इंडिया की फास्टेस्ट यूनिकॉर्न Apna के फाउंडर ने इस फिल्म से ली थी इंस्पिरेशन
एपल के एक्स एग्जिक्यूटिव निर्मित पारीख ने 2019 में Apna की शुरुआत की और महज 22 महीनों के अंदर इसकी वैल्यूएशन 1.1 अरब डॉलर के पार हो गई. इस तरह यह इंडिया की सबसे तेजी से यूनिकॉर्न बनने वाली कंपनी हो गई.
फेसबुक, इंस्टा से लेकर मैसेंजर और फोटो शेयरिंग ऐप्स तक सभी दिग्गज ऐप्स एक ही चीज के भरोसे चलते हैं और वो है नेटवर्किंग, नेटवर्किंग नेटवर्किंग. सोशल नेटवर्किंग से लेकर प्रोफेशनल नेटवर्किंग हर फील्ड में इन ऐप्स का बोलबाला है. और जब भी प्रोफेशनल नेटवर्किंग की बात उठती है तो सबसे पहले लिंक्डइन का ही नाम आता है.
अगर आप ये सोच रहे हैं आज हम लिंक्डइन के बारे में करने जा रहे हैं आप पूरी तरह तो नहीं मगर 50 फीसदी गलत हैं. दरअसल आज यूनिकॉर्न्स ऑफ इंडिया में हम बात करेंगे देसी लिंक्डइन की यानी अपनाडॉटको की.
के फाउंडर निर्मित पारीख जो एपल के एक्स एक्जिक्यूटिव हैं उन्होंने 2019 में अपना की शुरुआत की. उनकी इस कंपनी ने 22 महीनों में ही सबसे तेजी से यूनिकॉर्न बनने वाली स्टार्टअप का टैग हासिल कर लिया. निर्मित की ये पहली कंपनी नहीं थी इससे पहले भी वो दो कंपनी बना चुके थे. तो आइए जानते हैं निर्मित के साथ-साथ अपना के सफर के बारे में...
विरासत में मिली थी इंजीनियरिंग
निर्मित पारीख की परवरिश इंजीनियर्स के बीच ही हुई, पापा इंजीनियर, दादा जी भी इंजीनियर. निर्मित उन बच्चों में से थे जो अपने ही खिलौने को तोड़कर उसे खुद असेंबल करते और पहले जैसा बना देते. निर्मित चीजें फिक्स करने में इतने एक्सपर्ट हो गए थे कि घर तो घर मोहल्ले में भी रिपेयरमैन के नाम से जाने जाने लगे. कोई फ्लश खराब हो या ट्यूबलाइट हर सबकी जुबान पर एक ही नाम आता- निर्मित.
यह कहना गलत नहीं होगा कि इंजीनियरिंग उन्हें विरासत में मिली थी. 7 साल की उमर में ही उन्होंने डिजिटल क्लॉक के लिए सर्किट ब्लॉक बना डाला. 13 साल की उम्र में रोबोटिक्स में पहली प्रोग्रामिंग कर डाली.
कॉलेज में ही बना दी 2 कंपनी
2006 की बात है, निर्मित बीटेक सेकंड ईयर में थे. उस समय सूरत में भारी बाढ़ से चारों तरफ तबाही मची हुई थी. उन्होंने सोचा कि टेक्नॉलजी का सही इस्तेमाल किया जाए न सिर्फ बाढ़ आने से रोका जा सकता है बल्कि हाईड्रो इलेक्ट्रिसिटी भी पैदा की जा सकती है. इससे लोगों की तो भलाई होगी साथ में बढ़िया बिजनेस भी बनेगा.
और इस तरह उन्होंने अपना पहला स्टार्टअप शुरू किया जिसका नाम था इनकॉन टेक्नोलॉजीज. ये कंपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके डैम ऑटोमेशन के लिए कंट्रोल सिस्टम बनाती थी.
इनकोन को बने एक साल ही बीते थे कि उन्होंने दूसरी कंपनी भी बना दी. उसका नाम था क्रक्सबॉट. यह एक ऐसा प्लैटफॉर्म था जो बड़े-बड़े वेब पेजेज को रीड करके समरी क्रिएट कर देता था. निर्मित ने इसे अपनी एक दोस्त के लिए बनाया था मगर धीरे-धीरे सभी कॉलेज स्टूडेंट्स के बीच ये पॉपुलर हो गया. 2011 में निर्मित इसे अमेरिका के एडटेक स्टार्टअप Kno को बेच दिया जिसे बाद में इंटेल ने खरीद लिया.
