10 साल बाद दिल्ली को मिली महिला मेयर, आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय ने जीता चुनाव
आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय 150 वोटों के साथ जीतकर शहर की नई मेयर बन गई हैं.
रजनी अब्बी के बाद अब 10 साल बाद दिल्ली को एक और महिला मेयर मिली है. नगर निगम के चुनाव 80 दिन पहले हुए थे और 80 दिनों की उठापटक के बाद आखिरकार देश की राजधानी के मेयर का चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया. आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय 150 वोटों के साथ जीतकर शहर की नई मेयर बन गई हैं. उन्होंने बीजेपी की रेखा गुप्ता को 34 वोटों से मात दी है.
वर्ष 2011 में बीजेपी की रजनी अब्बी पूरे दिल्ली शहर की आखिरी महिला मेयर थीं. उसके बाद वर्ष 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी और शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री. शीला दीक्षित की सरकार में दिल्ली नगर निगम को 3 हिस्सों में बांट दिया गया था और इन तीनों हिस्सों में तीन अलग मेयर होते थे.
वर्ष 2022 में दिल्ली के इन तीन नगर निगम इलाकों को मिलाकर एक कर दिया गया और अब शैली ओबेरॉय उसकी नई मेयर नियुक्त हुई हैं.
39 वर्षीय शैली ओबेरॉय 2013 में आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ी थीं. उन्होंने एक साधारण कार्यकर्ता की तरह पार्टी में अपने काम की शुरुआत की. 2020 तक उन्होंने आप पार्टी की महिला मोर्चा के उपाध्यक्ष का पद संभाला.
इस वर्ष के नगर निगम चुनावों में बतौर पार्षद उन्हें पहली बार पश्चिमी दिल्ली की सीट से जीत हासिल हुई थी. उनकी प्रतिद्वंद्वी बीजेपी की दीपाली कुमारी थीं, जिसे उन्होंने 269 वोटों से हराया. शैली ओबेरॉय के पिता सतीश कुमार ओबेरॉय भी शहर की एक नामी शख्सियत हैं.
बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच विवादों के चलते इस बार मेयर का चुनाव कई बार टला. कांग्रेस ने चुनाव में शामिल न होने का फैसला किया था. आम आदमी पार्टी की आतिशी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस के पीछे हटने का फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. मेयर के चुनाव में 273 सदस्यों के वोट थे. जीतने के लिए 133 वोटों की जरूरत थी. चुनाव में आम आदमी पार्टी को 150 और भाजपा को 113 वोट मिले.
क्यों इस बार विवादों में घिरा रहा मेयर का चुनाव
6 जनवरी को नगर निगम के दफ्तर में बीजेपी और आप के बीच बहस और विवाद के चलते चुनाव की प्रक्रिया को स्थगित करना पड़ा था. उसके बाद वहां पुलिस भी तैनात हो गई थी. 24 जनवरी को एक बार फिर इस प्रक्रिया में बाधा पड़ी और चुनाव की प्रक्रिया को दोबारा स्थगित कर दिया गया. इस महीने की छह तारीख को तीसरी बार भी चुनाव की प्रक्रिया अधूरी रह गई थी.
यह विवाद इतना बढ़ गया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि नॉमिनेटेड सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि मेयर के चुनाव के बाद ही डिप्टी मेयर के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. इन प्रक्रियाओं की अध्यक्षता का अधिकार मेयर के पास ही सुरक्षित है.
Edited by Manisha Pandey