फोन, लैपटॉप, स्पीकर, टैबलेट- एक ही चार्जर से चलेंगे सारे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट
यूरोपियन यूनियन में इस बात को लेकर एक सहमति बन गई है कि सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने, पर्यावरण को बचाने और ई कचरे को कम करने के लिए सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के लिए एक ही तरह का चार्जर बनाया जाए. सारे चार्जर यूएसबी-सी टाइप चार्जर हों.
हर कोई इस अनुभव से कभी न कभी तो गुजरा ही होगा. पता चला कि जल्दबाजी में दफ्तर चार्जर ले जाना भूल गए. फोन की बैटरी बस खत्म ही होने वाली है और चार्जर की खोज हो रही है. आसपास के दस लोगों से पूछ लिया. 10 के पास अगर 10 वेरायटी का फोन है तो पता चला कि 10 वेरायटी का चार्जर भी है.
आईफोन का चार्जर वन प्लस में नहीं लगता. वन प्लस का वीवो के फोन में नहीं लगता. वीवो का सैमसंग में नहीं लगता और सैमसंग का किसी और फोन में नहीं लगता. मानो फोन का चार्जर न हो गया, जूता हो गया. जितने पैर, उतने साइज. एक पैर का जूता दूसरे पैर में नहीं आएगा.
हर किसी को ऐसे ट्रेजिक मौके पर लगता है कि सारी कंपनियां एक ही तरह का चार्जर बना देतीं तो क्या नुकसान हो जाता. प्रोडक्शन का खर्चा कम, खरीदने का खर्चा कम, सस्टेनेबिलिटी ज्यादा और ई-कचरा भी कम.
हम जिस बात को सिर्फ सोचते रहे हैं, यूरोपियन यूनियन (ईयू) वो करने की योजना बना रहा है. यूरोपियन यूनियन में इस बात को लेकर एक सहमति बन गई है कि सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने, पर्यावरण को बचाने और ई कचरे को कम करने के लिए सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के लिए एक ही तरह का चार्जर बनाया जाए. सारे चार्जर यूएसबी-सी टाइप चार्जर हों.
फिलहाल तो सिर्फ एपल और गूगल के अलावा एकाध और मॉडल के पास ही यूएसबी-सी टाइप चार्जर है.
हालांकि सभी उत्पादों के लिए एक जैसा चार्जर बनाने का यह प्रस्ताव अभी यूरोपीय संसद और मंत्रि परिषद के सामने पेश होना बाकी है. गर्मियों की छुट्टियों के बाद संसद दोबारा शुरू होने पर यह प्रस्ताव पेश होगा और फिर वहां पास होने के बाद इस पर अमल की शुरुआत होगी.
हालांकि संसद में प्रस्ताव पास होने के बाद असली चुनौती तब आएगी, जब इसका सीधा असर कंपनियों के प्रोडक्शन और उनके मुनाफे पर पड़ेगा. कितने सारी मोबाइल कंपनियों को अपने चार्जर प्रोडक्शन का पूर डिजाइन बदलना पड़ेगा. एपल को आईफोन, आईपैड के चार्जिंग पोर्ट में बदलाव करने पड़ेंगे क्योंकि उसके सभी उत्पादों के चार्जिंग पोर्ट यूएसबी-सी टाइप नहीं हैं.
हालांकि प्रस्ताव में कहा गया है कि 2024 से पहले बाजार में आए उत्पादों पर ये नियम लागू नहीं होगा. वो पुराने चार्जर के साथ ही चलेंगे. लेकिन अब जो भी नया प्रोडक्ट मार्केट में आएगा, सब एक ही तरह के चार्जर से ऑपरेट होगा. चाहे वह कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, आईपैड, नोटपैड, हेडफोन, हेडसेट, टैबलेट, वीडियो गेम, पोर्टेबल स्पीकर कुछ भी हो.
जाहिर है, कंपनियां यूरोपियन यूनियन के इस फैसले से खुश नहीं हैं. वो इस फैसले को नवीनता और रचनात्मकता की राह में रोड़े की तरह देखती हैं. 2021 में पहली बार ईयू ने यह प्रस्ताव रखा था. तब भी कंपनियों ने अपना रोष जताया था.
एपल का मानना है कि उस पर यह दबाव डालना कि उसके सभी उत्पादों का चार्जर बाजार में उपलब्ध बाकी चार्जरों की तरह ही हो, ऐसा दबाव बनाना उसकी यूनीकनेस को खत्म करना है. एपल इसीलिए खास है क्योंकि वह बाकियों की तरह नहीं है.
इस तरह का फैसला लेने के पीछे यूरोपियन यूनियन ने जो वजह बताई है, वह बहुत जरूरी और वाजिब है. ईयू का कहना है कि पर्यावरण को हो रहे नुकसान के पीछे एक बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक कचरा है. हम चाहते हैं कि उत्पाद ज्यादा सस्टेनेबल हों, उपभोक्ताओं पर पड़ रहा आर्थिक दबाव कम हो और ई-कचरा कम हो.
ईयू ने इस हिसाब को आंकड़ों में भी समझाया है. अपने प्रस्ताव में वे कहते हैं कि सभ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए एक ही तरह का चार्जर इस्तेमाल करने से प्रतिवर्ष 250 मिलियन यूरो यानि तकरीबन 2 अरब रुपए का खर्च कम हो जाएगा. इसके साथ ही हर साल 11 हजार टन का ई-कचरा भी
कम होगा.
यह प्रस्ताव अभी कानून नहीं बना है, लेकिन बड़ी कंपनियों की तरफ से इसका विरोध शुरू हो गया. हालांकि उपभोक्ता इस प्रस्ताव के प्रति काफी उत्साहित हैं. पर्यावरण को लेकर काम रहे संगठनों और समूहों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है.
मुनाफे को दरकिनार कर थोड़ी देर के लिए सिर्फ इस तर्क से सोचा जाए कि यह धरती और इसके तमाम संसाधन मनुष्य के उपयोग के लिए थे, उपभोग के लिए नहीं. लेकिन मनुष्य ने उसका इस सीमा तक जाकर दोहन किया है कि आज की तारीख में सबसे ज्यादा वेस्ट इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के द्वारा उत्पन्न किया जा रहा है.
WEEE (waste electrical and electronic equipment) फोरम के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में पूरी दुनिया में तकरीबन 57.4 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ. यूरोप में ई-कचरे को लेकर सबसे ज्यादा रिसर्च और अध्ययन हुए हैं. WEEE का आंकड़ा कहता है कि यूरोप में एक हरेक घर में 72 में से 11 इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद ऐसे हैं जो टूटे हुए, खराब या अनावश्यक हैं. हर साल यूरोप का प्रत्येक नागरिक 4 से 5 किलो इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद फेंकता है और यह सब ई-कचरे में तब्दील हो रहा है. 2021 में उस बेकार हुए इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का सिर्फ 20 फीसदी ही रिसाइकिल किया जा सका है.