अल्बर्ट आइंस्टाइन: नोबेल प्राइज विनर वह भौतिकशास्त्री, जिसका दिमाग हो गया था चोरी, हुई थीं स्टडीज
आइंस्टाइन को नोबेल पुरस्कार 1922 में प्राप्त हुआ. नोबेल समिति ने 1921 के पुरस्कार के विजेता का चयन 1922 में किया था.
9 नवंबर की तारीख इतिहास में विज्ञान और वैज्ञानिकों के लिए काफी खास है. वजह हैं अल्बर्ट आइंस्टाइन (Albert Einstein). दरअसल महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन को 1921 में 9 नवंबर को ही भौतिक शास्त्र (Physics) का नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया गया था. हालांकि आइंस्टाइन को यह पुरस्कार 1922 में प्राप्त हुआ. नोबेल समिति ने 1921 के पुरस्कार के विजेता का चयन 1922 में किया था. दरअसल हुआ यूं था कि 1921 में चयन प्रक्रिया के दौरान, भौतिकी के लिए नोबेल समिति ने पाया कि उस साल के नॉमिनेशंस में से कोई भी अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत में उल्लिखित मानदंडों को पूरा नहीं करता है.
नोबेल फाउंडेशन की विधियों के अनुसार, ऐसे मामले में नोबेल पुरस्कार अगले वर्ष तक रिजर्व किया जा सकता है और यह कानून 1921 में इस्तेमाल किया गया. इसलिए अल्बर्ट आइंस्टाइन को एक साल बाद 1922 में 1921 का नोबेल पुरस्कार मिला. भौतिकी (Physics) का नोबेल पुरस्कार 1921, अल्बर्ट आइंस्टाइन को "थ्योर्टिकल फिजिक्स में उनकी सेवाओं के लिए, और विशेष रूप से फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट के लॉ की खोज के लिए" प्रदान किया गया था.
नोबेल मिलने की खबर मिलने पर भेंट में दिया एक नोट
साल 2017 में अल्बर्ट आइंस्टाइन का ख़ुशहाल जीवन के बारे लिखा एक नोट येरूशलम में हुई नीलामी में करीब दस करोड़ तेईस लाख रुपये में बिका था. यह नोट आइंस्टाइन ने 1922 में टोक्यो में इंपीरियल होटल के एक वेटर को बतौर टिप दिया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुूताबिक, हुआ यूं था कि उस वक्त आइंस्टाइन को पल भर पहले ही यह बताया गया था कि उन्होंने फिजिक्स में साल 2021 का नोबेल पुरस्कार जीता है. आइंस्टाइन जापान में लेक्चर देने आए थे. यह संदेश उन तक पहुंचाने वाले को आइंस्टाइन ने होटल के पैड पर लिखा एक नोट भेंट किया क्योंकि उनके पास उसे बतौर इनाम देने के लिए कैश नहीं था.
नोट देते हुए उन्होंने कहा था कि भविष्य में यह काग़ज़ का टुकड़ा बेशक़ीमती हो सकता है. उस नोट में जर्मन भाषा में एक वाक्य लिखा हुआ था- "कामयाबी और उसके साथ आने वाली बेचैनी के बजाय एक शांत और विनम्र जीवन आपको अधिक ख़ुशी देगा."
14 मार्च, 1879 को जन्म
दुनिया के अब तक के महानतम भौतिकशास्त्रियों में से एक आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च, 1879 को जर्मनी के वुर्टेमबर्ग में उल्म में हुआ था. छह हफ्ते बाद परिवार म्यूनिख चला गया, जहां बाद में उन्होंने ल्यूटपोल्ड जिमनैजियम में अपनी स्कूली शिक्षा शुरू की. आइंस्टाइन के पिता बिजली के सामान का कारखाना चलाते थे और मां घर का कामकाज करती थीं. आइंस्टाइन के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनके चाचा ने निभाई. चाचा आइंस्टीन को जो भी उपहार देते थे, सभी विज्ञान से जुड़े होते थे. इस वजह से स्कूली दिनों में ही आइंस्टीन की विज्ञान में गहरी रुचि हो गई. बाद में, वे इटली चले गए और अल्बर्ट ने स्विट्जरलैंड के आराउ में अपनी शिक्षा जारी रखी. 1896 में उन्होंने ज्यूरिख में स्विस फेडरल पॉलिटेक्निक स्कूल में प्रवेश लिया ताकि वह भौतिकी और गणित में एक शिक्षक के रूप में ट्रेनिंग ले सकें. 1901 में, जिस वर्ष उन्होंने अपना डिप्लोमा प्राप्त किया, उसी वर्ष उन्होंने स्विस नागरिकता भी प्राप्त कर ली. चूंकि उन्हें एक शिक्षण पद नहीं मिल सका, इसलिए 1903 में उन्होंने बर्न में स्विस पेटेंट कार्यालय में तकनीकी सहायक के रूप में एक पद स्वीकार कर लिया. 1905 में, उन्हें ज्यूरिख विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया.
