क्या ईमेल संचार एक अनुबंध के रूप में कानून के तहत बाध्यकारी हैं?
टेक्नोलॉजी के युग में संचार के ये नए तरीक़े एक पेचीदा सवाल खड़ा करते है कि क्या ईमेल के द्वारा किए गए समझौते, क़ानून की नज़र में मान्य हैं, ख़ासकर एक परंपरागत अनुबंध के अभाव में?
यह कहना उचित होगा कि यदि वादे निभाए जाते, तो दुनिया में वकील नहीं होते! ऐसी दुनिया की कल्पना करना वाकई मुश्किल है जहां हर कोई वही करता है जिसके लिए वह सहमत होता हैं, और कोई भी अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटता। यह ख़याल बहुत आदर्शवादी प्रतीत होता हैना? दुर्भाग्य से, हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मानव आचरण को नियंत्रित करने वाले नियमों की निरंतर आवश्यकता होती है। चाहे वह हमारे निजी जीवन में हो या व्यवसाय में, मनुष्य में नियम तोड़ने की शरारती प्रवृत्ति होती है। एक कहावत यह भी है कि नियम तोड़ने के लिए होते हैं।
हालाँकि, यदि आप किसी वकील से पूछें, तो वह आपको बताएगा कि नियम सदा पालन करने के लिए होते हैं। कानून समाज में एक संतुलन लाता हैं और हर इंसान को अपने किए गए वादे को निभाना अनिवार्य है। यदि ऐसा न तो तो उसे जवाबदेह ठहराना भी महत्वपूर्ण है। ये वादे लिखित या मौखिक हो सकते हैं और दोनों ही भारतीय कानून के तहत स्वीकृत किए जाते हैं।
एक विशिष्ट व्यवसाय या स्टार्ट-अप के लिए, समझौतों में प्रवेश करना सबसे बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है। चाहे वह उसके कर्मचारियों के साथ हो, ग्राहकों के साथ या विक्रेताओं के साथ, हर व्यवसाय के लिए यह अनिवार्य है की वह अधिकारों और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे ताकि दोनो पक्ष एक दूसरे को क़ानून के तहत बांध सकें और अपने अधिकारो की रक्षा कर सके।
इसके अलावा, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कलम और कागज के दिन धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं और ईमेल और WhatsApp ने संचार के हमारे तरीकों पर कब्जा कर लिया है। ये तेज़ है, उपयोग में आसान हिया और हर समय उपलब्ध हैं। पिछले 15 वर्षों में, मैंने एक वकील के रूप में कई स्टार्ट-अप्स का प्रतिनिधित्व किया है और मैंने क़रीब से देखा है कि समझौतों के प्रारूप और हस्ताक्षर के तरीके में कई बदलाव आए है।
समझौतों से जुड़ी औरचारिकतायों को कम महत्व दिया जाता है और दोनो पक्ष अक्सर बहुत ही अनौपचारिक प्रकार से काम करते है जो पूर्ण रूप से सही नहीं हैं। ये नए तरीक़े एक पेचीदा सवाल खड़ा करते है कि क्या ईमेल के द्वारा किए गए समझौते, क़ानून की नज़र मैं मान्य है? ख़ासकर एक परंपरागत अनुबंध के अभाव में।
एक वकील के तौर पर मुझसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है। किसी विवाद को हल करते समय, जब मैं जानकारी के लिए ऐग्रीमेंट या अनुबंध की एक कॉपी मांगता हूं, तो क्लाइयंट अक्सर मुझे बताते हैं कि उन्होंने लिखित में ऐग्रीमेंट नहीं किया है और केवल ईमेल पर सहमती ली दी गयी है। इसका मतलब यह है कि पार्टियां स्टाम्प पेपर पर ऐग्रीमेंट नहीं करती है, लेकिन ईमेल पर सभी नियम और शर्तें मंज़ूर करती है। हालाँकि मेरी राय में, दोनो पक्षों को एक वकील द्वारा सही रूप से एक ऐग्रीमेंट को लिखवाना चाहिए और हस्ताक्षर करने चाहिए परंतु एक स्पष्ट ईमेल भी कानून के तहत अनुबंध को लागू करने योग्य है।
