मिलिए पुरुषों की दुनिया में कदम से कदम मिलाकर चल रहीं महिला बाउंसर्स से
कई महिला बाउंसर नाइट क्लब में पुरुषों के साथ काम कर रही हैं। वे महिलाओं की चेकिंग करने से लेकर क्लब में व्यवस्था बनाये रखने तक का सब काम कर रही हैं। पब में दारू पिए हुए लोगों के झगड़ों को निपटाना, तोड़फोड़ करने वाले कस्टमर्स से निपटना इन महिलाओं को अच्छे से आता है।
शर्मिला ने 2005 में बाउंसर के रूप में काम करना शुरू किया लेकिन अब बढ़ती उम्र के कारण वे बहुत सारे सामाजिक कार्यों में शामिल होती रहती हैं। उन्हें अपने क्षेत्र में 'जिला अध्याक्ष' के रूप में नियुक्त किया गया है।
बाउंसर का पेशा भारत में महिलाओं के हिसाब से अजीबोगरीब पेशा माना जाता है। लेकिन अब इस पेशे में कई महिलाएं हैं जो इस स्टीरियोटाइप को तोड़ रही हैं। कई महिला बाउंसर नाइट क्लब में पुरुषों के साथ काम कर रही हैं। वे महिलाओं की चेकिंग करने से लेकर क्लब में व्यवस्था बनाये रखने तक का सब काम कर रही हैं। पब में दारू पिए हुए लोगों के झगड़ों को निपटाना, तोड़फोड़ करने वाले कस्टमर्स से निपटना इन महिलाओं को अच्छे से आता है। Life Beyond Numbers ने पुणे की दो महिला बाउंसर्स से बात की जो किसी योद्धा से कम नहीं हैं। वे क्लबों में महिलाओं का ख्याल रखती हैं, और जब भी उन्हें जरूरत होती है ये महिला बाउंसर्स उनके साथ खड़ी होती हैं ताकि वे अपने उन मजेदार लम्हों के दौरान असुरक्षित महसूस न करें।
कविता भीमा गायकवाड़
एक दशक से इस पेशे में मौजूद पुणे के पिंपरी में डिलक्स चौक की रहने वाली 32 वर्षीय कविता भीमा गायकवाड़ कहती हैं, "अपना काम मारना नहीं, बचाना होता है।" शराब पी हुई महिलाओं को उनकी कारों में ले जाने से लेकर उनके हाथ पकड़कर सहारा देने तक सब कुछ कविता बड़ी ही विनम्रता के साथ करती हैं। 109 किलो वजन और 5'8 की लंबाई वाली कविता कहती हैं, "लोग मुझसे डरते हैं। मेरे से भिड़ते नहीं हैं। मेरी फिजिक का मुझे एडवांटेज मिलता है। मेरी फिजिक के चलते मुझे अनावश्यक समस्याओं का सामना नहीं करना होता है।" दिसंबर 2010 में शादी कर चुकीं कविता से उनके परिवार के बारे में पूछे जाने पर, वह कहती हैं, "मेरे परिवार ने कभी मेरे बाउंसर बनने के आइडिया का विरोध नहीं किया, बल्कि उन्होंने इसका समर्थन किया। मेरे पति भी मेरी पसंद के बारे में कुछ नहीं कहते हैं।"
लाइफबियॉन्डंबर्स से बात करते हुए एक क्लब में हुई उस घटना को याद करते हुए कविता कहती हैं, "पिछले साल, जब मैं एक क्लब में बाउंसर के रूप में कार्यरत थी, तब 13 पुरुषों का एक ग्रुप एक महिला को चिढ़ा रहा था और देखते-देखते जल्द ही वो झगड़े में बदल गया। वे लोग बोतलें पटकने लगे। गालियां देने के साथ-साथ वे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। कई लोग घायल हो गए। तब मैंने उस महिला और उसके दोस्त को इन पुरुषों के झुंड से अलग कर उन्हें घर भेजने का काम किया।"
कविता आगे बताती हैं, "देर रात करीब 2 बजे समस्या यह रहती है कि पुरुष बाउंसर क्लब के एंट्री गेट पर खड़े होते हैं, शायद ही कभी कोई अंदर मौजूद होता है, ऐसे समय जब लोग हमें सुनने के लिए तैयार नहीं होते हैं और हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो हमारे पास उन्हें मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। प्यार से दादा, भाउ, मामा बोलके समझाते हैं। नहीं मानते हैं तो एक दो लगाना पड़ता है। कोई भी महिला उनकी संपत्ति नहीं है, तो किसी को भी सहन क्यों करना चाहिए।"
एक दूसरी घटना के बारे में वे बताती हैं कि करीब 6-7 महीने पहले होली के दौरान, उपद्रवी लोगों के ग्रुप ने क्लब में एंट्री की और वे महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने लगे। "जब मैंने देखा कि स्थिति काबू से बाहर है, तो मैंने इन महिलाओं को वहां से बाहर निकलना ही उचित समझा क्योंकि झगड़ा मारतोड़ में बदल गया था।" वह कहती हैं, "मेरे बॉस ने भी सभी महिलाओं को सही सलामत बाहर निकालने के मेरे प्रयास की सराहना की।" कविता आगे बताती हैं, "मान लीजिए कि एक लड़की मेरे पास आती है और कहती है कि एक और लड़की मेरे प्रेमी को छू रही है, उसे इस क्लब से बाहर निकाल दो- तो हम ऐसा नहीं कर सकते, हम ऐसा काम नहीं करते हैं।"