पेटेंट कार्यालय में अपने प्रवास के दौरान, अपने खाली समय में, उन्होंने बहुत से उल्लेखनीय कार्य किए. 1908 में आइंस्टाइन को बर्न में प्राइवेटडजेंट नियुक्त किया गया. 1909 में वे ज्यूरिख में प्रोफेसर एक्स्ट्राऑर्डिनरी बने, 1911 में प्राग में थ्योर्टिकल फिजिक्स के प्रोफेसर बने. इसी तरह के पद को भरने के लिए वह 1912 में ज्यूरिख लौट आए. 1914 में उन्हें कैसर विल्हेम फिजिकल इंस्टीट्यूट का निदेशक और बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त किया गया.
1905 आइंस्टाइन की कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष
1905 एक साथ आइंस्टाइन की कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष था. उसी वर्ष उनके सर्वप्रसिद्ध सूत्र E= mc² (ऊर्जा= द्रव्यमान X प्रकाशगति घाते 2) का जन्म हुआ था. इसे द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण कहा जाता है और यह उन्हीं के सापेक्षता के सिद्धांत से उपजा. इस फॉर्मूले को दुनिया की सबसे फेमस इक्वेशन कहा जाता है. ‘सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों’ संबंधी उनकी खोज के लिए उन्हें 1921 का नोबेल पुरस्कार मिला. 17 मार्च 1905 को प्रकाशित यह खोज अल्बर्ट आइंस्टाइन ने स्विट्ज़रलैंड की राजधानी बर्न के पेटेंट कार्यालय में एक प्रौद्योगिक-सहायक के तौर पर 1905 में ही की थी. साल 1905 में आइंस्टाइन ने चार महत्वपूर्ण पत्र प्रकाशित किए. ये पेपर, फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के सिद्धांत को रेखांकित करते हैं, ब्राउनियन गति की व्याख्या करते हैं, विशेष सापेक्षता का परिचय देते हैं, और द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता का प्रदर्शन करते हैं.
डॉक्टर की उपाधि पाने के लिए उसी वर्ष 20 जुलाई के दिन ‘आणविक आयाम का एक नया निर्धारण’ नाम से अपना थीसिस उन्होंने ज्यूरिख विश्वविद्यालय को समर्पित किया था. उस समय उनकी उम्र 26 वर्ष थी. 15 जनवरी 1906 को उन्हें डॉक्टर की उपाधि मिल भी गई.
सापेक्षता का सिद्धांत
अल्बर्ट आइंस्टाइन के नाम को जिस चीज ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता का सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी). उनका सापेक्षता का विशेष सिद्धांत (Special Theory of Relativity), विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के नियमों के साथ यांत्रिकी के नियमों को समेटने के प्रयास से उपजा. उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है. आइंस्टाइन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की ‘निरपेक्ष गति’ या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके. गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है. 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ कहा जाने लगा.
अपने वैज्ञानिक कार्य की शुरुआत में, आइंस्टाइन ने न्यूटोनियन मैकेनिक्स की अपर्याप्तता को महसूस किया. उन्होंने स्टैटिस्टिकल मैकेनिक्स की शास्त्रीय समस्याओं और उन समस्याओं से डील की, जिनमें उन्हें क्वांटम थ्योरी के साथ मिला दिया गया था: इससे अणुओं के ब्राउनियन मूवमेंट की व्याख्या हुई. उन्होंने कम रेडिएशन डेंसिटी वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुणों यानी थर्मल प्रॉपर्टीज की जांच की और उनकी टिप्पणियों ने प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत की नींव रखी.
बर्लिन में अपने शुरुआती दिनों में, आइंस्टाइन ने कहा था कि सापेक्षता के विशेष सिद्धांत की सही व्याख्या को, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी प्रस्तुत करना चाहिए और 1916 में उन्होंने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत पर अपना पेपर प्रकाशित किया. इस दौरान उन्होंने विकिरण सिद्धांत और स्टेटिस्टिकल मैकेनिक्स की समस्याओं में भी योगदान दिया. 1917 में, उन्होंने ब्रह्मांड की संरचना के मॉडल के लिए सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत को लागू किया.