इंटेल के इस एक्विजिशन से निर्मित को यूएस जाने का मौका मिला. उन्होंने इंटेल के लिए डेटा एनालिटिक्स डायरेक्टर के तौर पर काम किया. वहां काम करते हुए निर्मित की मुलाकात स्टैनफोर्ड के कुछ इंटर्न्स से हुई. उनकी समझ, चॉइसेज, माइंडसेट को देखर निर्मित काफी इंप्रेस हुए और उन्होंने भी एमबीए करने का फैसला किया.
ये वो दौर था जब वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, मैसेंजर, फोटो शेयरिंग ऐप काफी पॉपुलर हो रहे थे. ये सभी ऐप नेटवर्क बिल्डिंग इफेक्ट्स पर काम कर रहे थे, निर्मित को ये कॉन्सेप्ट काफी फैसिनेटिंग लग रहा था वो इसे और विस्तार से सीखना चाह रहे थे. ये भी एक वजह थी जिस वजह से उनका एमबीए की तरफ रुझान बढ़ रहा था. उन्होंने स्टैनफोर्ड से एमबीए पूरा किया और एपल में उन्हें जॉब मिल गई.
इस तरह आया आइडिया
उधर इनकोन टेक्नोलॉजीज भी ग्रो कर रही थी. बिजनेस बढ़ा तो उन्हें और लोगों की जरूरत हुई. निर्मित को हायरिंग करने में बड़ी मुश्किल आ रही थी. उन्होंने हायरिंग मैनेजर को लताड़ लगाई, उन्होंने पूछा आखिर मसला क्या है, आपके पास टूल्स हैं, टेक्नोलॉजी हैं फिर क्यों नहीं लोग आ पा रहे.
हायरिंग मैनेजर ने कहा मैंने तो सब करके देख लिया आपको भरोसा नहीं हो रहा तो आप खुद ट्राई कर लीजिए. निर्मित को ये बाद दिल पर लग गई. उन्होंने कमान अपने हाथ में ले ली. मार्केट में जो भी टूल अवेलेबल थे वो सब यूज करके देख लिया लेकिन उन्हें भी हायरिंग को लेकर कोई लीड नहीं मिली.
फ्रस्ट्रेट होकर निर्मित ने एक प्रोटोटाइप बना दिया और वो काम कर गया. जो हायरिंग करने में कम से 8 से 9 दिन लगते थे वो महज 3 से 4 घंटों में हो गई. प्रोटोटाइप सफल रहा तो निर्मित ने इसे बड़े स्तर पर ले जाने का सोचा.
निर्मित ने इस स्पेस में पहले से मौजूद कंपनियों के फाउंडर्स से बात शुरू की तो उन्हें समझ आया कि हर कोई सिर्फ एंप्लॉयर्स यानी कंपनियों के नजरिये को ही देख रहा था. शायद ही ऐसा कोई था जो कैंडिडेट्स के नजरिए को भी प्राथमिकता दे रहा हो और निर्मित को समझ आया कि मामला यहीं फंस रहा है.
निर्मित खुद कंपनी बना चुके थे, उनके पिता भी SMB सेक्टर में थे इसलिए उन्हें एंप्लॉयर्स के नजरिये के बारे में काफी जानकारी थी. मगर बात आकर अटकी कैंडिडेट्स पर, ये कैसे पता चलेगा कि उन्हें क्या चाहिए? इस बारे में निर्मित के पास कोई इनसाइट नहीं थी.
निर्मित को इतना तो भरोसा हो चुका था आइ़डिया तो दमदार है, क्योंकि वो जिस परेशानी पर काम कर रहे थे वो देश की 96 फीसदी आबादी से जुड़ी थी. ऐसी आबादी जो राइजिंग वर्किंग क्लास में आती थी.
निर्मित ने सोचा कि जिसके लिए प्रॉडक्ट बनाना है उससे बेहतर इनसाइट कौन दे सकता है. और इस तरह निर्मित ने थोड़े-थोड़े समय के लिए हर पेशे में काम किया. फैक्ट्री से लेकर दुकानों में, कैशियर, इलेक्ट्रिशियन, आईसक्रीम पार्लर में आईसक्रीम बेची.