बाउंसर होने के अलावा, कविता एक सिक्योरिटी गार्ड भी हैं। वह वर्तमान में भवानी पेठ में एक आवासीय परिसर में गार्ड हैं जहां वह विवादित संपत्ति की देखभाल करने की प्रभारी है। वे कहती हैं, "मुझे इन लोगों के लिए नियम और शर्तों को समझाना है, अगर वे पालन नहीं करते हैं, तो मुझे आवश्यक कदम उठाने होंगे।" कविता उमेश वासबे के अधीन प्रशिक्षण ले रही हैं, जिन्हें वह अपना गुरु भी मानती हैं। वे कहती हैं, "मैं आज जो कुछ भी हूं, उनके कारण ही हूं। उन्होंने ही मुझे ढूंढ़ा और बाउंसर के पद के लिए अलग-अलग क्लबों में मेरा नाम सुझाया था। "
अंत में कविता कहती हैं, "चाहें बाउंसर बनो, सुरक्षा गार्ड या बॉडीगार्ड, जिसे भी आप पेशे के रूप में चुनें, उस पेशे में कूदने से पहले अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। मुझे एक सेलिब्रिटी इवेंट के लिए हायर किया गया था, लेकिन मैंने बाउंसर्स और सुरक्षा गार्ड के तौर पर भी काम किया है। ड्यूटी में कभी-कभी डैंजर होता है कुछ लोगों को संभालने में पर, मैं नहीं डरती।"
शर्मिला प्रफुल क्रिस्टी
50 वर्षीय शर्मिला पुणे में ताडियावाला रोड के एक घर में रहती हैं। उनके पास बताने के लिए कई सारे दिलचस्प किस्से हैं। वे कहती हैं, "हमारे पेशे में बहुत सारे जोखिम हैं और हमें किसी समस्या को हल करते समय खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखना होता है। मैं पुणे में 36 साल से रह रही हूं। मैं विवाहित नहीं हूं और मैं अपने खर्चे खुद से उठाती हूं।" शर्मिला कहती हैं, "बाउंसर होने का मतलब यह नहीं है कि जब भी कुछ गलत हो है या जब कोई महिला शराब के नशे में अपना होश खो बैठे तो आप उसे बाहर निकाल दें या मारने लगें। कई बार मैंने फीमेल बाउंसर्स को महिलाओं के बाल पकड़कर खींचते हुए, या क्लबों में मारते हुए देखा है।"
10 डाउनिंग स्ट्रीट में काम करते समय, शर्मिला को ड्यूटी के दौरान कई बार कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। वे कहती हैं, "कभी-कभी, छोटे झगड़े होते हैं, कभी-कभी बड़े झगड़े होते हैं। हम इस तरह लोगों को मारना शुरू नहीं कर सकते हैं। हमें स्थिति को समझने और उसी के हिसाब से काम करने की आवश्यकता होती है। हां अगर समस्या ज्यादा बढ़ जाती है तो अन्य कर्मचारी और बाउंसर इस मामले को हल करने में हमारी सहायता के लिए आगे आते हैं।"
शर्मिला ने 2005 में बाउंसर के रूप में काम करना शुरू किया लेकिन अब बढ़ती उम्र के कारण वे बहुत सारे सामाजिक कार्यों में शामिल होती रहती हैं। उन्हें अपने क्षेत्र में 'जिला अध्याक्ष' के रूप में नियुक्त किया गया है। वे अपने क्षेत्र के विवादों को हल करती हैं, चाहे वह घरेलू हिंसा या नौकरी से संबंधित हो। वह बाउंसर इसलिए नहीं बनीं थीं कि उन्हें पैसे चाहिए थे बल्कि इसलिए बनीं थीं क्योंकि वे बाउंसर ही बनना चाहती थीं। इन महिला बाउंसर्स के लिए क्लब में आने वाली महिलाएं देवी लक्ष्मी के बराबर होती हैं। "यदि ये महिलाएं क्लब न आएं, तो लोग महिला बाउंसर्स को क्यों लगाएंगे? कविता कहती हैं, "हम उनके कारण कमाते हैं। इसलिए हम यह सुनिश्चित करते हैं कि वे जब भी यहां आएं तो सुरक्षित रहें।"
कविता पूरी तरह से इस बात को मानती हैं कि यदि कोई महिला दूसरे पेशे की जगह इस पेशे को अपनाती है, तो उसे नियमों को जानना चाहिए और जानना चाहिए कि फीमेल बाउंसर होने का क्या मतलब है। वे कहती हैं, "बाउंसर क्या हैं पहले ये पता करो। फिर इस पेशे में आओ।"
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