1920 के दशक में, आइंस्टाइन ने एकीकृत क्षेत्र सिद्धांतों के निर्माण की शुरुआत की, हालांकि उन्होंने क्वांटम थ्योरी की संभाव्य व्याख्या पर काम करना जारी रखा, और उन्होंने अमेरिका में इस काम को जारी रखा. उन्होंने एक मोनोएटॉमिक गैस के क्वांटम सिद्धांत के विकास द्वारा स्टेटिस्टिकल मैकेनिक्स में योगदान दिया. साथ ही उन्होंने एटॉमिक ट्रांजीशन संभावनाओं और सापेक्षतावादी ब्रह्मांड विज्ञान के संबंध में मूल्यवान कार्य भी पूरा किया. अपने रिटायरमेंट के बाद आइंस्टाइन ने अधिकांश भौतिकविदों के विपरीत दृष्टिकोण, ज्यामितिकरण को लेकर फिजिक्स की बुनियादी अवधारणाओं के एकीकरण की दिशा में काम करना जारी रखा.
1914 में बने जर्मन नागरिक और 1933 में छोड़ी नागरिकता
वह 1914 में एक जर्मन नागरिक बन गए और 1933 तक बर्लिन में रहे. 1933 में जर्मनी में नाजियों के सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपनी नागरिकता का त्याग कर दिया और प्रिंसटन में थ्योर्टिकल फिजिक्स के प्रोफेसर का पद लेने के लिए अमेरिका चले गए. वह 1940 में संयुक्त राज्य के नागरिक बने और 1945 में अपने पद से सेवानिवृत्त हुए.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आइंस्टाइन, वर्ल्ड गवर्मेंट मूवमेंट में एक प्रमुख व्यक्ति थे, उन्हें इज़राइल राज्य की प्रेसिडेंसी की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. उन्होंने डॉ. चैम वीज़मैन के साथ मिलकर येरूशलेम के हिब्रू विश्वविद्यालय की स्थापना की. आइंस्टाइन हमेशा भौतिकी की समस्याओं और उन्हें हल करने के दृढ़ संकल्प के बारे में स्पष्ट दृष्टिकोण रखते थे. उनकी अपनी एक रणनीति थी और वह अपने लक्ष्य के रास्ते में मुख्य चरणों की कल्पना करने में सक्षम थे. उन्होंने अपनी प्रमुख उपलब्धियों को अगली प्रगति के लिए केवल सफलता की सीढ़ियां माना.
आइंस्टाइन के महत्वपूर्ण कार्य
आइंस्टाइन के शोध, निश्चित रूप से काफी पुराने हैं और उनके अधिक महत्वपूर्ण कार्यों में सापेक्षता का विशेष सिद्धांत (1905), सापेक्षता (अंग्रेजी अनुवाद, 1920 और 1950), सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत (1916), ब्राउनियन मूवमेंट के सिद्धांत पर जांच (1926) और द इवोल्यूशन ऑफ फिजिक्स (1938) शामिल हैं. उनके गैर-वैज्ञानिक कार्यों में, अबाउट ज़ायोनीज़म (1930), व्हाई वॉर? (1933), माई फिलॉसफी (1934), और आउट ऑफ माई लेटर इयर्स (1950) शायद सबसे महत्वपूर्ण हैं. सापेक्षता और क्वांटम मैकेनिक्स, मॉडर्न फिजिक्स के दो स्तंभ हैं. फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट, क्वांटम थ्योरी के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम था.
कई यूनिवर्सिटीज से डॉक्टरेट की मानद उपाधि
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कई यूरोपीय और अमेरिकी विश्वविद्यालयों से विज्ञान, चिकित्सा और दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त की. 1920 के दौरान उन्होंने यूरोप, अमेरिका और सुदूर पूर्व में व्याख्यान दिया. साथ ही उन्हें दुनिया भर में सभी प्रमुख वैज्ञानिक अकादमियों की फैलोशिप या सदस्यता से सम्मानित किया गया. उन्होंने अपने काम की मान्यता में कई पुरस्कार प्राप्त किए, जिनमें 1925 में रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन का कोपले मेडल और 1935 में फ्रैंकलिन इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन मेडल शामिल हैं.
आइंस्टाइन ने 1903 में मिलेवा मैरिक से शादी की और उन दोनों की एक बेटी और दो बेटे थे. 1919 में यह शादी टूट गई और उसी वर्ष आइंस्टाइन ने अपनी कजिन एल्सा लोवेन्थल से शादी कर ली, जिनकी मृत्यु 1936 में हुई थी. 18 अप्रैल, 1955 को प्रिंसटन, न्यू जर्सी में आइंस्टाइन की मृत्यु हो गई.