अपना की शुरुआत
इन जगहों पर इन लोगों के बीच काम करके निर्मित को बड़े तगड़े इनसाइट मिले. उन्हें समझ आया कि ये ऐसा वर्कफोर्स है जिसके पास रेज्यूमे नहीं है, मगर स्किल जरूर है.
अभी तक जो भी कंपनियां टैलेंट ढूंढ रही थी वो स्किल की बजाय रेज्यूमे पर फोकस कर रही थीं. इस तरह निर्मित ने तय किया कि उनका प्लैटफॉर्म रेज्यूमे फोकस्ड नहीं बल्कि स्किल ड्रिवेन जॉब्स पर फोकस करेगा.
दूसरी चीज उन्हें समझ आई कि गिग वर्कर्स का पूरा सिस्टम रेफरेंस पर ही चल रहा है. इसका कोई फॉर्मलाइज्ड नेटवर्क नहीं है. ये ऐसी आबादी है जो किसी बड़ी नौकरी के लिए अप्लाई करने में हिचकती है, भले ही वो कितने भी टैलेंटेड क्यों न हो. ये बात निर्मित के मन में घर कर गई.
अब उन्हें ऐप शुरू करने के लिए इनसाइट के साथ मोटिव भी मिल चुका था. इस तरह उन्होंने फरवरी 2019 में शुरुआत की अपना ऐप की. निर्मित को अपना ऐप के लिए गली बॉय फिल्म से काफी इंस्पिरेशन मिली. कंपनी का लीगल नाम अपनाटाइम इंक ही है और इसी का शॉर्ट फॉर्म है अपना.
क्या करती है अपना
अपना एक तरह से लिंक्डइन का देसी वर्जन है जो सोशल इकॉनमी पर फोकस्ड है. यानी गिग ब्लू कॉलर वर्कर्स के लिए. इस प्लैटफॉर्म पर कोई भी अपने नेटवर्क के लोगों से जुड़ सकता है, उनसे सीख सकता है, अपनी चीजें शेयर कर सकता है. और सबसे जरूरी काम की वैकेंसी दिखने पर अप्लाई भी कर सकता है.
जॉब की तलाश करने वाले कैंडिडेट के लिए अपना एक डिजिटल प्रोफाइल तैयार करती है, जिसमें उनके स्किल सेट की डिटेल होती है. वहीं रिक्रूटर देश के किसी भी कोने में अप्लिकेंट से जुड़ सकते हैं. इसके लिए अपना उन्हें कई टूल्स और सलूशन देती है.
रिक्रूटर कई बार हायरिंग के समय कैंडिडेट्स की डिजिटल प्रोफाइल देखकर ही तय कर लेते हैं कि उस शख्स के पास वो स्किल या टैलेंट है या नही. जिसकी उन्हें जरूरत है. अपना का दावा है कि यहां पर हायरिंग का काम दो से तीन दिन में पूरा हो जाता है.
यूजर फर्स्ट है मंत्रा
अन्य कई सफल स्टार्टअप फाउंडर्स की तरह ही निर्मित भी यूजर फर्स्ट को प्रॉयरिटी देते हैं. उनका कहना है कि आपको मालूम होना चाहिए की कस्टमर या यूजर को क्या चाहिए. अपना में निर्मित ने 30 लोगों की एक खास टीम बनाई है जो, रोजाना 40 से 60 हजार यूजर्स से बात करती है. इस कनवर्जेशन का इस्तेमाल कंपनी इनसाइट की तरह करती है और उसी आधार पर अपना प्रॉडक्ट अपडेट करती है.
लॉकडाउन ने दिलाई ग्रोथ
कंपनी को शुरू हुए एकाद महीने ही बीते थे कि लॉकडाउन लग गया. एक झटके में 12 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए. सभी लोग अपने अपने गांवों को लौटने लगे और अंत में वहीं कमाई का कुछ जरिया ढूंढने लगे. और उस समय अपना को जबरदस्त रेस्पॉन्स मिला.
अपना को सबसे पहले प्रोटोटाइप के तौर पर मुंबई के पोवई और थाने में लॉन्च किया गया, जिसे यूजर्स ने हाथों हाथ लिया. निर्मित के इस मिशन से इंप्रेस होकर सीड राउंड में सिकोया कैपिटल इंडिया ने जुलाई 2019 में 3 मिलियन डॉलर का फंड दे दिया.
