ग्रीन कारपेट से हरियाली फैला रही हैं मायना बताविया
“ग्रीन कारपेट” की देश भर में मौजूदगीएयरपोर्ट में दिखती है “ग्रीन कारपेट” की झलक
विकास की अंधी दौड़ में हम अपने आसपास की हरियाली को खत्म करते जा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको चिंता है अपने भविष्य की। यही कारण है कि वो इसे विकल्प के तौर पर लोगों के सामने ला रहे हैं। अगर आपने कभी हवाई यात्रा की हो तो दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू और हैदराबाद के हवाई अड्डों के भीतर सुंदर पौधे और हरियाली देखी होगी। ये संभव किया है ग्रीन कारपेट ने।
ग्रीन कारपेट एक ऐसा उपक्रम है जो फूलदान, बागीचों से जुड़ी कलाकृतियां, बागीचों में रखा जाने वाला फर्नीचर और फुलवारी का सामान प्रदान करता है। इसकी संस्थापक मायना बताविया हैं, जिनको ये ख्याल तब आया जब वो एक बच्चे की मां बनी। ग्रीन कारपेट शुरू करने से पहले मायना एक एचआर कंपनी चलाती थी लेकिन उसमें उनको काफी यात्राएं करनी पड़ती थी इसलिए उन्होने दूसरे विकल्पों की तलाश शुरू कर दी। ग्रीन कारपेट शुरू करने से पहले मायना अपने दोस्तों की बागवानी में मदद करती थी। हालांकि इसके लिए उन्होने कहीं से कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली थी। बागवानी के प्रति मायना के इस लगाव का परिवार वालों ने भी समर्थन किया और वो इनके काम मदद करने लगे।
जब उन्होने इस काम को शुरू किया तो वो सिर्फ लोगों को सलाह देने का काम करती थीं, वो लोगों को बगीचे सुंदर बनाने के टिप्स देती थी। एक दिन ट्रेड फेयर के दौरान उनकी मुलाकात दो जर्मन कंपनियों से हुई जो अच्छी क्वालिटी के फूलदान निर्यात करते थे। जिसके बाद वो भी इस कारोबार से जुड़ गई। मायना के बताती हैं,
“मैं दो जर्मन कंपनियों के लिए वितरक के तौर पर काम करने लगी, ऐसा करते हुए आगे बढ़ने के लिए मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता था कि मुझे पूरे भारत में अपनी मौजूदगी दर्ज करनी थी और ये काम मैंने साल 2006 से शुरू कर दिया।” आज ग्रीन कारपेट की देश भर में मौजूदगी है और इसके ज्यादातर ग्राहक बी2बी हैं। ये अपने काम को आर्किटेक्ट, विभिन्न सलाहकार और कंपनियों के माध्यम से करते हैं। ग्रीन कारपेट का बेंगलुरू में अपना शोरूम भी है। यहां आकर लोग ना सिर्फ बागवानी से जुड़ी चीजों को पसंद करते हैं बल्कि वो खरीदने के लिए अपना ऑर्डर भी दे सकते हैं।
शुरूआत में इस काम को करने में उनको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हालत ये हो गई की शुरूआती 6 से 8 महीनों के दौरान जर्मन कंपनियों के एक भी उत्पाद नहीं बिके। इसकी वजह थी ज्यादा दाम और लोगों में इनको लेकर जागरूकता की कमी। आज ग्रीन कारपेट की आय डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की हो गई है और ये कारोबार सालाना 20 से 22 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। एयरपोर्ट के अलावा ग्रीन कारपेट अपना सामान बिल्डर, होटल, विभिन्न आवासीय परिसरों को भी मुहैया कराता है। हालांकि ये क्षेत्र अभी काफी नया है बावजूद इसके ग्रीन कारपेट अपना कोई उत्पाद नहीं बनाता बल्कि वो जर्मनी, इटली, इंडोनेशिया, वियतनाम और थाईलैंड से अपने लिए उत्पाद आयात करता है। क्योंकि यहां पर इन चीजों की काफी मांग है। तो दूसरी ओर मायना का मानना है कि खुद ऐसे उत्पाद बनाने की जगह आयात करना ज्यादा आसान और सुविधाजनक है।
मुंबई और दिल्ली ग्रीन कारपेट के लिए बड़े बाजार हैं। यहां पर कंपनी ने कई बड़े कारपोरेट और आर्किटेक्ट के साथ समझौता किया हुआ है। बावजूद इसके ग्रीन कारपेट की मौजूदगी पूरे देश में है। खासतौर से मेट्रो शहरों में। अब इसकी नजर टीयर 2 और 3 शहरों पर है, जहां पर ग्राहक कुछ नया पाना चाहते हैं। इसके लिए कंपनी अपने लिये भागीदार तलाश रही है इसके लिए जो लोग ग्रीन कारपेट से जुड़ना चाहते हैं वो इसकी डीलरशिप ले सकते हैं। इसके अलावा चैन्नई और उत्तर पूर्व राज्यों पर भी कंपनी की नजर है जहां पर लोग बागवानी को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं होते। ग्रीन कारपेट अपने विस्तार के लिए ज्यादातर जनसंपर्क का इस्तेमाल करता है। मायना खुद कई अखबार और पत्रिकाओं में ग्रीन कारपेट से जुड़े लेख लिख लोगों में जागरूकता बढ़ाती हैं।
ग्रीन कारपेट की टीम में कुल 10 सदस्य हैं जिनको काम की जिम्मेदारी निरंतर बदलते रहती है। इसके पीछे मुख्य वजह ये है कि कोई भी सदस्य ये ना समझे कि वो सिर्फ नौकरी कर रहा है। ग्रीन कारपेट में अलग अलग शैक्षिणक योग्यता वाले लोगों को जगह दी जाती है जबकि जिन लोगों के पास लंबी चौड़ी शैक्षणिक योग्यता होती है, ऐसे लोगों से ये कंपनी किनार कर लेती है क्योंकि इनका मानना है कि ऐसे लोग यहां पर काम नहीं कर सकते क्योंकि यहां पर किसी एक व्यक्ति को सेल्स का काम भी देखना होता है तो शोरुम का भी। इसके अलावा भंडारण और स्टॉक प्रबंधन भी कई बार उसे ही संभालना होता है ऐसे में कुछ लोगों को इस तरह काम करने में दिक्कत आ सकती है।