IIT से निकला एयरोस्पेस इंजीनियर आज देश की नदियों के किनारे पैदल टहल रहा है, वजह बड़ी दिलचस्प है
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक करने वाले सिद्धार्थ अग्रवाल को रॉकेट साइंटिस्ट भी कहा जा सकता है, हालांकि उन्हे फिलहाल लोग एक अनूठे काम या कहें उनके शौक के लिए जान रहे हैं।
"सिद्धार्थ बीते पाँच सालों से भारतीय नदियों के किनारे पैदल चल रहे हैं। नदियों के किनारे सफर तय करते हुए सिद्धार्थ किनारे पर रहने वाले नए लोगों से मिलते हैं और अपने साथ उनकी कहानियाँ साझा करते हैं। नदियों के किनारे चलने और लगातार नए लोगों से मिलना सिद्धार्थ को रोमांच से भर हुआ लगता है।"
आईआईटी जैसे प्रीमियम संस्थान से पढ़ाई करने के बाद छात्र अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट या फिर अपना स्टार्टअप शुरू करने का सपना देखते हैं, लेकिन सिद्धार्थ के मन में ऐसा कुछ भी नहीं था। देश के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक आईआईटी खड़गपुर से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने वाले सिद्धार्थ बीते कुछ सालों से भारत में नदियों के किनारे पैदल चल रहे हैं।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक करने वाले सिद्धार्थ अग्रवाल को रॉकेट साइंटिस्ट भी कहा जा सकता है, हालांकि उन्हे फिलहाल लोग एक अनूठे काम या कहें उनके शौक के लिए जान रहे हैं। सिद्धार्थ पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं और वह इस दिशा में अपने प्रयासों को लगातार आगे लेकर जा रहे हैं।
एक जुनूनी सफर
सिद्धार्थ वैसे एक व्यावसायिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन एक्टिविज़्म को लेकर उनके अंदर एक जुनून शुरुआत से ही था। सिद्धार्थ खुद को एडवेंचर से जुड़ा हुआ रखना चाहते थे और इसके लिए उन्होने छोटे स्तर से शुरुआत की। वही छोटी सी शुरुआत आज सिद्धार्थ के लिए उनके बड़े मिशन में तब्दील हो चुकी है।
सिद्धार्थ बीते पाँच सालों से भारतीय नदियों के किनारे पैदल चल रहे हैं। नदियों के किनारे सफर तय करते हुए सिद्धार्थ किनारे पर रहने वाले नए लोगों से मिलते हैं और अपने साथ उनकी कहानियाँ साझा करते हैं। नदियों के किनारे चलने और लगातार नए लोगों से मिलना सिद्धार्थ को रोमांच से भर हुआ लगता है।
इकट्ठा करते हैं आंकड़े और अनुभव
सिद्धार्थ के अनुसार इस तरह की मुलाकातें उन्हे बेहद कम समय के भीतर ही लोगों को गहनता से समझने और विचार साझा करने का मौका देती हैं। अब सिद्धार्थ भारत की सभी नदियों को पैदल चलते हुए कवर करना चाहते हैं।
इस यात्रा के दौरान सिद्धार्थ नदियों की स्थिति पर डाटा भी एकत्रित करते हैं, जिसे वो एक आर्काइव के जरिये लोगों के सामने पेश करना चाहते हैं। सिद्धार्थ इस दौरान एक गैर लाभकारी संस्था के साथ भी जुड़े हुए हैं।
सिद्धार्थ बताते हैं कि ‘नदियों के किनारे पैदल चलते हुए जब वह दूसरे लोगों से मिलते हैं उनसे मिलकर उन्हे यह समझ आया कि नदी का दायरा बहुत बड़ा है और इसे किसी भी परिभाषा में समाहित कर पाना असंभव है।’
बनाई है डॉक्यूमेंट्री
गौरतलब है कि गंगा नदी के किनारे चलते हुए सिद्धार्थ अब तक करीब 3 हज़ार किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं। मालूम हो कि गंगा भारत के करीब 26 प्रतिशत भूभाग को छूती हुई गुजरती है। सिद्धार्थ ने यह सफर साल 2016 में बंगाल की खाड़ी में गंगा सागर से शुरू करते हुए हिमालय में गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री पर खत्म किया था। सिद्धार्थ ने इस अनुभव से जुड़ी एक डॉक्यूमेंट्री का निर्माण किया है, जिसका नाम मूविंग अपस्ट्रीम है। इस डॉक्यूमेंट्री का निर्माण क्राउड फंडिंग के जरिये किया गया है।
गंगा के अलावा सिद्धार्थ मध्य प्रदेश की केन नदी के किनारे भी सफर तय कर चुके हैं। मीडिया से बात करते हुए सिद्धार्थ ने बताया कि केन नदी की लंबाई 430 किलोमीटर की बताई जाती है लेकिन उन्होने यह सफर पूरा करते हुए 600 किलोमीटर की दूरी तय की थी, क्योंकि नदी की भौतिक संरचना को देखते हुए उनके लिए हर समय नदी के किनारे चल पाना संभव नहीं था। यह दूसरी तय करने में सिद्धार्थ को तीन महीने का समय लगा था।
सिद्धार्थ का दावा है कि अपनी इस यात्रा के दौरान उन्हे भारत के अनदेखे पहलुओं को भी देखने का मौका मिला है। नदियों के किनारे यात्रा करने के दौरान सिद्धार्थ तट पर बसे गांवों में शरण लेते और स्थानीय लोगों से मिलते हुए भोजन व आराम भी वहीं करते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi