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अंबानी परिवार को देश और विदेश में मिलेगी Z+ सुरक्षा, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया आदेश

पीठ ने कहा कि प्रतिवादी संख्या दो से छह (अंबानी परिवार) को प्रदान की गई ‘जेड प्लस’ सुरक्षा उन्हें पूरे देश और विदेश में उपलब्ध कराई जाएगी और इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘जेड प्लस’ सुरक्षा प्रदान करने का पूरा खर्च और लागत अंबानी परिवार वहन करेगा.

अंबानी परिवार को देश और विदेश में मिलेगी Z+ सुरक्षा, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया आदेश

Wednesday March 01, 2023 , 4 min Read

सुप्रीम कोर्ट ने उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को देशभर और विदेश में उच्चतम श्रेणी वाली ‘जेड प्लस’ सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है. जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने सोमवार को कहा कि सोच-विचार करने के बाद यह राय है कि यदि सुरक्षा संबंधी खतरा है, तो सुरक्षा व्यवस्था को किसी विशेष क्षेत्र या रहने के किसी विशेष स्थान तक सीमित नहीं किया जा सकता.

पीठ ने कहा कि प्रतिवादी संख्या दो से छह (अंबानी परिवार) को प्रदान की गई ‘जेड प्लस’ सुरक्षा उन्हें पूरे देश और विदेश में उपलब्ध कराई जाएगी और इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘जेड प्लस’ सुरक्षा प्रदान करने का पूरा खर्च और लागत अंबानी परिवार वहन करेगा.

इसलिए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि मुकेश अंबानी, नीता अंबानी, आकाश अंबानी, अनंत अंबानी और ईशा अंबानी को उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान की जाए, जिसका खर्च अंबानी परिवार को वहन करना होगा.

अदालत ने अंबानी परिवार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि देश को आर्थिक रूप से अस्थिर करने के लिए उन्हें निशाना बनाए जाने का खतरा बना हुआ है, जिसके बाद अदालत ने निम्नलिखित निर्देश पारित किए:

(i) अंबानी परिवार को उच्चतम Z+ सुरक्षा कवर पूरे भारत में उपलब्ध होगा और इसे महाराष्ट्र राज्य और गृह मंत्रालय द्वारा सुनिश्चित किया जाना है.

(ii) भारत सरकार की नीति के अनुसार, जब अंबानी परिवार के सदस्य विदेश यात्रा कर रहे हों तो उन्हें उच्चतम स्तर का Z+ सुरक्षा कवर भी प्रदान किया जाएगा, और इसे गृह मंत्रालय द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा.

(iii) अंबानी परिवार को भारत या विदेश के क्षेत्र में उच्चतम स्तर की Z+ सुरक्षा कवर प्रदान करने का पूरा खर्च और लागत उनके द्वारा वहन की जाएगी.

क्या है मामला?

खुफिया और जांच इकाइयों की रिपोर्ट के आधार पर 2013 में मुकेश अंबानी को 'जेड प्लस' श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी और 2016 में उनकी पत्नी नीता अंबानी को 'वाई प्लस' श्रेणी की केंद्रीय पुलिस रिजर्व फोर्स (सीआरपीएफ) सुरक्षा प्रदान की गई थी.

हालांकि, उस साल जून में, त्रिपुरा हाईकोर्ट में अंबानी परिवार को मिली सुरक्षा के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी. इस पर त्रिपुरा हाईकोर्ट ने खतरे के मूल रिकॉर्ड की मांग की थी और निर्देश दिया था कि इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा सीलबंद लिफाफे में जमा किया जाए.

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की एक अवकाश पीठ ने त्रिपुरा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी थी.सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2022 में केंद्र सरकार को उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को सुरक्षा कवर जारी रखने की अनुमति दी थी.

यह आदेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में पारित किया गया था. अदालत में कहा गया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा खतरे की आशंकाओं को देखते हुए परिवार को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही थी.

हालांकि, केंद्र सरकार ने यह तर्क देते हुए स्टेटस रिपोर्ट पेश करने से इनकार कर दिया था कि इस मुद्दे पर पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा फैसला लिया जा चुका है.

केंद्र सरकार ने तब अपील में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, और तर्क दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष जनहित याचिका एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसका इस मामले में कोई अधिकार नहीं था और वह सिर्फ एक "दखल देने वाला हस्तक्षेप" था. इसके अलावा, इसी तरह की एक जनहित याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था, और उस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई थी.

शीर्ष अदालत द्वारा हालिया आदेश त्रिपुरा हाईकोर्ट के समक्ष मूल याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक आवेदन पर आया है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत के जुलाई, 2022 के आदेश का गलत मतलब निकाला जा सकता है कि सुरक्षा महाराष्ट्र तक सीमित होनी चाहिए.

हालांकि, अंबानी ने कहा कि परिवार का दुनियाभर में कारोबार है, और उनकी फाउंडेशन की परोपकारी गतिविधियं देश के दूरस्थ भागों तक फैली हुई हैं. इसने उनके लिए उच्चतम स्तर की सुरक्षा कवर को आवश्यक बना दिया.

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा इसी तरह की जनहित याचिका को खारिज करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखने के बाद मूल याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं था. हालांकि, इसने विभिन्न स्थानों और उच्च न्यायालयों में 'विवाद का विषय' बन चुके मुद्दे पर 'शांति' रखने के निर्देश पारित किए.


Edited by Vishal Jaiswal