लोगों की मर चुकी हॉबीज को ट्रैवेल के बहाने फिर जगा रहा है ये स्टार्टअप
'ट्रैवेलट्रूवेल' एक ऐसा स्टार्टअप जो खुला आसमान देगा अापकी खो चुकी हॉबीज़ को...
वो चीजें, वो शौक जो कभी लोगों के दिल के सबसे करीब थे, आज कम वक्त के चक्कर में पीछे छूटते जा रहे हैं। अपनी जिंदगी में उन पसंदीदा कामों की कमी उन्हें सालती रहती है। काम की एकरसता के बीच वो कुढ़ते रहते हैं, चिड़चिड़ाते रहते हैं, लेकिन इस रूटीन जिंदगी को फिर लहलहाता हुआ बनाने का उन्हें रास्ता नजर नहीं आता। ऐसे में आईये थोड़ा करीब से जानें "ट्रैवेलट्रूवेल" के बारे में, क्या पता ये आपकी ज़िंदगी के खालीपन को भर दे...
उनको इस रास्ते तक खींचकर ला रहा दिल्ली बेस्ड स्टार्टअप "ट्रैवेलट्रूवेल"। ये परिकल्पना है अरुणिमा गोरित्रा की। अरुणिमा एक मॉस कॉम स्टूडेंट रह चुकी हैं। वो बखूबी जानती हैं कि लोगों से किस तरह संवाद स्थापित करना है और उनके भीतर की बात खोदकर निकालनी है।
कहा जाता है, अपने शौक को ही अपनी नौकरी बना लेना चाहिए तो काम सजा न बनकर मजा बन जाता है। लेकिन असल में होता क्या है, हम कॉलेज की मौज-मस्ती के बाद नौकरी करने जाते हैं तो प्रोजेक्ट के बोझ तल दबने लगते हैं। डेडलाइन पूरा करने के चक्कर में लोग जिंदगी जीना भूलते जा रहे हैं। वो चीजें, वो शौक जो कभी लोगों के दिल के सबसे करीब थे, आज कम वक्त के चक्कर में पीछे छूटते जा रहे हैं।
अपनी जिंदगी में उन पसंदीदा कामों की कमी उन्हें सालती रहती है। काम की एकरसता के बीच वो कुढ़ते रहते हैं, चिड़चिड़ाते रहते हैं। लेकिन इस रूटीन जिंदगी को फिर लहलहाता हुआ बनाने का उन्हें रास्ता नजर नहीं आता। उनको इस रास्ते तक खींचकर ला रहा दिल्ली बेस्ड एक स्टार्टअप ट्रैवेलट्रूवेल।
ट्रैवेलट्रूवेल परिकल्पना है अरुणिमा गोरित्रा की। अरुणिमा एक मॉस कॉम स्टूडेंट रह चुकी हैं। वो बखूबी जानती हैं कि लोगों से किस तरह संवाद स्थापित करना है और उनके भीतर की बात खोदकर निकालनी है। ट्रैवेलट्रूवेल के जरिए वो लोगों को घुमाने ले जाती हैं और उस खूबसूरत जगह पर लोगों की हॉबी को फिर से जगाने के लिए कई तरह के रोचक सेशन करवाती हैं। उनकी हर एक ट्रिप किसी न किसी हॉबी को समर्पित होती है।
जैसे कि किताबें पढ़ना पसंद करने वाले ग्रुप को घुमाने ले जाया गया और वहां पहुंचकर सब अपनी मनपसंद किताबें पढ़ रहे हैं, दूसरों को पढ़ा रहे हैं, उस पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही घूम भी रहे हैं। कितना फेयरीटेल जैसा लगता है न सब। बिल्कुल ही मजेदार और सुहावना। अलग-अलग जगहों से आए बेहतरीन लोग साथ में घूमने जा रहे हैं, कोई कविता कह रहा है, कोई साइकिल की सवारी के लिए तैयार बैठा है, कोई कहानी सुना रहा है।
इसके अलावा अरुणिमा यहीं शहर में भी ऐसे हॉबी सेशन करवाती हैं। जिससे जुड़कर लोग अपनी मर चुकी हॉबीज को जिंदा कर रहे हैं और अपनी जिंदगी को और खुशनुमा बना रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये सब हॉबीज को तो घर पर रहकर ही फिर से जिंदा किया जा सकता है।
आप ईमारदारी से बताइए कि आपने कितनी बार सोचा होगा कि अपने पैक करके रख दिए गए गिटार को फिर से निकाला जाए और खूब सारा गाना गाया जाए लेकिन अपनी इस भागादौड़ी में आप अपनी उस सोच को इग्नोर ही करते रहे। यही होता है, ऐसे ही आपकी खुशियों को बढ़ाने वाले आपके शौक पीछे छूटते जाते हैं। पर जब आप अपनी ही तरह के शौक रखने वाले और लोगों से एक बिल्कुल ही अलग माहौल में मिलते हैं तो सब नया सा लगने लगता है और आप अपने शौक को फिर गले लगाने लगते हैं।
योरस्टोरी से बातचीत में अरुणिमा ने बताया कि अप्रैल, 2016 में एक दिन ऐसे ही हम सब परिवार वाले डिनर टेबल बैठे थे और बतिया रहे थे। मुद्दा ये गरमाया था कि हम लोग जिन चीजों को करना पसंद करते हैं, उनको करने का तो वक्त ही नहीं हमारे पास। क्या फायदा ऐसी तरक्की का, ऐसे कामकाम का। सुबह को उठते ही केवल भागादौड़ी। जिंदगी के प्रति हमारा ये रवैया अनवरत बढ़ता ही जा रहा है। इतने सारे गैजेट हो गए हैं कि असल जिंदगी के मजे लेना ही भूल जाते हैं।
लंबी चली इस बातचीत का निष्कर्ष ये निकला कि हमें मरती जा रही इन हॉबीज पर दोबारा ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। साथ ही बाकी लोगों की मदद करनी चाहिए ताकि उनकी भी जिंदगी में दोबारा से वो रस भर जाए। यहीं से ट्रैवेलट्रूवेल ने जन्म लिया।
भविष्य में ट्रैवेलट्रूवेल की प्लानिंग है कि पूरे देश में ऐसी शौक भरी यात्राएं हों, और भी ऐसे सत्र हों और लोगों की पहुंच ज्यादा से ज्यादा बढ़े। वो हर व्यक्ति जो खुद के लिए समय निकालने में सक्षम नहीं है, उस तक मदद पहुंचे, यही हैं अरूणिमा का सपना।
अरुणिमा बताती हैं, हमारे साथ यात्रा करने वाले लोगों को अपनी विशेष रुचियों को पूरा करने के लिए हम प्रोत्साहित करते रहते हैं। वो लोग भी खुल जाते हैं और विभिन्न तरीकों से अपनी प्रेरक स्मृतियां सबके साथ साझा करते हैं। जब हम देखते हैं कि हमारे ट्रिप और सेशन में शामिल हुए लोगों ने बाद में भी अपने शौकों को समय देना जारी रखा, तो वो हमारे लिए किसी पुरस्कार सरीखा होता है।
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