प्रारंभिक शिक्षा को अपने ढंग से बदल रहा है दो यंग इंडिया फैलो का ये स्टार्टअप
सही तरीके से डिलीवर की गई शिक्षा किसी बच्चे के अंदर खुशियों के रंग भर सकती है। लेकिन भारत में, अक्सर बच्चों को वो शिक्षा और सीखने की सुविधा नहीं मिलती जिसके वह हकदार हैं। पिछली जनगणना के अनुसार, भारत की 22 प्रतिशत आबादी गरीबी के अधीन रहती है, जिसके लिए शिक्षा एक दूर का सपना है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए यंग इंडिया फैलो जोनाथन मेंडोंका और सौम्या अग्रवाल ने बेयरफुट एडू फाउंडेशन ( Barefoot Edu Foundation) की शुरुआत की। यह एक सामाजिक उद्यम है जो यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करता है कि बच्चे समग्र रूप से अपने अंदर 5 डोमेन विकसित करें: अनुभूति (cognition), भाषा और साक्षरता, मोटर कौशल, सामाजिक भावनात्मक विकास और रचनात्मकता।
मुंबई-बेस्ड यह फाउंडेशन एक "जमीनी स्तर का संगठन है जो शैक्षिक वातावरण को प्रेरणादायक वातावरण में बदलने के लिए प्रतिबद्ध है, जो कि अल्पपोषित समुदायों (under-resourced communities) के लिए काफी प्रासंगिक है।" संस्थापक जोड़ी का मानना है कि बच्चों को "उनकी शिक्षा से अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रासंगिक ज्ञान, कौशल और प्लेटफार्मों" के साथ उन्हें सशक्त बनाना आवश्यक है।
वर्तमान में, मुंबई और हरियाणा में सक्रिय इस संगठन ने मुंबई में लगभग 10 कम फीस वाले निजी स्कूलों में प्रारंभिक स्तर की शिक्षा को पुनर्जीवित किया है, और राज्य सरकार के समर्थन से हरियाणा के करनाल जिले में 1,400 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है।
राजमिस्त्री से लेकर उनके बच्चों तक
योरस्टोरी से बात करते हुए, जोनाथन कहते हैं,
"मैं पेशे से एक सिविल इंजीनियर हूं। एक बार मुंबई में एक फर्म के साथ काम करते हुए एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मुझे एहसास हुआ कि बहुत सारी मटेरियल बर्बाद हो जाती है क्योंकि राजमिस्त्री में ज्यामिति (geometry) के बुनियादी ज्ञान की कमी थी। मैंने उन्हें बुनियादी ज्यामिति सिखाई। मैंने उनके लिए त्रिकोणमिति (trigonometry) कक्षाएं आयोजित करके उन्हें ये समझाया कि कैसे मटेरियल बर्बाद हो रहा है।"
इसने अच्छा काम किया; राजमिस्त्रियों ने काम करने का सही तरीका सीखा और पहले के मुकाबले बेहद कम कंस्ट्रक्शन मटेरियल बर्बाद हुआ। जोनाथन के तरीकों से प्रभावित होकर राजमिस्त्रियों ने उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कहा, जिनमें से ज्यादातर प्राथमिक कक्षाओं में थे। 2015 में, जब जोनाथन राजमिस्त्रियों के बच्चों से मिलने गए, तो उन्होंने महसूस किया कि उन पर जरूरी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उनमें से कई को तो यह भी पता नहीं था कि एक पेंसिल कैसे पकड़नी है।
उसी समय जोनाथन को लगा कि उन्हें वो राह मिल गई है जिसे पकड़कर वो चलना चाहते थे: प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली में सुधार करना। हालाँकि, तब उन्हें यह नहीं पता था कि सेक्टर में कैसे बदलाव किया जाए।
2016 में, जोनाथन ने अशोका विश्वविद्यालय, हरियाणा में यंग इंडिया फैलोशिप के लिए आवेदन किया। यहां, वे सौम्या से मिले, जिन्होंने बिजनेस में अपनी बैचलर डिग्री की, और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की इच्छुक थी। दोनों ने प्रायोगिक लर्निंग मॉड्यूल के लिए दाखिला लिया जहां फेलो संगठनों के सहयोग से विभिन्न क्षेत्रों से वास्तविक जीवन की परियोजनाओं पर काम करेंगे।
जोनाथन कहते हैं,
