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जिंदगी का मतलब कोई इनसे सीखे: दृष्टिहीनता को मात देकर 37 साल में की पीएचडी

बेंगुलुरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी हासिल करने वाले पहले दृष्टिहीन व्यक्ति नागशेट्टी...

जिंदगी का मतलब कोई इनसे सीखे: दृष्टिहीनता को मात देकर 37 साल में की पीएचडी

Saturday February 10, 2018 , 3 min Read

9वीं कक्षा में जब नागशेट्टी की दूसरी आंख की रोशनी पूरी तरह से चली गई थी तो उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कलबुर्गी दृष्टिहीन विद्यालय में दाखिला लिया। जहां ब्रेल लिपी के जरिए पढ़ाई करने के बाद उन्हें 10वीं में 75 प्रतिशत नंबर मिले। इससे उन्हें और पढ़ने की प्रेरणा मिली। 

फोटो साभार- इंडियाटाइम्स

फोटो साभार- इंडियाटाइम्स


हाल ही में 37 वर्षीय नागशेट्टी को बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से कन्नड़ साहित्य में पीएचडी प्रदान की गई है। बताया जा रहा है कि बेंगुलुरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी हासिल करने वाले वे पहले दृष्टिहीन हैं।

दिव्यांगता किसी इंसान की कमजोरी नहीं होती बल्कि वह उससे ये साबित करने का मौका देती है कि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। 37 साल के नागशेट्टी ने इस मंत्र को साकार किया है। जन्म से ही एक आंख से दृष्टिहीन नागशेट्टी जब 15 साल के थे तो उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी अपने सपनों को नहीं छोड़ा। हाल ही में उन्हें बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से कन्नड़ साहित्य में पीएचडी प्रदान की गई है। बताया जा रहा है कि बेंगुलुरू यूनिवर्सिटी से पीएचडी हासिल करने वाले वे पहले दृष्टिहीन हैं।

कर्नाटक में चिंकोली कस्बे के पास एक दूरस्थ गांव शालेबीरनहल्ली से ताल्लुक रखने वाले नागशेट्टी अभी जेसी नगर में एक सरकारी कॉलेज में टीचर हैं। उन्होंने गुलबर्गा दृष्टिहीन विद्यालय से अपनी शुरुआती पढ़ाई की और फिर आश्रम में रहकर अपना ग्रैजुएशन किया। नागशेट्टी हमेशा से उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे और इसमें उन्होंने अपनी दृष्टिहीनता को कभी बाधा नहीं बनने दिया। उन्होंने कहा, 'मैं किसी तरह अपने सहपाठियों और बाकी लोगों की मदद से परीक्षा की तैयारी कर लेता था।' उन्होंने आदिचंचनागिरी कॉलेज से बीए और फिर उसके बाद पीजी किया।

नागशेट्टी ने 'कुवेंपु के साहित्यिक कार्य में अंतरदृष्टि' विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की। बीते गुरुवार को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें डिग्री प्रदान की गई। वे बताते हैं कि कई सारी किताबें ब्रेल लिपी में नहीं उपलब्ध होती थीं इसलिए वे लोगों से तेज स्वर में पढ़ने को कहते थे। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी में डॉ. सिद्धलिंगैया ने उन्हें पीएचडी करने को प्रेरित किया। वे कहते हैं, 'मैं आगे कन्नड़ साहित्य का अध्यापक बनना चाहूंगा और अधिक से अधिक लोगों को इस भाषा को सीखने को प्रेरित करूंगा।'

नागशेट्टी अपनी इस उपलब्धि पर बेहद खुश हैं। उन्होंने बताया कि बीते 9 सालों की मेहनत आखिर में रंग लाई उन्होंने कहा, 'इस पीएचडी को प्राप्त करने में मुझे छह साल लग गए। मैंने 2008 में अपना रजिस्ट्रेशन करवाया था और 2015 में अपनी थीसिस भी जमा कर दी थी। लेकिन पैनल में कुछ बदलाव हो रहे थे इसलिए अब जाकर मुझे डिग्री मिली है।' उन्होंने बताया कि स्कूल की किताबों से उन्हें कुवेंपु के बारे में मालूम चला था। उन्हें शुरू से ही कुवेंपु की साहित्यिक रचनाएं अपनी ओर आकर्षित करती थीं। इसीलिए पीएचडी में उन्होंने यह विषय चुना।

9वीं कक्षा में जब नागशेट्टी की दूसरी आंख की रोशनी पूरी तरह से चली गई थी तो उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कलबुर्गी दृष्टिहीन विद्यालय में दाखिला लिया। जहां ब्रेल लिपी के जरिए पढ़ाई करने के बाद उन्हें 10वीं में 75 प्रतिशत नंबर मिले। इससे उन्हें और पढ़ने की प्रेरणा मिली। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बेंगलुरु आ गए और यहां श्री वीरेंद्र पाटिल डिग्री कॉलेज में इतिहास, अर्थशास्त्र और कन्नड़ साहित्य में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने कन्नड़ में ही परास्नातक किया। लंबे समय की मेहनत के बाद उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की। बीते गुरुवार को विश्वविद्यालय के 53वें दीक्षांत समारोह में उन्हें डिग्री प्रदान की गई।

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