तब तक अपना का यूजर बेस भी लाखों करोड़ों में पहुंच चुका था. इस ग्रोथ से इनवेस्टर्स का भरोसा और बढ़ता गया. सिकोया के एक ब्लॉग में लिखा है कि उन्हें समझ आ गया निर्मित वाकई कुछ खास बना रहे हैं, इसमें और पैसा लगाया जा सकता है.
फिर अपना को सितंबर 2020 में राउंड A में सिकोया और लाइटस्पीड इंडिया पार्टनर्स से 8 मिलियन डॉलर की एक और फंडिंग मिली.
बिजनेस मॉडल
अपना ने फिलहाल कोई एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू मॉडल नहीं रखा है. निर्मित का कहना है कि वो इसी मॉडल पर टिके रहना चाहते हैं क्योंकि एक बार आप ऐड की दुनिया में चले गए तो उस मकसद से भटक जाएंगे जिसके साथ आपने शुरुआत की थी. कंपनी रिक्रूटर्स से ही पैसे चार्ज करती है. इसके अलावा फ्री में अपस्किलिंग क्लासेज देती है.
ग्रोथ और पार्टनरशिप
अपना के इस समय 16 करोड़ यूजर्स हैं और डेढ़ लाख से ज्यादा रिक्रूटर हैं. इस यूजर बेस में जोमैटो, अर्बन कंपनी, बायजूज, फोनपे, डेल्हिवरी, बर्गर किंग और टीमलीज, फ्लिपकार्ट, डंजो, जैसे नाम शामिल हैं. अपना का दावा है कि उसके प्लैटफॉर्म पर हर महीने 18 करोड़ इंटरव्यू होते हैं.
अपना ने कई सरकारी और निजी इंस्टीट्यूशन के साथ पार्टनरशिप में मिलकर कई कैंडिडेट्स की स्किल को मजबूत करने और उन्हें नौकरी दिलाने के लिए काम कर रही है.
लॉन्च होने के 22 महीनों बाद ही अपना को टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट से 100 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली और कंपनी का वैल्यूएशन 1.1 अरब डॉलर हो गया. इस तरह अपना सबसे तेजी से यूनिकॉर्न बनने वाली भारतीय कंपनी बन गई. रेवेन्यू के मामले में अपना ने कुछ खास हासिल नहीं किया है. इस समय कंपनी अभी प्री रेवेन्यू स्टेज में है यानी कि उसका रेवेन्यू अभी जीरो है.
निर्मित के पास तीन कंपनियों को शुरू करने का एक्सपीरियंस है. लेकिन तीनों को ही निर्मित ने बिजनेस के मकसद से नहीं बल्कि किसी परेशानी को दूर करने के मकसद से शुरू किया. निर्मित कहते हैं कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैंने कभी भी पैसे कमाने के मकसद से कोई बिजनेस नहीं शुरू किया. जब आप किसी नेक इरादे से लगकर किसी काम को शुरू करते हैं तो पैसा अपने आप आपके पास आता है.
अपना इस समय 28 शहरों में और 11 भाषाओं में अवेलेबल है. ऐप पर ब्यूटीशियन से लेकर इलेक्ट्रिशियन, लेबर जैसे अलग-अलग फील्ड के प्रोफेशनल्स के लिए 70 कम्यूनिटी नेटवर्क सेटअप किए हैं.
आगे का क्या प्लान है
अपना ने अभी तक कुल 5 राउंड में 193.5 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई है. कंपनी इस फंड का इस्तेमाल इंडिया से लेकर अमेरिका, मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और साउथईस्ट एशिया में बिजनेस बढ़ाने के लिए करना चाहती है.
कंपनी के मुताबिक अब उसका फोकस मास्टरक्लास-स्टाइल स्किलिंग कोर्सेज, रिजल्ट या जॉब बेस्ड स्किलिंग और अपनी कम्युनिटीज के जरिए पीयर-टू-पीयर लर्निंग पर रहेगा. इसके अलावा कंपनी आने वाले दिनों में करियर काउंसलिंग और रेज्यूमे बिल्डिंग फक्शन भी ऐड कर सकती है.