"आप या तो यूनिवर्सिटी द्वारा प्रदान दिए गए प्रोजेक्ट ले सकते हैं या काम करने के लिए अपने खुद के प्रोजेक्ट को डिजाइन कर सकते हैं। मेरे पास सौम्या के साथ एक परियोजना पर काम करने का अवसर था। मैंने महसूस किया कि हम दोनों का विजन समान था: शिक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए कुछ करना। हमने अपना प्रोजेक्ट बेयरफुट एडू नाम से तैयार किया और शुक्रवार से रविवार तक इस पर काम किया।"
सीखने की खाई को पाटना
2016 में, दोनों ने अपने प्रोजेक्ट - बेयरफुट एडू फाउंडेशन को शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने दिल्ली पब्लिक स्कूल, टीच फॉर इंडिया और कुछ अन्य जैसे स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने से इसकी शुरुआत की। यह निजी, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित स्कूलों की शिक्षण विधियों को समझने के लिए था।
हालांकि जल्द ही, उन्होंने इसका प्रभाव देखा: बच्चे अब पहले से ज्यादा ध्यान से पढ़ रहे थे। उन्होंने छोटे बच्चों को मजेदार गतिविधियों और विशेष पाठ्यक्रम के माध्यम से पढ़ाया। हालाँकि, उन्हें लगा कि यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि उनके पास पर्याप्त समय नहीं था, और 2017 में शिक्षकों के साथ काम करना शुरू किया ताकि वे अपने अनुभवों को साझा कर सकें।
जोनाथन कहते हैं,
“यह मुद्दा काफी गंभीर है। कक्षा 1 में प्रवेश करने वाले बच्चों के पास सीखने का कौशल नहीं होता है, जो कक्षा के भीतर सीखने का एक बड़ा अंतर पैदा करता है। उदाहरण के लिए, जहां कुछ बच्चे यह पता लगा रहे हैं कि एक पेंसिल या किताब क्या होती है, वहीं कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जो उनसे काफी आगे हैं और शैक्षणिक सामग्री सीखने की प्रक्रिया शुरू कर चुके होते हैं।”
जोनाथन के अनुसार, इससे एक बच्चे के ओवरऑल डेवलपमेंट में फर्क पड़ता है। अगर अंतर बना रहता है, तो बच्चे उच्च कक्षाओं में चीजों को सीखने या समझने में सक्षम नहीं होते हैं और अंततः छोड़ देते हैं। जब हम बच्चे होते हैं तब हमारे पास शिक्षा को लेकर बेहतर सुविधाएं होती हैं, लेकिन गरीबी में रहने वाले लोग जहां माता-पिता दोनों काम कर रहे होते हैं, ऐसे में उनके लिए घर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच का विशेषाधिकार नहीं होता है। जोनाथन का कहना है कि इस समस्या को हल करने के तरीके खोजने के दौरान, उन दोनों को "प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा" जैसे शब्द का पता चला।
उनके शोध से यह भी पता चला कि सरकार के नेतृत्व वाली आंगनवाड़ी प्रणाली दुनिया में शिक्षा की सबसे बड़ी प्रदाता है, क्योंकि यह 30 मिलियन छात्रों को लाभ पहुंचाती है। यहां मुद्दा यह था कि शिक्षक उस सुव्यवस्थित प्रक्रिया से नहीं गुजरते थे जो शिक्षण को सक्षम बनाने के लिए तैयार की गई थी; अक्सर, उन्हें केवल चार दिन का प्रशिक्षण मिलता था।
जोनाथन कहते हैं,
"ऐसा नहीं है कि वे प्रशिक्षित नहीं होना चाहते हैं। दरअसल प्रारंभिक बचपन की शिक्षा ही शिक्षा के अधिकार से बंचित रह गई, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में ही अनियमित प्री-स्कूल सिस्टम और अप्रशिक्षित शिक्षक तैयार हुए।"
बदलाव लाना
इसके बाद संस्थापक जोड़ी करनाल जिले में घूमने लगी और स्वयंसेवी संगठनों और व्यक्तियों से मिलकर अपने नेक काम मे मदद करने के लिए कहा। काम था आंगनवाड़ी शिक्षकों को प्रशिक्षित करना।
जोनाथन कहते हैं,
"यहाँ मकसद राज्य को यह दिखाना था कि शिक्षकों को बहुत कम लागत पर प्रशिक्षित किया जा सकता है, और यह प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं है।"
