर्द सही है या ग़लत?" हमारी तक़लीफों का क्या मोल है? अगर 51 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि मैं ग़लत हूं तो मैं ज़रूर गलत होऊंगी। इस स्थिति में भगवान ही जानता है कि कौन मेरे दिमाग को दूषित कर रहा है। पापा मेरे साथ नहीं हैं; वह पिछले 18 सालों से मेरे साथ नहीं है। 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे छोटे से शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए- मौत, पाकिस्तान और युद्ध। ज़ाहिर है, कुछ सालों तक मैं इनका छिपा हुआ मतलब भी नहीं समझ पाई थी। छिपा हुआ इसलिए कह रही हूं क्योंकि क्या किसी को भी इसका मतलब पता है? मैं अब भी इनका मतलब ढूंढने की कोशिश कर रही हूं।
'मेरे पिता एक शहीद हैं लेकिन मैं उन्हें इस तरह नहीं जानती। मैं उन्हें उस शख्स के तौर पर जानती हूं जो कार्गो की बड़ी जैकेट पहनता था, जिसकी जेबें मिठाइयों से भरी होती थीं। मैं उस शख्स को जानती हूं जो मेरी नाक को हल्के से मरोड़ता था, जब मैं उसका माथा चूमती थी। मैं उस पिता को जानती हूं जिसने मुझे स्ट्रॉ से पीना सिखाया, जिसने मुझे च्यूइंगम दिलाया। मैं उस शख्स को जानती हूं जिसका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी ताकि वो मुझे छोड़कर न चले जाएं। वो चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए। मेरे पिता शहीद हैं। मैं उनकी बेटी हूं लेकिन, मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं। पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, बल्कि जंग ने मारा है।'
यह सब लिखने वाली गुरमेहर के नाम एक दिन पाकिस्तान से चिट्ठी आती है तो वह फिर सुर्खियों में आ जाती हैं। इस तरह उनका संघर्ष आज भी जारी है। गुरमेहर की मुहिम ‘मैं एबीवीपी से नहीं डरती’ को देश के कई विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों का भारी समर्थन मिल चुका है। साथ ही, उन्हें काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा है जिनमें क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, अभिनेता रणदीप हुड्डा आदि भी रहे हैं। सदी के नायक अमिताभ बच्चन भी मीडिया के एक सवाल पर कह चुके हैं- 'अगर आप सोशल मीडिया पर रहते हैं तो ट्रोल और गालियों के लिए तैयार हो जाइए। मुझे तो वहां मज़ा आता है। गुरमेहर के मामले में मेरी निजी सोच है, अगर इसे साझा करूंगा तो मेरी राय सार्वजनिक हो जाएगी।'
गुरमेहर की मां राजविंदर कौर कहती हैं कि उनकी बेटी ने कुछ गलत नहीं कहा है। उसके बयान पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। वो एक बच्ची है, उसकी भावनाएं सच्ची हैं जिसकी लोगों को कद्र करनी चाहिए। गुरमेहर ने बहुत संजीदगी से अपनी बात वीडियो के जरिए पहले भी कही थी और अब भी कही है। उनका मानना है कि गुरमेहर ने अपने वीडियो में शांति का संदेश दिया है और उसकी बात को उसी ढंग से लेना चाहिए।
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