पंजाब के इस शख्स ने खड़ी की 1 बिलियन डॉलर की सोलर कंपनी, अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में हुई लिस्टेड
इंद्रप्रीत ने जीएनडीयू पंजाब में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद यूसी बर्कले स्थित हास स्कूल ऑफ बिजनेस से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। जलवायु परिवर्तन पर वृत्तचित्र से प्रभावित होकर इंद्रप्रीत ने कृषि, पानी या स्वच्छ ऊर्जा में व्यवसाय करने के लिये हाथ आजमाए।
न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध उनकी यह कंपनी आज की तारीख में राजस्थान, पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश समेत देश के कुल 23 राज्यों में सौर परियोजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित कर रही है।
इंद्रप्रीत वाधवा ने वर्ष 2008 में भारत में प्रचुर मात्रा में मौजूद सौर ऊर्जा में असीम संभावनाओं को देखा और उसका उपयोग करने के उद्देश्य से अजूर पावर की स्थापना की। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध उनकी यह कंपनी आज की तारीख में राजस्थान, पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश समेत देश के कुल 23 राज्यों में सौर परियोजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित कर रही है।
2006 में तैयार हुए एक अमरीकी वृत्तचित्र ‘‘एन इनकन्वीनिएंट ट्रुथ’’ ने बढ़ती ग्लोबल वार्निंग के मुद्दे को उठाया। इस वृत्तचित्र में ध्यान देने और अपनाने लायक कई बातें थीं जिन्होंने कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और इन्हीं लोगों में एक थे उस समय सिलिकॉन वैली में सॉफ्टवेयर पेशेवर के रूप में कार्यरत 34 वर्षीय इंद्रप्रीत वाधवा।
इंद्रप्रीत ने अपनी नौकरी को अलविदा कहा और सतत हरित ऊर्जा का लाभ उठाने के तरीकों को तलाशने का फैसला किया। उन्होंने वर्ष 2008 में अजूर पावर ग्लोबल लिमिटेड की स्थापना की। स्थापना के एक वर्ष के भीतर ही नई दिल्ली स्थित अजूर पावर ने पंजाब में पहला भारतीय प्राईवेट यूटिलिटी- स्केल सोलर प्रॉजेक्ट स्थापित किया। आज की तारीख में इनके पोर्टफोलियो में 23 राज्यो में 3 जीडब्लू का वितरण शामिल होने के अलावा इनकी कंपनी ऊर्जा एवं पर्यावरण डिजाइन (लीड) वी4 कॉमर्शियल इंटीरियर्स के सर्वोच्च मूल्यांकित प्लैटिनम सर्टिफिकेशन भी प्राप्त कर चुकी है।
वर्ष 2016 में इनकी कंपनी अमरीका में आईपीओ लाने वाली पहली भारतीय ऊर्जा कपनी बनी और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई। योरस्टोरी के साथ बातचीत में अमृतसर में पले-बढ़े इंद्रप्रीत सौर ऊर्जा के बढ़ते हुए क्षेत्र और 145 मिलियन डॉलर की कंपनी को खड़ा करने की यात्रा के बारे में बता रहे हैं।
शुरुआत
इंद्रप्रीत ने जीएनडीयू पंजाब में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद यूसी बर्कले स्थित हास स्कूल ऑफ बिजनेस से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। जलवायु परिवर्तन पर वृत्तचित्र से प्रभावित होकर इंद्रप्रीत ने कृषि, पानी या स्वच्छ ऊर्जा में व्यवसाय करने के लिये हाथ आजमाए। वे कहते हैं, 'कुछ प्रारंभिक शोध के बाद ही मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि भारत में पवन ऊर्जा बड़े पैमाने पर सिर्फ तटीय क्षेत्रों में ही विकसित की जा रही है और इसमें हर घर में पहुंचने की क्षमता नहीं है। इसके बाद मैंने हाइड्रो के क्षेत्र में अध्ययन किया और पाया कि इसमें काफी सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चुनौती मौजूद हैं। इसके अलावा मुझे लगा कि बायोमास के क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावनाएं न के बराबर हैं क्योंकि बायोफ्यूल/जैव ईंधन के लिये कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना काफी मुश्किल काम है। कमोबेश ऊर्जा का एक महंगा स्त्रोत होने के बावजूद सौर ऊर्जा का मामला मुझे ठीक लगा।'