जोनाथन और सौम्या ने जिला प्रशासन के पास जाकर बताया कि वे कैसे एनजीओ और स्वयंसेवकों के साथ आंगनवाड़ी शिक्षकों को पढ़ाने का पूरा भार उठाएंगे।
जोनाथन कहते हैं,
"हमने बचपन में बच्चों में विकास के महत्व के बारे में शिक्षकों को सूचित करके, और यह कैसे देखा और मापा जा सकता है, इस पर प्रारंभिक बचपन की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का लक्ष्य रखा।"
उनकी प्रगति को देखते हुए, हरियाणा सरकार ने बचपन की शिक्षा के लिए राज्य के सभी जिलों के लिए एक विशिष्ट बजट आवंटित किया। जोनाथन बताते हैं कि संगठन का दृष्टिकोण तीन तरह का है: पहला क्षमता निर्माण है, मौजूदा शिक्षक या सामुदायिक नेता का जो शिक्षक बनना चाहते हैं।
दूसरे में नीति और प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव लाना शामिल था। जोनाथन ने कहा कि शिक्षक बच्चों को खेलने के लिए खिलौने नहीं देते थे, जिससे उनका विकास प्रभावित हो रहा था।
वे कहते हैं,
“हमने पाया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को डर था कि अगर किसी खिलौने को तोड़ दिया गया तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा और इसलिए बच्चों को खिलौनों के साथ खेलने की अनुमति नहीं देते थे। हमने सरकार को एक पत्र जारी करने का आग्रह करते हुए कहा कि उन्हें टूटे हुए खिलौनों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा और जल्द ही खिलौने बच्चों के हाथों में पहुंच जाएंगे।"
तीसरे दृष्टिकोण के तहत, संगठन कुछ स्तरों पर मौजूदा बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करता है। इसके लिए, बेयरफुट एडू एक ऐसा माहौल बनाने में मदद करता है, जो सीखने के लिए अनुकूल हो, दीवारों पर पेंटिंग करके या वन स्टार पब्लिक स्कूल (ओएसपीएस) जैसे सीखने के संसाधनों को स्थापित करके, जहां एक खेल के मैदान को लर्निंग लैब के रूप में बदल दिया जाता है, जिससे छात्रों को फैकॉल्ट के पेंडुलम और पेंडुलम प्रयोगों को समझने में मदद मिलती है।
जोनाथन कहते हैं,
“पूरी संरचना बिल्डिंग एज लर्निंग एड (BALA) सिद्धांत पर डिजाइन की गई है। इस अवधारणा के तहत, हमने दरवाजे को एक प्रॉटेक्टर डिज़ाइन में फर्श के नीचे चित्रित किया। इसलिए जब कोई छात्र दरवाजे पर जाता है, तो उसे पता चल जाएगा कि दरवाजा किस कोण पर खोला गया है और कोणों की अवधारणा को समझ सकता है।"
अपकेंद्र बल (centrifugal force) की अवधारणा को सिखाने के लिए, दोनों ने पत्थरों को पंखों से जोड़ा है।
कैसा है भविष्य
बेयरफुट एडू अब दो प्रोजेक्ट चला रहा है। हरियाणा में चालू प्रोजेक्ट लहर फैलोशिप, राज्य सरकार द्वारा समर्थित है, जो इस कार्यक्रम के सभी 15 फेलो को स्कॉलरशिप देती है। जनवरी 2019 में शुरू किया गया प्रोजेक्ट सखी के तहत, 20 सामुदायिक फेलो और 10 कम शुल्क वाले निजी स्कूलों के साथ चार लोगों की टीम काम करती है।
टीम में अब छह सदस्य हैं, जिनमें मुंबई और हरियाणा के दो संस्थापक शामिल हैं। उन्होंने स्वयंसेवकों, अन्य एनजीओएस और हरियाणा सरकार से समर्थन के साथ काम किया है।
वर्तमान में, दोनों संस्थापक मदर टेरेसा फैलो हैं और एडुमेंटम और विप्रो एप्लाइंग थॉट्स इन स्कूल्स (वाटिस) से जुड़े हैं। बेयरफुट एडू अब एक संस्थान स्थापित करने, डेटा-संचालित नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने और टीम का आकार बढ़ाने की योजना बना रहा है।
जोनाथन कहते हैं,
"यह बचपन की शिक्षा को बढ़ाने के लिए भारत भर में हमारे समुदाय-आधारित सीखने का विस्तार करने में मदद करेगा।"