मिलें 2 लाख से ज्यादा लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देने वाले उत्तर प्रदेश के 27 वर्षीय अभिषेक यादव से
साल 2015 की बात है। लखनऊ के एक दशहरा उत्सव मेले में 26 वर्षीय करुणा त्रिपाठी अपने दोस्तों के साथ एंजॉय कर रही थीं। मेला देखने के बाद जब वे अपने घर लौट रही थीं तो रास्ते में पांच मनचलों के एक समूह ने उनका रास्ता रोका और उन्हें प्रताड़ित करने लगे। करुणा ने मामलों को अपने हाथों में लिया और उनसे जमकर फाइट की। दरअसल करुणा ने 'मेरी रक्षा मेरे हाथ में' नामक एक कार्यक्रम के तहत सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग की हुई थी और उन्हें थोड़ा बहुत मार्शल आर्ट भी आता था। करुणा ने उन मनचलों की जमकर धुनाई की और खुद को व अपनी साथियों को बचाने में सफल रहीं।
करुणा की तरह, उत्तर प्रदेश और भारत भर में लगभग 2.5 लाख लड़कियों ने 'मेरी रक्षा मेरे हाथो में' कार्यक्रम के तहत आत्मरक्षा की कला सीखी है - जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
'मेरी रक्षा मेरे हाथो में' अभियान के प्रमुख अभिषेक यादव हैं, जो एक 27 वर्षीय मल्टी-डिसिप्लिन मार्शल आर्ट एक्सपर्ट हैं। अभिषेक ने इन लड़कियों को प्रशिक्षित किया है इसके अलावा वे भारतीय सेना में गोरखा फोर्स की दो बटालियन को भी ट्रेन कर चुके हैं। यही नहीं उन्होंने महाराष्ट्र और यूपी पुलिस में लगभग 70,000 पुलिस कर्मियों की सेल्फ डिफेंस क्लासेस ली हैं।
मार्शल आर्ट के लिए जुनून
अभिषेक के लिए यह आसान काम नहीं था क्योंकि उनके माता-पिता मार्शल आर्ट्स के लिए उनके जुनून के समर्थक नहीं थे। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए, उन्होंने एक साथ पास के शिविर में प्रशिक्षण लिया।
योरस्टोरी से बात करते हुए अभिषेक कहते हैं,
"मेरे माता-पिता खुश नहीं थे कि मैं मार्शल आर्ट सीखूं, क्योंकि उनके लिए इसका मतलब था कि चोट लगना और मारना वो भी बिना किसी रियल यूज के। वे चाहते थे कि मैं सिविल सर्विसेज में शामिल हो जाऊं और एक सामान्य जीवन जी सकूं।”
अभिषेक ने शिक्षा पाने के लिए कोई समझौता नहीं किया और बारहवीं कक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने कर्नाटक ओपन यूनिवर्सिटी (केओयू) से डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी कार्यक्रम में स्नातक के लिए आवेदन कर दिया।
इस बीच, उन्होंने मार्शल आर्ट में भी अपना प्रशिक्षण जारी रखा और एइकिडो, जित्सु और कराटे जैसे विभिन्न रूपों में कौशल हासिल किया। ट्रेनिंग के लिए, उन्हें विभिन्न शहरों की यात्रा करनी थी और उनके माता-पिता इससे भी खुश नहीं थे। वे केवल अपने दोस्तों के सपोर्ट के चलते इसे जारी रख पाए जो उनके जुनून को समझते हैं और स्वीकार करते हैं।
वह कहते हैं, “मैं अपने दोस्तों का शुक्रगुज़ार हूं, जो मेरी यात्राओं और ट्रेनिंग के खर्च के लिए पैसे इकट्ठा करते थे। उन्होंने मुझे हमेशा अपने जुनून को फॉलो करने के लिए प्रोत्साहित किया और अपना समर्थन देने का वादा किया। उन्होंने मुझसे कहा कि 'सीखते रहो, और किताब की तरफ मत देखो।"
अभिषेक ने छह साल में अपना प्रशिक्षण पूरा किया और 2006 में कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल की। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और केओएयू के माध्यम से 2009 में सूचना प्रौद्योगिकी में मास्टर कंपलीट किया।
हर व्यक्ति को फाइट बैक करने में सक्षम बनाना
अभिषेक ने 2006 में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, अभिषेक संरक्षण ट्रस्ट की स्थापना की, जिसके तहत उन्होंने "मेरी रक्षा मेरे हाथों में" नामक एक कार्यक्रम शुरू किया। 2007 में, अभिषेक ने मार्शल आर्ट में उत्तर प्रदेश में पुलिस कमांडो का प्रशिक्षण शुरू किया।
एक बार, जब अभिषेक ने मदन मोहन मालवीय विश्वविद्यालय, गोरखपुर में एक शिविर की मेजबानी की, तो उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। कई लोगों को लगा कि वे मार्शल आर्ट क्यों सीखें। हालांकि कुछ लड़कियां यह देखने के लिए आईं कि शिविर में क्या है। शिविर ने उन्हें इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। पहले दिन शिविर में 50 लड़कियां आईं लेकिन शिविर के दूसरे दिन लड़कियों की संख्या बढ़कर 2,000 हो गई।
लड़कियों की रुचि से खुश होकर अभिषेक ने स्कूलों में प्रशिक्षण शिविर शुरू कर दिया। उन्होंने पुलिस कर्मियों, सेना के जवानों और लड़कियों सहित लगभग सभी को प्रशिक्षण देना शुरू किया। मार्शल आर्ट के अधिकांश रूपों में अपनी विशेषज्ञता के साथ, अभिषेक ने 'विशेष कमांडो तकनीक' नामक अपनी तकनीक विकसित की, जिसका उपयोग वह अपने सभी छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए करते हैं क्योंकि यह लड़कियों को प्रशिक्षित करने के लिए काफी उपयोगी है। इस तकनीक के माध्यम से, कोई लड़की सिर्फ एक उंगली पकड़कर मोलेस्टर के पूरे शरीर को नियंत्रित कर सकती है।