इंद्रप्रीत को अहसास हुआ कि सूर्य की रोशनी की प्रचुर मात्रा मौजूद होने के बावजूद भारत सौर ऊर्जा का उपयोग करने के मामले में दुनिया से काफी पिछड़ रहा था। वे कहते हैं, 'भारत में कृषि के लिये ऊर्जा की मांग काफी अधिक है। गांवों में लोग अपने खेतों में रात में सिर्फ इसलिये पानी लगाते हैं क्योंकि उस समय सस्ती बिजली मिलती है लेकिन अलग इन्हें दिन के समय ही सस्ती बिजली मिले तो किसान असल में और अधिक काम करने में सक्षम हो सकेंगे।'
व्यापार को स्थापित करना
इंद्रप्रीत ने अपने पिता के साथ अपने इस विचार को साझा किया जो पहले नेश्नल इंश्योरेंस कंपनी के साथ काम करते थे। उनके पिता को लगा कि उनके पास पूंजी और विशेषज्ञता, दोनों ही नहीं हैं। वे याद करते हुए कहते हैं, 'उन्होंने मुझे बताया कि मैं असफल होने जा रहा हूं। मेरे पास उनके तमाम सवालों को कोई जवाब नहीं था लेकिन मैंने सोचा कि अगर मैं इस काम को स्थापित करने में सफल रहा तो एक दिन जरूर उन्हें अपने साथ काम करने के लिये आमंत्रित करूंगा।'
जल्द ही इंद्रप्रीत को पता चला कि भारत में सौर ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने संबंधित कोई नीति ही नहीं है। इसका सीधा मतलब था कि अगर उन्हें व्यापार शुरू करना है तो हर राज्य से संपर्क करना पड़ेगा। ऐसे में स्पष्ट रूप से उनका गृह राज्य पंजाब उनकी पहली पसंद होना था। कोई समर्थन न मिलते देख इंद्रप्रीत ने अमेरिका के अपने संबंधों की सहायता लेने का फैसला किया। संयोग से यह वह समय था जब ऊर्जा विभाग सहित अन्य शासी निकाय भारत में बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं के संचालन पर विचार कर रहे थे। उनकी पहली बड़ी परियोजना के लिये पहला निवेश 6.2 मिलियन डॉलर का था जो वर्ष 2008 में ओवरसीज प्राइवेट इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन (ओपीआईसी) से मिला था।
इंद्रप्रीत ने पंजाब के अवान नामक गांव में अपनी पहली परियोजना की नींव डाली उन्होंने स्थानीय लोगों से संपर्क किया और उस पंचायत भूमि को अपने लिये चुना जो बिल्कुल बंजर और अप्रयुक्त थी। वे बताते हैं, 'इसके बाद अगला कदम स्थानीय लोगों को अपने विश्वास में लेना था जिन्होंने 5,000 रुपये प्रति एकड़ का वार्षिक किराया प्रस्तावित किया था। हमनें उन्हें बताया कि हम दोगुनी रकम देंगे और साथ ही तीन साल के किराये का अग्रिम भुगतान करेंगे। अगली रुकावट थी सरकारी मंजूरी लेने की। ऐसी एक छोटी परियोजना के लिये आवश्यक अनुमदनों की संख्या दिमाग को हिलाने वाली थी। हमें इस समूची प्रक्रिया को पूरा करने में एक वर्ष का समय लगा।' इसके बाद टीम ने अपना काम शुरू किया लेकिन परेशानियों ने हमारा दामन नहीं छोड़ा।
इंद्रप्रीत कहते हैं, 'जिला उस समय पंचायत चुनावों की दिशा में आगे बढ़ रहा था और उसके बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव प्रस्तावित थे। इसका सीधा मतलब यह था कि हमारी फाइलों का एक बड़ा हिस्सा और स्वीकृतियों सहित मजदूर लंबे समय के लिये फंस गए। हमें दोबारा गति पकड़ने में कुछ महीनों का समय लगा।'