मृत्यु के बाद चोरी हो गया दिमाग
आइंस्टाइन का दिमाग, एक सामान्य दिमाग से बहुत अलग और तेज था. उनका दिमाग इतना खास था, कि जब 18 अप्रैल, 1955 को प्रिंसटन अस्पताल में उनकी मृत्यु हुई, तो पैथोलॉजिस्ट थॉमस हार्वे ने इसे चुरा लिया. आइंस्टाइन नहीं चाहते थे कि उनके मस्तिष्क या शरीर का अध्ययन किया जाए. ब्रायन ब्यूरेल की 2005 की किताब, पोस्टकार्ड्स फ्रॉम द ब्रेन म्यूज़ियम के अनुसार, उन्होंने अपने अवशेषों के बारे में खास निर्देश पहले से लिखकर छोड़े थे. वह चाहते थे उनका अंतिम संस्कार हो और उनकी राख को गुप्त रूप से कहीं बिखेर दिया जाए.
लेकिन आइंस्टाइन या उनके परिवार की अनुमति के बिना ही हार्वे ने उनका दिमाग ले लिया. जब कुछ दिनों बाद तथ्य सामने आया तो हार्वे, आइंस्टाइन के बेटे, हंस एल्बर्ट से दिमाग अपने पास रखने की अनुमति मांगने में कामयाब रहे. लेकिन इसमें एक शर्त थी और वह यह कि दिमाग की जांच पूरी तरह से और केवल विज्ञान के हित में की जाएगी. हार्वे ने जल्द ही प्रिंसटन अस्पताल में अपनी नौकरी खो दी और दिमाग को फिलाडेल्फिया ले गए. यहां इन्होंने दिमाग के 240 टुकड़े किए और उसे सेलोइडिन में संरक्षित किया. उन्होंने दिमाग के टुकड़ों को दो जार में विभाजित किया और उन्हें अपने तहखाने में रख दिया.
हार्वे की पत्नी को यह बात पसंद नहीं आई और वह दिमाग नष्ट करने की धमकी देने लगी. ऐसे में हार्वे दिमाग को अपने साथ मिडवेस्ट ले गए. कुछ समय के लिए उन्होंने विचिटा, कंसास में एक बायो लेब्रोरेट्री में एक मेडिकल सुपरवाइज़र के तौर में काम किया. उन्होंने दिमाग को एक बियर कूलर के नीचे रखे साइडर बॉक्स में रखा. वह फिर से वेस्टन, मिसौरी चले गए, और अपने खाली समय में मस्तिष्क का अध्ययन करने की कोशिश करने लगे. 1988 में उन्होंने अपना मेडिकल लाइसेंस खो दिया. फिर वह लॉरेंस, कैनसस चले गए और एक प्लास्टिक-एक्सट्रूज़न फैक्ट्री में असेंबली-लाइन की नौकरी करने लगे. हार्वे ने 40 वर्षों से भी अधिक वक्त तक आइंस्टाइन के दिमाग के संरक्षित टुकड़ों को अपने पास रखा.
1985 में छपी पहली स्टडी
कैलिफोर्निया में हार्वे और उनके सहयोगियों ने 1985 में आइंस्टाइन के मस्तिष्क का पहला अध्ययन प्रकाशित किया. इसमें दावा किया गया कि इसमें दो प्रकार की कोशिकाओं, न्यूरॉन्स और ग्लिया का असामान्य अनुपात था. उस अध्ययन के बाद पांच अन्य स्टडी प्रकाशित हुईं. इन अध्ययनों के पीछे शोधकर्ताओं का कहना है कि आइंस्टाइन के मस्तिष्क का अध्ययन करने से बुद्धि के तंत्रिका संबंधी आधारों को उजागर करने में मदद मिल सकती है.
(अल्बर्ट आइंस्टाइन की आत्मकथा/जीवनी उन्हें नोबेल पुरस्कार दिए जाने के समय लिखी गई थी और पहली बार लेस प्रिक्स नोबेल पुस्तक श्रृंखला में प्रकाशित हुई थी. इसे बाद में एडिट किया गया और Nobel Lectures में पुनर्प्रकाशित किया गया. इस आर्टिकल का कुछ हिस्सा Nobel Lectures, Physics 1901-1921 के हवाले से www.nobelprize.org पर मौजूद अल्बर्ट आइंस्टाइन की बायोग्रफी से लिया गया है.)
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