भारत में अनुबंध Indian Contract Act, 1872 द्वारा शासित होते हैं और यह किसी भी अनुबंध के वैध होने के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करता है। किसी भी समझौते को कानूनी रूप से लागू करने योग्य तभी माना जाएगा जब निम्नलिखित मुख्य शर्तें पूरी हों:
- एक पार्टी द्वारा दूसरे को एक प्रस्ताव दिया जाता है
- ऐसा प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है,
- मूल्यवान वस्तुओं / सेवाओं का आदान-प्रदान किया जाता है या उसका वादा किया जाता है,
- दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति होती है, और
- ऐग्रीमेंट का उद्देश्य वैध होता है।
इसलिए आम तौर पर यदि उपरोक्त शर्तें पूरी होती हैं, तो एक ऐग्रीमेंट वैध माना जाता है। भले ही इन शर्तों को ईमेल द्वारा पूरा किया जाए, फिर भी ऐग्रीमेंट या अनुबंध वैध ही माना जाता है।
यहां एक और बात जानना ज़रूरी है कि भारत में, Information Technology Act, 2000, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को मान्यता देकर इलेक्ट्रॉनिक शासन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह साइबर (Cyber) अपराधों को भी परिभाषित करता है और उनके लिए दंड भी निर्धारित करता है। Information Technology Act ने 2008 में, एक संशोधन के माध्यम से ईमेल अनुबंधों की कानूनी वैधता को मान्यता दी है। अधिनियम के Section 10A यह स्पष्ट करती है कि एक अनुबंध को केवल एक प्रस्ताव के डिजिटल पत्राचार और इसकी स्वीकृति के आधार पर अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता है।
यहां तक कि Trimex International FZE Limited, Dubai versus Vendata Aluminium Ltd (2010 (1) SCALE 574) नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि अगर कोई पक्ष ईमेल के माध्यम से अनुबंध के लिए सहमत हुए थे, तो यह एक वैध अनुबंध होगा। हस्ताक्षरित समझौते की अनुपस्थिति में, अदालत ने ईमेल, पत्र, टेलेक्स, टेलीग्राम और दूरसंचार के अन्य माध्यमों के आदान-प्रदान के रूप में पार्टियों द्वारा अनुमोदित और हस्ताक्षरित दस्तावेजों को 'अनुबंध का प्रमाण' माना जाने की अनुमति दी।
इसलिए यह स्पष्ट है कि जब तक Indian Contract Act और Information Technology Act के तहत उल्लिखित मानदंडों को पूरा किया जाता है, इलेक्ट्रॉनिक रूप से निष्पादित संचार कानून के तहत स्वीकार और लागू किए जाते हैं। यह मानते हुए कि पारंपरिक अनुबंध स्थापित करने वाले उपरोक्त सभी तत्व मौजूद हैं, ईमेल संचार को एक वैध और लागू करने योग्य समझौता माना जाएगा। हालाँकि, मेरा ऐसा मानना है कि ईमेल में प्रयुक्त भाषा, स्पष्ट, संक्षिप्त और किसी भी भ्रम से मुक्त होनी चाहिए।
तो अगली बार, जब आप अपने व्यवसाय में किसी दूसरी पार्टी को ईमेल लिखते हैं, तो सावधान रहें कि आप अपने ईमेल में क्या लिखते हैं और यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं, तो एक वकील को सम्पर्क करें जो इन कानूनी मुद्दों पर आपका मार्गदर्शन कर सके।
नोट: ऊपर दी गई जानकारी को कानूनी सलाह के रूप में ना लें। यदि आपको इस विषय में और अधिक जानकारी चाहिए तो आप अभिषेक शर्मा से इस लिंक पर जाकर सम्पर्क कर सकते है। किसी भी मामले के तथ्य और परिस्थिति के आधार पर ऊपर दी गई राय बदल भी सकती है, ऐसे में आप किसी अन्य कानूनी सलाहकार या विषय के जानकार वकील से भी संपर्क कर सकते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi