लोकपाल की नियुक्ति: जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ
लंबे संघर्ष के बाद आखिर भारत के नागरिकों को पहला लोकपाल मिल गया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को पहला लोकपाल नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को लोकपाल पद की शपथ दिलाई। इससे पहले 19 मार्च को ही घोषणा हो गई थी कि जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को पहला लोकपाल नियुक्त किया जाएगा।
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के साथ ही लोकपाल के सदस्य के तौर पर आठ अन्य पूर्व न्यायधीशों की नियुक्ति की गई है। इनमें रिटायर्ड जस्टिस दिलीप बी. भोसले, जस्टिस रिटायर्ड पीके मोहंती, जस्टिस रिटायर्ड अभिलाषा कुमारी और जस्टिस रिटायर्ड ए. के. त्रिपाठी शामिल हैं। इन न्यायधीशों के साथ ही एसएसबी की पूर्व चीफ अर्चना रामसुंदरम और महाराष्ट्र के पूर्व चीफ सेक्रेटरी दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम लोकपाल के गैर न्यायिक सदस्य नियुक्त किए गए।
लोकपाल नियुक्त करने के लिए जो नियम बना है उसके मुताबिक लोकपाल समिति के सदस्यों में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य हो सकते हैं। इनमें से चार न्यायिक सदस्य होने का प्रावधान किया गया है। वहीं आठ सदस्यों में से कम से कम 50 फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएं होनी चाहिये।
अभी जिन जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को लोकपाल नियुक्त किया गया है उन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से अपनी पढ़ाई की है। पहले उन्होंने जेवियर्स से ग्रैजुएशन किया उसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। इसके बाद वे कलकत्ता हाई कोर्ट से ही अटॉर्नी की तरह काम करने लगे। उन्होंने 30 नवंबर 1976 को बार काउंसिल ऑफ पश्चिम बंगाल में खुद को एडवोकेट के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया था। उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट में 17 जुलाई 1997 को स्थाई जज के तौर पर नियुक्त किया गया था।
जस्टिस घोष इससे पहले आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं। वे मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड हो गए थे। उसके बाद उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार का सदस्य बनाया गया था। आपको बता दें कि जस्टिस घोष ने ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी औऱ 13 अन्य नेताओं के खिलाफ 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में आपराधिक षणयंत्र मुकदमा तलाने का आदेश दिया था।
वे एक और हाई प्रोफाइल केस से जुड़े थे जिसमें कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सीएस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने के लिए न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया था और उन्हें छह महीने की सजा सुनाई गई। वे उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने आदेश दिया था कि सरकार विज्ञापनों में राजनेताओं की तस्वीरें नहीं छपेंगी। वे जल्लीकट्टू औप भैंसादौड़ जैसी प्रथाओं पर पाबंदी लगाने वाली बेंच में भी शामिल थे।
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