गुजरात के इस व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी के साथ ही 7 दलित बेटियों की कराई शादी
गरीब बेटियों को खुशी से विदा करने वाला शख़्स...
अक्सर हमें गरीब बेटियों के लिए सामूहिक विवाह आयोजित होने की खबरें मिलती रहती हैं। लेकिन गुजरात के एक व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी में ही 7 गरीब दलित बेटियों की शादी संपन्न कराई।
गांव वालों ने न केवल इस शादी के लिए हामी भरी बल्कि पूरा सहयोग भी किया। शादी के दिन सभी आठ लड़कियों ने पारंपरिक शादियों की तरह सज-धजकर अपने होने वाली पतियों के साथ सात फेरे लिए।
ऐसे वक्त में जब भारत में शादियों में भारी-भरकम खर्च करने का चलन काफी बढ़ गया है, निर्धन परिवारों को शादी करना मुश्किल होता जा रहा है। लेकिन समाज में कई ऐसे अच्छी सोच वाले लोग हैं जो गरीब बेटियों की शादी करने का पूरा खर्च खुद ही उठा लेते हैं। अक्सर हमें गरीब बेटियों के लिए सामूहिक विवाह आयोजित होने की खबरें मिलती रहती हैं। लेकिन गुजरात के एक व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी में ही 7 गरीब दलित बेटियों की शादी संपन्न कराई।
गुजरात के पालनपुर इलाके में पाटन कस्बे से 7 किलोमीटर दूर अजीमा गांव में रहने वाले अमृत देसाई ने अपनी बेटी की शादी के साथ ही दलित (वाल्मीकि) समाज से आने वाली 7 गरीब लड़कियों की शादी की। यह अमृत का अपनापन ही था कि उन्होंने अपनी बेटी और इन बेटियों के बीच कोई भेद नहीं किया। उन्होंने इन नवदंपतियों को बेड से लेकर बर्तन और कुर्सियों सहित घर-गृहस्थी का सारा सामान भी दिया। शादी में लगभग 3,000 मेहमान उपस्थित थे।
देसाई ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, 'सदियों से हमारा समाज जातियों में बंटा हुआ है। जहां निम्न तबके के लोगों के साथ भेदभाव होता आया है। मैंने अपनी बेटी की शादी के साथ ही इन दलित बेटियों की शादी करके इस जाति विभाजन को तोड़ने की कोशिश की है।' अमृत कहते हैं कि इससे बेहतर मौका शायद दूसरा नहीं हो सकता था। बेटी की शादी तय होने के बाद उन्होंने बेटी के ससुराल वालों से इस बात की चर्चा की और उन्होंने इसके लिए स्वीकृति दे दी। अमृत की बेटी भी इसके लिए राजी थीं। इसके बाद सभी गांव वालों के साथ बैठकर रणनीति तय की गई।
गांव वालों ने न केवल इस शादी के लिए हामी भरी बल्कि पूरा सहयोग भी किया। शादी के दिन सभी आठ लड़कियों ने पारंपरिक शादियों की तरह सज-धजकर अपने होने वाली पतियों के साथ सात फेरे लिए। अमृत मूल रूप से गुजरात के बनासकांठा जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि जाति के बंधन को तोड़ने का यह एक छोटा सा प्रयास है। लेकिन समाज से जाति के कलंक को मिटाने के लिए अभी काफी कुछ करने की जरूरत है।
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