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ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को कैंसर से जागरूक करने के लिए इन्होने छोड़ दीं अपनी बेहतरीन नौकरियां, शुरु किया 'आरोग्य फाउंडेशन'

महिलाओं से जुड़े कैंसर को लेकर देश के कई राज्यों में बड़ी मुहिम चला रहा है आरोग्य फ़ाउंडेशन...

देश भर में महिलाओं से जुड़े कैंसर को लेकर उन्हे जागरूक करने को लेकर आरोग्य संस्थान बड़ी तेज़ी से अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। इस पहल के लिए संस्थान के सह सस्थापकों डॉ. ध्रुव कक्कड़ ने सरकारी तो सबील सलाम ने भी अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ दी।

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कैंप में महिलाओं के साथ फ़ाउंडेशन की सह संस्थापक डॉ. प्रियांजलि दत्ता



आरोग्य फ़ाउंडेशन आज देश भर में महिलाओं से जुड़े कैंसर के बारे में न सिर्फ जागरूकता फैला रहा है, बल्कि इस बीमारी से ग्रसित महिलाओं को हर संभव मदद भी उपलब्ध करा रहा है। फ़ाउंडेशन की स्थापना डॉ. ध्रुव कक्कड़ और डॉ. प्रियांजलि दत्ता ने की। फ़ाउंडेशन के सह संस्थापक सबील सलाम भी सक्रिय तौर पर अपने सेवाएँ दे रहे हैं।


संस्थान महिलाओं से जुड़े कैंसर को लेकर काम रहा है। संस्थान महिलाओं को कैंसर से जुड़ी सभी संभावनाओं को लेकर जागरूकता फैला रहा है।


फ़ाउंडेशन की सह संस्थापक प्रियांजलि दत्ता कहती हैं,

“देश में कैंसर के इलाज के लिए बेहतर अस्पताल मौजूद हैं, लेकिन प्राथमिक स्तर पर इस बीमारी का पता लगाने और उसकी रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने वाला कोई नहीं है।"

डॉ. प्रियांजलि के अनुसार फ़ाउंडेशन कैंसर की रोकथाम को लेकर अपने लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। फ़ाउंडेशन के सदस्य अपने कैंप के दौरान महिलाओं से बीमारी से संबन्धित कुछ सवाल-जवाब करते हैं, जिसकी मदद से महिलाओं में कैंसर से संबन्धित लक्षणों का शुरुआती दौर में ही पता लगाया जा सकता है।

छोड़ दी सरकारी नौकरी

क़ैसर जैसी बीमारी को लेकर अपने इरादों के बारे में बात करते हुए हुए फ़ाउंडेशन के सह संस्थापक डॉ. ध्रुव कक्कड़ बताते हैं कि

“मेरी दादी को ब्लड कैंसर था। क़ैसर के इलाज के दौरान दवाओं ने दादी के शरीर पर बुरा असर डाला, जिसके चलते आख़िर दादी की मृत्यु हो गई।”

डॉ ध्रुव इस फ़ाउंडेशन में जुडने से पहले सरकारी संस्थान ईएसआई में कार्यरत थे, जहां उनकी मुलाक़ात फ़ाउंडेशन की सह संस्थापक डॉ. प्रियांजलि दत्ता से हुई। इसके बाद डॉ. ध्रुव और डॉ. प्रियांजलि ने साथ मिलकर फ़ाउंडेशन के बैनर तले ग्रामीण आँचलों में जाकर महिलाओं को क़ैसर के प्रति जागरूक करने की पहल की शुरुआत की।


डॉ. ध्रुव ने फ़ाउंडेशन से जुड़कर महिलाओं को इस बीमारी से बचाने के लिए अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी। इसी के साथ फ़ाउंडेशन के अन्य सह संस्थापक सबील सलाम ने भी देश की बड़ी ग्रामीण हेल्थकेयर कंपनी में अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ दी थी। पहल के शुरुआती दिनों के बारे में बात करते हुए डॉ. ध्रुव बताते हैं कि,

“शुरुआती दौर में हमने अपने कुछ साथी डॉक्टरों के साथ मिलकर एक टीम का गठन किया, जो ग्रामीण आँचलों में जाकर कैंप लगाकर महिलाओं को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक करने का काम करती थी।”

कैंसर स्क्रीनिंग की हुई शुरुआत

कैंसर स्क्रीनिंग की शुरुआत 2017 में हुई, जिसके तहत महिलाओं को सेल्फ एग्जामिन के बारे में जागरुक किया। सेल्फ एग्जामिन के तहत महिलाओं को तमाम तरह के कैंसर से जुड़े शुरुआती लक्षणों के बारे में पर्याप्त जानकारी दी जाती है, जिससे महिलाएं इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता खुद ही लगा सकती हैं।