इसके बाद अगली चुनौती थी तकनीकी एकीकरण। परियोजना के लिये आवंटित जमीन के बीच से रेल की पटरियां गुजरती थीं। निर्धारित समय सीमा कुछ ही दिन पहले भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने अनिवार्य सरकारी मंजूरियां न मिलने का हवाला देकर हमारी परियोजना को रोक दिया। वे कहते हैं, 'मैं दिल्ली में भातीय रेलवे पहुंच गया। आखिरकार हमें करीब 3 से 4 किलोमीटर की दूरी तक रेल की पटरियों के दोनों तरफ परियोजना को तैयार करने की मंजूरी मिल गई।'
इसके बाद से ही कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। आज अजूर पावर भारत की अग्रणी सौर ऊर्जा सेवा प्रदाता है। इनके पोर्टफोलियो में 23 राज्यो में 3 जीडब्लू का वितरण वह भी राज्य सरकारों की साझेदारी के माध्यम से। वर्ष 2009 में कंपनी पंजाब में 17.91 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली बेच रही थी। आज इसके करीब एक दशक बाद इनकी सबसे कम कीमत 2.48 रुपये प्रति यूनिट है, जो कमीशन्ड तो नहीं है लेकिन राजस्थान में तैयार की जा रही है।
वर्ष 2017 में, इन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती विद्युतीकरण समाधान प्रदान करने के लिये अजूर एम-पावर सॉल्यूशंस के तहत माइक्रो और मिनी-ग्रिड सेगमेंट में प्रवेश किया। माइक्रोग्रिड बाजार के लाभों को बढ़ाने के लिए, कंपनी ने लंबी अवधि के लिये पीपीए और टिकाऊ क्रेडिट मॉडलों के माध्यम से साझेदारी के लिए दरवाजे खुले रखे हैं।
क्या भविष्य वास्तव में उज्जवल है?
आज अजूर पावर में 600 कर्मचारी काम कर रहे हैं। यह कई राज्य सरकारों के साथ भागीदारी में परियोजनाओं को निष्पादित करता है। इनकी अन्य सेवाओं में एकीकृत परियोजना विकास, ईपीसी, वित्त पोषण, और ओएंडएम सेवाएं शामिल हैं। 2009 में जबइन्होंने अपनी पहली 2 मेगावाट क्षमता तैयार की, तो यह ऐसी पहली निजी उपयोगिता-स्केल परियोजना बन गई जिसे देश के किसी भी निजी खिलाड़ी द्वारा निष्पादित किया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि यह एक फोटोवोल्टिक पावर स्टेशन में बड़े पैमाने पर बिजली उत्पन्न कर सकता है जिसे बड़े पैमाने पर 'उपयोगिता-पैमाने' या केंद्रित सौर ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
बीते एक दशक में देश में सफल व्यवसाय खड़ा करने के बाद इंद्रप्रीत का कहना है कि सरकार की अपनी कुछ सीमाएं हैं। इनमें सीमित मात्रा में मौजूद धन के अलावा ध्यान केंद्रित करने की सीमित क्षमता शामिल है क्योंकि सरकार के सामने कई अन्य सामाजिक-आर्थिक समस्याएं मौजूद रहती हैं। इंद्रप्रीत का कहना है कि भारतीय निवेशकों ने ऊर्जा क्षेत्र को उतना ही नहीं समझा, जितना अमेरिका में किया गया था और इसी वजह से जब वर्ष 2016 में अजूर पावर ने आईपीओ के लिए अमेरिका में अर्जी लगाई, तो जिससे उन्हें अधिक विदेशी निवेश जुटाने में भी अधिक मदद मिली। लेकिन उनका मानना है कि इस व्यवसाय में नकारात्मक से अधिक सकारात्मकता है।
इंद्रप्रीत कहते हैं, 'इस क्षेत्र में, 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति है और पारदर्शी रिवर्स का विकल्प भी है। यह समाज में पूरी तरह से एक सकारात्मक योगदान देता है क्योंकि हम सस्ती दर पर बिजली बेच रहे हैं और जमीनों के पट्टे के माध्यम से स्थानीय निवासियों के लिए नकद प्रवाह बना रहे हैं। हम सरकार के राजस्व में वृद्धि कर रहे हैं, चालू खाता घाटे को कम कर रहे हैं, और रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं।'
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