अभिषेक महिलाओं की सुरक्षा में बढ़ती रुचि का कारण बताते हैं। वे कहते हैं,
“2012 में दुर्भाग्यपूर्ण निर्भया सामूहिक बलात्कार ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। मैं भी चौंक गया था, लेकिन मैंने यह भी महसूस किया कि मेरा कार्यक्रम सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए एक आवश्यकता थी। मैं जरूरत के समय हर व्यक्ति को अपना बचाव करने के लिए पर्याप्त मजबूत बनाना चाहता था।”
यह उनके लिए शुरुआत थी और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अभिषेक ने अपने पैसे से उत्तर प्रदेश और उसके आसपास के विभिन्न स्कूलों में लड़कियों को प्रशिक्षित किया है। 2015 में, अभिषेक को यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि यूपी सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार माना जाता है। पुरस्कार के साथ, उन्हें यूपी सरकार से 11 लाख रुपये मिले और पेंशन के रूप में प्रति माह 50,000 रुपये मिलते हैं।
अभिषेक ने यश भारती पुरस्कार राशि का उपयोग अधिक प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने और अपनी यात्रा की जरूरतों के लिए किया। अभिषेक द्वारा लगाए गए सभी शिविरों को एक सप्ताह में कॉलेजों और स्कूलों में आयोजित किया जाता है और छात्रों को ब्रेक के दौरान हर दिन दो-ढाई घंटे के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। प्रत्येक शिविर में लगभग 1,000-2,000 लड़कियां आती हैं, और शिविर पूरा होने के बाद, उन्हें ट्रस्ट और जहां शिविर का आयोजन किया जाता है वहां के स्कूल या कॉलेज से एक प्रमाण पत्र दिया जाता है।
अभिषेक विभिन्न शहरों में अपने शिविरों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। वे कहते हैं,
“हमारे पास हमारा एक डेडीकेटेड फेसबुक पेज है और हम उन सभी छात्रों का रिकॉर्ड रखते हैं जिन्हें हम प्रशिक्षण देते हैं और उन्हें आगामी प्रशिक्षण शिविरों के बारे में व्हाट्सएप के माध्यम से सूचित करते हैं। हालांकि ज्यादातर लोगों को वर्ड ऑफ माउथ के जरिए ही पता चलता है। क्योंकि जब लड़कियां प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मविश्वास हासिल करती हैं, तो वे दूसरों को सत्र के बारे में बताती हैं कि आखिर उनके लिए भी नामांकन करना क्यों आवश्यक है।”
उनका कहना है कि इसका असर काफी दिख रहा है। वे कहते हैं,
“ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लड़कियां अपना बचाव करने में सक्षम हैं। कई स्थानीय गुंडे कॉलेज की लड़कियों को परेशान करते थे, लेकिन हमारे प्रशिक्षण सत्र में भाग लेने के बाद, मैंने सुना है कि वही छात्र अब उन गुंडों की पिटाई कर रहे हैं और उनके खिलाफ खड़े हैं। इसके अलावा, चेन स्नैचिंग की भी एक घटना हुई, जहां लड़की ने न केवल विरोध किया, बल्कि लड़ाई भी की और खुद को बचाया।”
अभिषेक के लिए सबसे ज्यादा सम्मान की बात तब थी, जब उन्होंने 2017 में जगद्गुरु कृपालु परिषद के साथ 5,700 लड़कियों को आत्मरक्षा तकनीकों का प्रशिक्षण देने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बनाई। इनमें से ज्यादातर लड़कियां उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों से थीं और इस प्रभावशाली संख्या ने पूर्वी दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार का रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिसने 5,000 लड़कियों को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया था।
अभिषेक की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प, और उनकी सफलता को देखते हुए उनके माता-पिता ने महिलाओं की सुरक्षा के क्षेत्र में उनके काम की सराहना की और समर्थन करना शुरू कर दिया।
आगे का रास्ता
कोई भी व्यक्ति अभिषेक के आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल हो सकता है, भले ही वह किसी भी उम्र का हो। उन्होंने पावर विंग नामक एक समूह को प्रशिक्षित भी किया है, जिसमें 45 वर्ष से अधिक की 50 महिलाएँ शामिल हैं। वर्तमान में, अभिषेक के पास 14 सदस्यों की एक टीम है, पूर्व छात्र जो उनके अभियान में उनकी मदद करते हैं। लगभग 1,000-2,000 लड़कियों को ट्रेन की जरूरत होने पर वह उनकी मदद करते हैं। अभिषेक इस साल दिसंबर में मुंबई में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वह मुंबई के ठाणे में एक साथ लगभग 21,000 लड़कियों को प्रशिक्षण देंगे, जिसमें उप-निरीक्षक पद और महाराष्ट्र पुलिस के 11,000 प्रशिक्षु कैडेट, और 10,000 कॉलेज छात्र शामिल होंगे।
अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में अभिषेक कहते हैं, "हमारा मिशन हर व्यक्ति को उस हद तक प्रशिक्षित करना है जहां वे खुद का बचाव कर सकते हैं।"