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महिलाओं में कैंसर के प्रति जागरूकता फैला रहा फ़ाउंडेशन

एक साथ 15 हज़ार महिलाओं का परीक्षण

डॉ धुव बताते हैं कि बीते साल बक्सर में एक बड़े कैंप का आयोजन किया गया था, जिसमें केंद्र सरकार की तरफ से फ़ाउंडेशन को सहयोग भी मिला था। इस कैंप में करीब 15 हज़ार महिलाओं का परीक्षण किया गया था।

डॉ. ध्रुव बताते हैं,

“महिलाओं के परीक्षण के बाद यदि उनमे कैंसर के लक्षण मिलते हैं तो हम उन्हे हॉस्पिटल में रेफ़र करते हैं, जहां इलाज के लिए महिलाओं को छूट भी मिलती है, इससे इलाज पर आने वाला खर्च कुछ कम हो जाता है।”

डॉ. ध्रुव बताते हैं कि अभी उनके साथ 10 से 12 डॉक्टर जुड़े हुए हैं, जो कैंप में साथ होते हैं। यूं तो संस्थान के साथ 20-22 डॉक्टर जुड़े हुए हैं, जो सुविधा अनुसार अपने सेवाएँ उपलब्ध कराते रहते हैं।

कॉर्पोरेट कैंप्स से है रेवेन्यू

आरोग्य फ़ाउंडेशन ग्रामीण आंचल और शहरी क्षेत्रों में मुफ्त कैंप का आयोजन करता है, लेकिन राजस्व के बारे में बात करते हुए डॉ. ध्रुव बताते हैं कि फ़ाउंडेशन कॉर्पोरेट कैंप्स का भी आयोजन करता है, जिससे जरूरी राजस्व की प्राप्ति होती है।

डॉ. ध्रुव कहते हैं,

“संस्था को चलाने के लिए हमें धन की जरूरत पड़ती है, जो हमें कॉर्पोरेट कैंप्स से मिलता है, इसी के चलते हम ग्रामीण आंचलों में मुफ्त कैंप लगाने में सफल रहते हैं।"

फ़ाउंडेशन को प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना से भी मदद मिली है, जिसके तहत स्क्रीनिंग में सामने आए मरीजों को इलाज के लिए आयुष्मान केंद्र भेजा जाता है।



भविष्य की योजनाएँ

आरोग्य फ़ाउंडेशन अब आशा बहुओं और एएनएम को ट्रेनिग देने पर काम कर रहा है, जिससे इस पहल को बड़े स्तर पर आगे ले जाया जा सके।

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फ़ाउंडेशन द्वारा बक्सर में एएनएम को दी गई ट्रेनिंग

डॉ. ध्रुव कहते हैं,

“हम आशा बहुओं और एएनएम को ऑनलाइन ट्रेनिंग देने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में बड़े स्तर पर महिलाओं की कैंसर बीमारी से संबन्धित स्क्रीनिंग की जा सके।”

आरोग्य फ़ाउंडेशन देश के कई राज्यों में इन कैंप्स का आयोजन कर रहा है। फ़ाउंडेशन ने मेघायल, बिहार, दिल्ली एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में कैंप का आयोजन किया है। भविष्य को लेकर डॉ. ध्रुव बताते हैं,

“हम अगले एक साल में आशा बहुओं और एएनएम को ट्रेनिंग देने के लिए काम कर रहे हैं। इसके साथ ही हम हेल्पलाइन जैसे व्यवस्था पर भी काम कर रहे हैं। हम भविष्य के लिए नेशनल स्क्रीनिंग कैंप के लिए भी तैयारी कर रहे हैं, इसके तहत हम आंकड़े भी इकट्ठे करेंगे, जिससे भविष्य में हम अपनी योजनाओं को आगे लेकर जाएंगे।”

डॉ. ध्रुव आगे कहते हैं,

“बेहतर स्वास्थ के लिए उपचार ही आवश्यक नहीं है, रोकथाम के प्रति जागरूक होकर भी बेहतर स्वास्थ की ओर बढ़ा जा सकता है। जिस बीमारी को रोका जा सकता है और यदि उससे किसी की मृत्यु हो जाती है तो यह किसी त्रासदी के समान है।”

अगले 5 सालों के प्लान के बारे में बात करते हुए डॉ. प्रियांजलि कहती हैं,

"हम अगले 5 सालों में इस पहल को दक्षिण-पूर्वी एशिया तक ले जाना चाहते हैं। हम एक नॉन प्रॉफ़िट हेल्थ-टेक संस्थान की तरह आगे बढ़ने जा रहे हैं। अभी हमने 51 हज़ार मरीजों के साथ काम किया है। हम अपनी इस पहुँच को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक संगठनों के साथ पार्टनरशिप करने को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।"