कोच्चि के चंगमपुझा पार्क में डांस करने वाली 26 महिलाओं से मात खा गई उम्र
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कोई आनंददायक गतिविधि केवल हमारा मनोरंजन ही नहीं करती है, हमारी सेहत सही रखने के साथ ही वह हमे जीवन जीने की कला भी सिखाती है। इस कला को सीखने में उम्र भी आड़े नहीं आती है, जैसेकि पचास से 75 साल तक की उम्र में कोच्चि में डांस सीख रहीं ये 26 महिलाएं।
जीवन जीने की भी एक कला, एक खास दृष्टि, जीवन-दृष्टि होती है, जैसेकि कोच्ची के चंगमपुझा पार्क में डांस करने वाली 50 साल से अधिक उम्र की महिलाएं, जो न सिर्फ डांस सीखती हैं, बल्कि वर्षों से अपने मन में दबे रह गए सपनों को फिर से जीने की कोशिश कर रही हैं।
ये वो महिलाएं हैं, जिनके बुलंद हौसलों के आगे उम्र भी मात खा रही है। इन 26 महिलाओं की डांस टीचर हैं आर. एल. वी मिधुना जो उम्र में इन सभी से छोटी हैं। डांस सीख रहीं ये महिलाएं नौकरियों से अवकाश प्राप्त और गृहिणियां हैं। मिधुना इडप्पली के चंगमपुझा संस्कृति केंद्र पर महिलाओं को भरतनाट्यम् और मोहिअट्टम सिखाती हैं। जीवन-दृष्टि की बात करें तो डांस और संगीत में अभिरुचि रखना, दरअसल, जीवन जीने की वो कला है, जिससे कोई व्यक्ति स्वयं को ही नहीं, अपने पूरे आसपास को भी सुखद बना देता है।
कोच्चि के चंगमपुझा संस्कृति केंद्र पर भरतनाट्यम् और मोहिअट्टम सीख रहीं ये उम्रदराज महिलाएं बताती हैं कि उनके लिए यह फिर से अपने शौक पूरा करने का सुअवसर है। क्लास की सबसे उम्रदराज महिला की उम्र 75 साल है।
उल्लेखनीय है कि जिस उम्र में महिलाएं हार मान कर खुद को हालात के हिसाब से ढाल लेती हैं, उस उम्र में यह महिलाएं फिर से जीवन जीने की कला में व्यस्त-मस्त रहने लगी हैं। पिछले साल अक्टूबर में विजय दशमी से शुरू हुई यह क्लास हर सोमवार और गुरुवार लगती है।
नृत्य सदस्य समूह की अध्यक्ष मक्किला बताती हैं कि उन्होंने सोचा नहीं था कि उन्हें इतने अच्छे दिन इतनी आसानी से नसीब हो जाएंगे। उन्हें पता चला था कि 50 साल के अधिक उम्र की कुछ महिलाएं डांस सीखना चाहती हैं। इसके बाद एक ट्रायल के साथ उनकी जिंदगी की सबसे खुशनुमा शुरुआत हो गई।
डांस टीचर आरएल वी मिधुना बताती हैं कि वह ट्रेनिंग ले रहीं महिलाओं को सीखने के लिए उन पर किसी भी तरह का दबाव नहीं बनने देती हैं। वे खूब रिलैक्स होकर थिरकती हैं। उम्र के इस पड़ाव पर समाज की घूरती नजरों के अनदेखा कर अपने लिए खड़े होना काफी हिम्मत का काम है। यहां उन्हें किसी का कोई डर नहीं रहता है। शुरू में उन्हें डर था कि वह सब उन्हें एक टीचर के रूप में कैसे स्वीकार करेंगी, लेकिन अब तो ये सभी उनकी अच्छी दोस्त बन चुकी हैं। जीवन में एक बार फिर कुछ करने की चाह रखने वाली इन महिलाओं को उनके परिवार का भी उतना ही सपोर्ट मिलता है।
चंगमपुझा संस्कृति केंद्र पर डांस सीख रहीं सुभी बताती हैं कि वे सुबह जल्दी से केंद्र पर पहुंचकर सबसे पहले अपने पाठ मनस्थ करती हैं। क्लास के बाद वे आपस में खूब देर-देर तक अपने-अपने जीवन के अनछुए पहलुओं पर तरह-तरह की बातें करती रहती हैं। यहां डांस कर रहीं राजम थंपी पुलिमुत्तिल पहले दुबई में नौरी करती थीं।
वह बताती हैं कि क्लास के दौरान अब वह अपने को पहले से ज्यादा एनर्जेटिक पाती हैं। अब तो इससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से अपने को काफी स्वस्थ महसूस करने लगी हैं। राजम और कहती हैं कि शुरुआत में उनके लिए डांस सीखना काफी मुश्किल लगता था। लेकिन अब तो हमारा शरीर उसका अभ्यस्त हो चुका है।