एक और कलेक्टर ने सरकारी स्कूल में कराया अपनी बिटिया का दाखिला
आईएएस अविनाश कुमार शरण, आईपीएस रविशंकर की तरह अब विकाराबाद (तेलंगाना) की कलेक्टर मसर्रत खानम आएशा ने भी अपनी बिटिया का दाखिला सरकारी प्राइमरी स्कूल में करा दिया है। छत्तीसगढ़ के बीईओ ने तो एक साथ अपनी तीनों संतानों के नाम सरकारी प्राइमरी स्कूल में लिखा दिए हैं।
सच कहें तो, सरकारी स्कूलों में पढ़ाई न होने की बातें कभी पूरी तरह से गले नहीं उतरती हैं। माना कि सौ में कुछ स्कूल इसके अपवाद भी हो सकते हैं लेकिन 'सब धान बाईस पसेरी' जैसे मनगढ़ंत शोशे तो कत्तई स्वीकार्य नहीं होने चाहिए। ऐसा होता तो आईएएस, आईपीएस प्रशासक अपने बच्चों का दाखिला तड़क-भड़कदार ब्रांडेड पब्लिक स्कूलों की बजाय सरकारी स्कूलों में नहीं कराते। इस सच को अब तक कई प्रशासनिक अधिकारियों ने साबित कर दिखाया है, वह चाहे बलरामपुर (छत्तीसगढ़) के कलेक्टर अविनाश कुमार शरण की बेटी के दाखिले की बात हो अथवा रायपुर के आईपीएस रविशंकर की बिटिया दिव्यांजलि के एडमिशन की।
दरअसल, हमारे समाज में आज बबूल का पेड़ लगाकर आम-आम चिल्लाने की आदत जो पड़ी हुई है। इसी धारणा को बदलने के लिए आज तमाम प्रशासक ऐसे भी सामने आए हैं, जो अपनी संतानों को सरकारी प्राइमरी स्कूल भेजने के साथ ही शिक्षा की सेहत सुधारने के लिए ऐसे स्कूलों में पहुंच कर सीधे क्लास भी लेने लगे हैं। बदलाव की इस बयार में दाखिले के कई और मिथक तोड़े हैं विकाराबाद (तेलंगाना) की कलेक्टर मसर्रत खानम आएशा, उमरिया (म.प्र.) के कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी, गौराडीपा (छत्तीसगढ़) के बीईओ जे आर डहरिया आदि ने।
आज जबकि ऊंचे ओहदे, बड़ी पगार वाले नौकरशाह भी अपने बच्चों का दाखिला सरकारी प्राइमरी स्कूलों में कराने लगे हैं, जबकि वे अपनी संतानों को ठाटबाट वाले प्राइवेट संस्थानों में महंगी से महंगी शिक्षा दिलाने की हैसियत रखते हैं, तो फिर आम लोगों को भी अब ऐसे स्कूलों के प्रति अपनी धारणा बदलनी ही होगी। तेलंगाना की कलेक्टर मसर्रत खानम आएशा ने अभी हाल ही में अपनी बेटी का विकाराबाद के ही तेलंगाना माईनोरिटी रेजीडेंशियल स्कूल में पांचवीं कक्षा में दाखिला कराया है, जो हैदराबाद से 75 किलोमीटर दूर है।
कलेक्टर का मानना है कि इस स्कूल में शिक्षा का स्तर अच्छा होने से वहां उनकी बिटिया का का संपूर्ण विकास संभव है। इस स्कूल में ज्यादातर गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। तेलंगाना माईनोरिटीज रेजीडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीटयूशन सोसाइटी के सचिव बी शफीउल्ला का कहना है कि कलेक्टर का यह प्रयास आम लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है। इसका एक और असर अल्पसंख्यक लड़कियों की तालीम पर भी पड़ना लाजिमी है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ के बीईओ जे आर डहरिया ने एक साथ अपने तीन बेटे-बेटियों को बिलाईगढ़ विकास खण्ड के गौराडीपा के सरकारी स्कूल में दाखिला कराकर एक मिसाल पेश की है। डहरिया कहते हैं कि समाज के प्रति जिम्मेदार लोग अपने बच्चों को ऊंची-ऊंची फीस वाले तड़क-भड़कदार पब्लिक स्कूलों के बजाए सरकारी स्कूलों में दाखिल कराएं तो शिक्षा व्यवस्था स्वत: बेहतर हो जाएगी। इससे अमीर और गरीब परिवारों के बच्चों में अनावश्यक फासला भी कम होगा।
उमरिया (म.प्र.) के कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी ने तो हाल ही में एक और ही तरह की नज़ीर पेश की है। जिस तरह सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों में पढ़ाई न होने की एक आम धारणा फैली हुई है, वही हाल सरकारी अस्पतालों को लेकर भी है। पब्लिक स्कूलों की तरह ही महंगे प्राइवेट अस्पतालों की ओर लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह है, दवा-इलाज में गैरजिम्मेदारी बरतने वाले डॉक्टरों का रवैया, जो पैसे की हवस में अपना ज्यादातर समय नर्सिंगहोम, प्राइवेट क्लीनिक्स में बिताना चाहते हैं।
कलेक्टर सोमवंशी पिछले दिनो जब उमरिया के गवर्नमेंट चाइल्ड हॉस्पिटल का मुआयना करने पहुंचे तो देखा कि वहा इलाज के लिए भर्ती मरीज और छोटे-छोटे बच्चे 45 डिग्री सेल्सियस वाली जानलेवा गर्मी में उबल रहे हैं। सोमवंशी ने आनन-फानन में अपने चेम्बर का एसी तत्काल वहां से उठवाकर इस अस्पताल में लगवा दिया, जिससे बीमार बच्चों और उनके परिजनों को तुरंत राहत मिल गई। सोमवंशी ने बताया कि अब हॉस्पिटल के सभी चार ब्लॉकों में एसी लगा दिए गए हैं।